देवी अहिल्याबाई न्याय, त्याग, समर्पण एवं धार्मिकता की प्रतिमूर्ति थीं- रश्मि रघुवंशी
अशोकनगर।
सिटी पब्लिक हाईस्कूल अशोकनगर में शनिवार 30 नवम्बर को पुण्यश्लोक देवी लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की त्रिशताब्दी जन्म जयंती वर्ष का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें मुख्यवक्ता के रुप में जिला आयोजन समिति की जिला सचिव रश्मि रघुवंशी ने विद्यार्थियों एवं स्टाफ को संबोधित करते हुए बताया कि देवी अहिल्याबाई बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की एवं दूरदर्शी बालिका थी, वे अपनी माँ से ईश्वर भक्ति सीखी थी, वे शिव जी की अनन्य भक्त थी। एक बार होल्कर राज्य के सूबेदार मल्हारराव अहिल्या बाई के चाँडी गांव से होकर निकल रहे थे। मन्दिर से मधुर ध्वनि सुनाई दी, तो मल्हारराव ने पूछा कि यह आवाज किसकी है? गांव वालों ने बताया कि यह मनकोजी राव की बेटी अहिल्याबाई है, मल्हारराव उससे मिलने के लिए घर गए और अहिल्याबाई की निर्लिप्त भाव देखकर उन्होंने अपनी पुत्रवधू बनाने का निर्णय लिया इस प्रकार 12 वर्ष की उम्र में अहिल्याबाई होल्कर परिवार की बहू बनकर इंदौर आई। 12 वर्ष से 15 वर्ष तक सास एवं ससुर ने अहिल्याबाई को गृह संचालन से लेकर राज्य संचालन,युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया और सभी राज्यों से पत्राचार का कार्य अहिल्याबाई ही करती थीं, अपने ससुर के मार्गदर्शन में वे सारे राजकाज संभालने लगीं। उनके एक पुत्र एवं एक पुत्री हुई, जब वे 29 वर्ष की थीं तो उनके पति वीरगति को प्राप्त हुए। 6 वर्ष बाद उनके ससुर मल्हार राव भी चल बसे, इनके 1 वर्ष बाद पुत्र भी चल बसा। अब अफगानी लुटेरों ने राज्य को लूटना शुरू कर दिया, इधर जंगलों में भीलों ने राहगीरों को लूटना शुरू कर दिया । अहिल्याबाई ने घोषणा की कि मेरे राज्य में जो भी प्रजा को सुखी करेगा, लूट करने वालों और डकैतों को भगाएगा उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दूंगी। एक युवा यशवंत राव फड़के ने चुनौती स्वीकार की।इस प्रकार अहिल्याबाई ने अपनी पुत्री का विवाह यशवंतराव से किया क्योंकि यशवंत राव ने बाहर के लुटेरों को मार भगाया और अंदर के लुटेरे भीलों को औषधि कामों में लगाया राज्य की सुरक्षा में लगाया और कुछ उद्योग कार्यों में पुनर्वासन किया। इस प्रकार राज्य सुचारू रूप से चलने लगा। देवी अहिल्याबाई ने अपने जीवन काल में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया पूरे भारत में जहां-जहां भी मुगलों ने मंदिरों को तोड़ा था उन मंदिरों का जीर्णोंधार कराया, रामेश्वर सोमनाथ काशी विश्वनाथ अयोध्या मथुरा कांची गोकर्ण मंदिर हरिद्वार ऋषिकेश महाकाल महेश्वर आदि सभी मंदिरों का जीर्नोद्धार कराया। हिमालय में भी उन्होंने कई देवालय बनवाये। पवित्र नदियों के घाट बनवाये, अनेक सड़कों के निर्माण कराए, नौ किलों का निर्माण कराया। तोपखाना बनवाया, ज्वाला नाम की तोप बहुत प्रसिद्ध थी।अहिल्याबाई किसानों से बहुत कम कर लेती थीं, प्रत्येक गांव में गोचर भूमि रखवाती थीं और सड़कों के निर्माण के समय दोनों ओर फलदार वृक्ष लगवाती थीं ताकि पक्षियों को भोजन मिले। जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण का बहुत कार्य करती थीं। धर्म के साथ-साथ समाज सेवा का कार्य भी करती थीं उनके राज्य में सामाजिक समरसता थी। जाति भेद का कोई कार्य नहीं था वह सभी की योग्यता अनुसार कार्य विभाजन करती थीं। देवी अहिल्याबाई न्याय की प्रतिमूर्ति थी, न्याय के मामले में उन्होंने अपने पति एवं पुत्र को भी क्षमा नहीं किया। महिलाओं की शिक्षा एवं आर्थिक रूप से मजबूती के लिए उन्होंने कुटीर उद्योगों की स्थापना की, महेश्वरी साड़ी उद्योग लगाए महिलाओं की सेना बनाई, गांव-गांव में महिलाओं की टुकड़ियों बनाई ताकि महिलाएं ही महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करें। पंडित कैलाशपति नायक जी ने लोकमाता एवं राजमाता का अर्थ बच्चों को समझाया एवं देवी अहिल्याबाई के पराक्रम, सादगी, उनके आचरण, उनकी धार्मिक आस्था एवं शिव भक्ति से बच्चों को अवगत कराया। कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य नवीन कुमार जैन ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया, मंच संचालन महेंद्र जैन ने किया एवं अध्यक्षता धनंजय कुमार जैन ने की ,स्टाफ के बलराम नायक जी ने व्यवस्था संभाली।