गोपाल चतुर्वेदी/मथुरा
लाड़ी लुहाना सिंधी पंचायत सोसायटी ने कराया रक्तदान
स्वामी लीलाशाह की शिक्षाओं से प्रेरित होकर सिंधी युवाओं ने किया रक्तदान
मथुरा, सिंधी जनरल पंचायत द्वारा चल रहे सिंधी उत्सव पखवाड़े के अंतर्गत स्वामी लीलाशाह की शिक्षाओं से प्रेरित होकर लाड़ी लुहाना सिंधी पंचायत सोसायटी द्वारा महर्षि दयानंद सरस्वती जिला चिकित्सालय के ब्लड बैंक में रक्तदान शिविर आयोजित किया गया।
मुख्य संयोजक चंदनलाल आडवानी और संयोजक किशोर इसरानी के नेतृत्व में पलक लखवानी, जितेंद्र, कमल, ललित आडवानी, पूनम चंदानी, तुलसीदास, विनोद आडवानी आदि भाई – बहनों ने स्वैच्छिक रक्तदान करके पुण्य कमाया।
सिंधी उत्सव के मुख्य संयोजक रामचंद्र खत्री ने सभी रक्तदाताओं को बधाई देते हुए कहा कि रक्तदान करके सचमुच महान कार्य किया है, संतों की जयंती पर ऐसे कार्य होने चाहिए।
लाड़ी लुहाना सिंधी पंचायत सोसायटी के अध्यक्ष जीवतराम चंदानी ने कहा कि स्वामी लीलाशाह जी ने भारतीय संस्कृति के पुनरोत्थान तथा सोई हुई आध्यात्मिकता को जगाने के लिये आत्मज्ञान पर बल दिया, वहीं मानवता के लिए बेहतर कार्य किए, उन्हीं की शिक्षाओं से प्रेरित होकर ही रक्तदान किया गया है।
इस मौके पर सिंधी जनरल पंचायत के उपाध्यक्ष तुलसीदास गंगवानी, महासचिव बसंतलाल मंगलानी, मंत्री गुरूमुखदास गंगवानी, चंदामंत्री सुंदरलाल खत्री, भाटिया समाज के अध्यक्ष जितेंद्र भाटिया तथा ब्लड बैंक प्रभारी रितु रंजन, परामर्शदाता शुशीला शर्मा आदि ने रक्तदाताओं का उत्साहवर्धन किया।
शहर में निकलेगी स्वामी लीलाशाह की झांकी
सिंधी समुदाय के मार्गदर्शक आध्यात्मिक गुरू स्वामी लीलाशाह महाराज जी की 144 वीं जयंती नगर में धूमधाम से मनायी जायेगी। पंचायत के अध्यक्ष नारायणदास लखवानी ने बताया कि 3 अप्रैल बुधवार को को प्रातः 6 बजें बहादुर पुरा स्थित स्वामी लीलाशाह सिंधी धर्मशाला से संकीर्तन यात्रा शुरू होगी जिसमें स्वामी लीलाशाह की छवि की आकर्षक झांकी नगर भ्रमण करेगी और समापन पर भजन-कीर्तन होगा।
स्वामी लीलाशाह जी हर किसी को ईश्वर की उपासना व जनसेवा की ओर प्रेरित करने वाले मानवता के सच्चे हितेषी थे। सिंधी लेखक किशोर इसरानी ने बताया कि अखंड भारत के सिंध प्रांत से जुड़े हैदराबाद जिले की टंडे बाग तहसील में महाराव चंडाई नामक गांव में सन् 1880 में ब्रहम क्षत्रिय कुल में स्वामी लीलाशाह जी का जन्म हुआ था।
स्वामी लीलाशाह वेद विद्या और सनातन धर्म के उच्च ज्ञाता थे, वह समाज में व्यप्त कुरीतियों तथा लुप्त होते धार्मिक संस्कारों से काफी दुखी थे। उन्होंने जहां समाज को आध्यात्मिक संदेश दिया वहीं समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने हेतु सबको जागृत किया और दहेज बिना सामुहिक विवाह समारोह के प्रेरक आयोजन शुरू कराये।
किशोर इसरानी ने बताया कि स्वामी लीलाशाह समाज के निर्बल वर्ग की पीड़ा से काफी आहत रहते थे, उन्होंने निर्धन विद्यार्थियों को पाठ्य सामिग्री एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। कई स्थानों पर धर्मशाला, गौशाला, पाठशाला व सत्संग भवन बनवाये, ऐसे महान संत ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में अर्पण करते हुए 4 नवम्बर सन् 1973 को अपना नश्वर शरीर त्याग दिया।