संवाददाता हर्षल रावल
सिरोही/राज.
राजस्थानी भाषा की मान्यता और आंदोलन
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सत्यार्थ के संवाददाता हर्षल रावल ने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के पूर्ण जोर आवाज उठाने वाले “आपणो राजस्थान, राजस्थानी भाषा” के संस्थापक एवं राजस्थानी भाषा प्रेमी हरीश हैरी (हनुमानगढ़) से वार्तालाप में उन्होंने कहा कि भारत देश कई राज्यों से मिलकर बना हुआ एक देश है। समस्त राज्यों को मिश्रित रुप से मिलने से देश बना हुआ है, इसी के कारण इसे राज्यों का संघ कहा जाता है। देश का अस्तित्व समस्त राज्यों है और समस्त राज्यों का अस्तित्व भी इस देश है। राज्यों के बिना भारत अधूरा है तो भारत के बिना राज्य भी अधूरे हैं। सबका अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है, यह भारत देश के नागरिक उत्तम तरीके से जानते हैं। भारतवासी जितने भारतीय नागरिक है, उतने ही अपने राज्य के नागरिक हैं। जितना उन्हें भारत से प्रेम है उतना ही अपने राज्य से। समस्त राज्यों की अपनी पहचान है। इसी के कारण सबकी अपनी बोली और भाषा। राजस्थान भौगोलिक दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान के लोगों और भाषा को राजस्थानी कहा जाता है।
राजस्थानी भाषा :-
हरीश हैरी ने कहा कि राजस्थान के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राजस्थानी भाषा कहा जाता है। राजस्थानी भाषा पुरानी भाषाओ में से एक है। इस भाषा के शताब्दियों पुराने साहित्य उपलब्ध हैं। राजस्थानी भाषा की पूर्व में डिंगल और पिंगल लिपि हुआ करती थी। इस लिपि को कई बार भाषा भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त प्राचीन काल में मरूभाषा के होने का जिक्र भी कई बार किया हुआ है। वर्तमान में जो राजस्थानी भाषा अस्तित्व में है, उसकी लिपि देवनागरी है।
राजस्थानी भाषा राजस्थान के निवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। मूल रूप से यह हिंदी की एक उपभाषा है, जिसके 80% शब्द हिन्दी भाषा से मिलते जुलते है। शेष शब्द स्थानीय बोलियों के है। राजस्थानी भाषा राजस्थान के पड़ौसी राज्य पंजाब, हरियाणा और गुजरात के साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत के कुछ भागों में बोली जाती है। शब्दावली के अनुसार देखा जाए तो राजस्थानी एक समृद्ध भाषा है।
राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए आन्दोलन :-
राजस्थानी भाषा को राजभाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा समय-समय पर आंदोलन किए गए। सामाजिक संगठनों के साथ विषय से जुड़े विशेषज्ञों के साथ प्रदेश की जनता ने भी सहयोग दिया, किंतु उनकी मांग को सफलता नहीं मिली। भाषा की मान्यता के लिए किए गए प्रयास और आंदोलन का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं –
1936 – राजस्थानी भाषा की राजभाषा के रुप में सर्वप्रथम मान्यता लेने के लिए प्रथम आंदोलन था। उस समय भारत स्वतंत्र भी नहीं हुआ था, तब भारत में ब्रिटिश राज था।
1956 – स्वतंत्रता के पश्चात प्रथम बार राज्य की विधान सभा में मांग उठी। उस समय कई संगठनों ने सड़क पर उतर आंदोलन किया।
2003 – राज्य सरकार द्वारा प्रथम बार राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजा गया।
2004 – केंद्र सरकार ने राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव पर एस. ए. महापात्रा समिति का गठन किया गया। कमेटी ने 2 वर्ष पश्चात सौंपी अपनी रिपोर्ट में इसे मान्यता के लायक बताया।
2006 – केंद्रीय गृह मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने मान्यता पर सहमति देते हुए, कहा कि इसके लिए संसद में बिल पेश किया जाएगा। लेकिन आज तक संसद में कोई बिल नहीं आया।
2013 – जयपुर फुट USA के चेयरमैन प्रेम भण्डारी के नेतृत्व में देश की राजधानी दिल्ली में जंतर-मंतर पर महापड़ाव।
2023 – दिल्ली महापड़ाव के साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मान्यता की गुहार। इनके अतिरिक्त भी समय-समय पर प्रदेश के बुद्धजीवियों और राजस्थानी भाषा प्रेमियों और संगठनों द्वारा मान्यता के लिए धरने-प्रदर्शन और ज्ञापन देने के कार्यक्रम आयोजित किए गए। लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य मान्यता दिलाने के लिए काफी साबित नहीं हुए!
राजस्थानी भाषा की मान्यता के मांग के कारण :-
राजस्थानी भाषा की मान्यता के लंबे समय से चल रहे आंदोलन से प्रदेशवासियों में ही इसे लेकर तर्क-वितर्क किए जाते रहे हैं। वर्तमान में भी ऐसे तर्क-वितर्क का दौर जारी है। कई लोग समर्थन करते हैं, तो कुछ विरोध में आ ही जाते हैं। विरोध करने वाले इसकी मान्यता के कारण पूछते हैं। कई लोग जिन्हें भाषा और मान्यता की समझ नहीं होती है, वो भी अक्सर पूछते हैं कि मान्यता मिल जाने से क्या लाभ होगा?
*हम पहले ही बता देते हैं कि तर्क-वितर्क करने वाले पूछते हैं कि यदि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल जाती है तो मुझे क्या लाभ होगा? तो हम स्पष्ट तौर से बता दे कि इस प्रश्न का उत्तर हम नहीं दे सकते हैं। किंतु वृहद स्तर पर राजस्थानी भाषा की मान्यता से होने वाले लाभ के बारे में हम कुछ कारण बता सकते हैं। सहमति और असहमती प्रकट करना आपका अधिकार है। हमारे द्वारा दिए जाने वाले तर्क विभिन्न आंदोलनकारियों की मांग के पक्ष में उनके द्वारा दिए जाने वाले लाभों को ध्यान में रखते हुए कुछ तर्क निम्नानुसार हैं –
* मातृभाषा में शिक्षा
* राजस्थानी भाषा संरक्षण
* राजस्थानी पहचान
* प्रदेश के लोगों को प्रदेश में रोजगार
* समृद्ध भाषा
* धरोहर और संस्कृति सरंक्षण
* प्रदेश में भाषा मानकीकरण
राजस्थानी भाषा के विरुद्ध लोगों के तर्क :-
राजस्थान के कई भाषा, विशेषज्ञ और सामाजिक संगठन राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। तो कई बार कुछ लोग विरोध करते भी नजर आते हैं। इसी विरोध के चलते अब तक इसे मान्यता नहीं मिली है।