श्री गणेशाय नमः
गीत तुलसी विवाह एकादशी
तर्ज बहारो फूल बरसाओ
सदा ही गेह में रखिए,विटप तुलसी लगाकर के।
बहेगी प्रेम की धारा,कलह भागें तुम्हें डर के।।
नहीं रोगी बनोगे तुम, नहीं भोगी बनोगे तुम।
नहीं ढोंगी बनोगे तुम, बड़े योगी बनोगे तुम।।
मिलेगी मोक्ष गति तुमको,सुखद बैकुंठ भी मर के।।
सदा ही गेह में रखिए,विटप तुलसी लगाकर के।।
सही व्रत जो रखे दिल से, महीने की सभी ग्यारस।
उसे भगवान मिलते हैं, नहीं जीवन बने नीरस।।
शिला भगवान सँग तुलसी,करो शादी अजिर धर के।।
सदा ही गेह में रखिए,विटप तुलसी लगाकर के।।
(अजिर=आँगन)
यही ओझोन को भरती, विकृत किरणें सहन करती।
गरीबों की दवा है ये,हजारों रोग ये हरती।।
करें पशु भी नमन इसको, नहीं खाते इसे चर के।।
सदा ही गेह में रखिए,विटप तुलसी लगाकर के।।(ओझोन=आक्सीजन परत)
राजेश कुमार तिवारी रामू काका
सतना मध्यप्रदेश