कलचुरी काल का अनमोल रत्न ‘कारीतलाई’ फिर चर्चा में उपेक्षा के साये में 1500 साल
पुरानी धरोहर, राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक और पर्यटन सर्किट घोषित करने की जोरदार मांग
हरिशंकर पाराशर, नई दिल्ली/कटनी

मध्य प्रदेश के कटनी जिले से मात्र 42 किलोमीटर दूर विंध्य और कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में बसा छोटा-सा गाँव कारीतलाई एक बार फिर सुर्खियों में है। 5वीं शताब्दी का विश्व प्रसिद्ध विष्णु-वराह मंदिर, दस फुट ऊँची एकाश्मक वराह मूर्ति, 493 ईसवी का कलचुरी कालीन अभिलेख, भव्य गणेश, शिव-पार्वती, जैन तीर्थंकर प्रतिमाएँ तथा सैकड़ों सलभंजिका जैसी दुर्लभ कलाकृतियाँ यहाँ सदियों से मौजूद हैं। पुरातत्वविद इसे उत्तर भारत के प्राचीन मंदिर-वास्तु और मूर्तिशिल्प का अनुपम संगम मानते हैं, जो खजुराहो और एलोरा से किसी भी मामले में कम नहीं है।
लेकिन स्वतंत्रता के सात दशकों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह राष्ट्रीय धरोहर सरकारी उदासीनता का शिकार बनी हुई है। 17 अगस्त 2006 की रात अंतरराष्ट्रीय तस्करों ने यहाँ के छोटे से पुरातत्व संग्रहालय से 9 अनमोल मूर्तियाँ चोरी कर ली थीं, जिनमें से विष्णु और सलभंजिका की दो प्रतिमाएँ बाद में अमेरिका में बरामद हुईं। फोटोग्राफिक साक्ष्यों से पहचान के बावजूद 18 साल गुजर जाने पर भी ये मूर्तियाँ भारत वापस नहीं लौट सकीं। यह घटना भारतीय पुरातत्व संरक्षण व्यवस्था की पोल खोलती है।
अब स्थानीय ग्रामीण, पुरातत्व प्रेमी, इतिहासकार और विशेषज्ञ एकजुट होकर केंद्र सरकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), मध्य प्रदेश सरकार तथा सांसद-विधायकों से माँग कर रहे हैं कि कारीतलाई को तत्काल राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया जाए तथा इसे प्रमुख पर्यटन सर्किट में शामिल कर आधुनिक सुरक्षा व्यवस्था, संग्रहालय, विजिटर सेंटर, लाइट एंड साउंड शो, अच्छी सड़क, पानी और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएँ विकसित की जाएँ।
प्रख्यात पुरातत्वविद् एवं राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व निदेशक डॉ. के.के. चक्रवर्ती ने कहा, “कारीतलाई का विष्णु-वराह मंदिर परिसर और 493 ई. का शिलालेख मध्य भारत में कलचुरी शक्ति के सबसे प्राचीन और प्रामाणिक साक्ष्य हैं। कलचुरी महाराज लक्ष्मणराज के मंत्री भट्ट सोमेश्वर दीक्षित द्वारा करवाए गए निर्माण का उल्लेख युक्त यह अभिलेख अनमोल है। इसे खजुराहो या एलोरा की तर्ज पर विकसित करने की अपार संभावना है, पर दशकों से सिर्फ घोषणाएँ हो रही हैं, धरातल पर काम शून्य है।”
ग्रामीणों का कहना है कि कलचुरी नरेश कर्ण द्वारा बसाया गया कर्णपुरा (वर्तमान कारीतलाई) प्राचीन गोंड बस्ती के अवशेषों, विशाल तालाब और प्राचीन पाठशाला से समृद्ध है। यहाँ कैमोरी पत्थर की प्रचुरता ने मूर्तिकला को विश्व स्तर की ऊँचाई दी थी। यदि समय रहते संरक्षण होता तो आज कारीतलाई मध्य प्रदेश का एक बड़ा पर्यटन हब होता और अंतरराष्ट्रीय स्मगलरों के निशाने पर नहीं आता।
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संस्कृति मंत्रालय और ASI से सीधा हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है।
सवाल यह है कि 1500 साल पुरानी यह जीवंत धरोहर क्या फिर उपेक्षा के अंधेरे में खो जाएगी या इस बार केंद्र सरकार इसे विश्व मानचित्र पर ला पाएगी? देश की निगाहें अब कारीतलाई पर टिकी हुई हैं।

















Leave a Reply