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स्वर्गीय श्री कोमलचंद जी सुनवाहा को भावभीनी श्रद्धांजलि जन्म 14 जून 1937 देह परिवर्तन 29 अप्रैल 2025

स्वर्गीय श्री कोमलचंद जी सुनवाहा को भावभीनी श्रद्धांजलि जन्म 14 जून 1937 देह परिवर्तन 29 अप्रैल 2025

कविन्द पटैरिया पत्रकार

सुनकर समाचार सबके मन हो गए उदासकोमल चंद कक्का का हो गया देह परिवर्तन
तन से स्वस्थ मन से कोमल नाम के कोमल
कक्का नाम से बच्चा बच्चा क्या साधु संत भी बुलाते
पट्टाचार्य विशुद्ध सागर हो या आचार्य विद्यासागर सभीकोमल कक्का कह आशीर्वाद अपना लुटाते
राजधरलाल की दूसरीपत्नी मैदा देवी से एक पुत्र एक पुत्री का जन्म हुआ
14 जून 1937 को घर आंगन में खुशियां छा गई नाम रखा कोमल

बुद्धि से तेज वाणी से मधुर सहज सरल होनहार होशियार बचपन से धार्मिक संस्कार
हायरसेकेंडरी तक शिक्षा सामाजिक राजनीतिक धार्मिक संस्कार
कस्तूरचंदखेड़ा दयाचंद चंचल रामलाल कोठादार पनाह मोहम्मद उनके बचपन के यार

पढ़कर करने लगे पिता के साथ कपड़ों का व्यापार
18 वर्ष की उम्र में सुशीला देवी के साथ प्रणय सूत्र में बंध गए

कोमल सुशीला के आंगन में कल्पना सुनील अरुण विनय और अभय की किलकारी गूंजी
सभी को योग्य बनाया धार्मिक संस्कार दिए
टीकमगढ़ नगर पालिका के सदस्य चुने गए नया मंदिर के मंत्री एवं अध्यक्ष बने
सूर्य सागर पाठशाला के कोषाध्यक्ष रहे
पपौरा के प्राण रहे

हर पद को सुशोभित किया 40 वर्षों तक गगन चुंगी मंदिरों का कायाकल्प करवाया

सीमांकन कर क्षेत्र को सुरक्षित किया
अपने व्यवहार से पपौरा का भारत भर में नाम रोशन किया

देश के श्रेष्टि वर्ग में अपनी पहचान बनाई
साधु संतों का हमेशा आदर किया

पपौरा में संतों का बिहार कराया
सन 1964 में आचार्य शिवसागर जी का आशीर्वाद मिला

रात्रि भोजन त्याग छान कर पानी पीने का नियम लिया
आचार्य शिवसागर सूर्य सागर आचार्य विद्यासागर वैराग्य सागर विशुद्ध सागर का चौमासा करवाया
पपौरा में आरामदायक सुविधायुक्त धर्मशाला बनवाई

ईमानदारी से अपना काम किया
सत्य को हमेशा सामने रखा
मीठा खाने के बड़े शौकीन लाल मिर्च और नमक भी पहली पसंद

दूध रोटी का भी आनंद लेते थे

यूवाव्यस्था में शिक्षाप्रद सिनेमा भी देखते थे

हर निर्णय पपौराक्षेत्र के हित में लेते थे

चंदा लेने स्वयं भी जाते थे साधु संतों को पपौरा में आमंत्रित करते थे
बच्चों को स्वतंत्र व्यापार की छूट दी
उनके लाभ हानि के हर्ष विषाद से दूर रहे
क्षेत्र के हित में भी की गई यात्राओं का खर्च अपना अपना किया
मेले में सबको बात्सल भोजन कराते थे
पर स्वम घर पर ही खाते थे

ऐसे नाम के कोमल मन के कोमल नहीं था कोई अमल

प्रेम भाव सबसे रखते विरोधियों को भी गले लगाते
ऐसे कक्का के देह परिवर्तन से परिवार के साथ सभी का मन है उदास

आंखों से बहता नीर हृदय में है पीर

परिवार जनों को दुख सहन करने की क्षमता हो

उनके बताएं मार्ग पर चलना ही सच्ची श्रद्धांजलि है

बस यही कामना है बस यही भावना है

ऐसे कक्का जी को मुन्ना सुधा परिवार सहित करते हैं नमन
अर्पित करते हैं श्रद्धा सुमन
सत्सत नमन सत्सत नमन

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