सवांददाता नरसीराम शर्मा बीकानेर श्रीडूंगरगढ
पंचांग का अति प्राचीन काल से ही बहुत महत्त्व माना गया है।शास्त्रों में भी पंचांग को बहुत महत्त्व दिया गया है और पंचाग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना गया है।पंचांग में सूर्योदय सूर्यास्त, चद्रोदय-चन्द्रास्त काल, तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त, योगकाल, करण, सूर्य-चंद्र के राशि, चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं।
🙏श्री गणेशाय नमः🙏
🙏जय श्री कृष्णा🙏
चोघडिया, दिन
चर 06:16 – 07:51 शुभ
लाभ 07:51 – 09:26 शुभ
अमृत 09:26 – 11:02 शुभ
काल 11:02 – 12:37 अशुभ
शुभ 12:37 – 14:12 शुभ
रोग 14:12 – 15:48 अशुभ
उद्वेग 15:48 – 17:23 अशुभ
चर 17:23 – 18:58 शुभ
चोघडिया, रात
रोग 18:58 – 20:23 अशुभ
काल 20:23 – 21:48 अशुभ
लाभ 21:48 – 23:13 शुभ
उद्वेग 23:13 – 24:37* अशुभ
शुभ 24:37* – 26:02* शुभ
अमृत 26:02* – 27:27* शुभ
चर 27:27* – 28:51* शुभ
रोग 28:51* – 30:16* अशुभ
(*) समय आधी रात के बाद, लेकिन अगले दिन के सूर्योदय से पहले.
🙏🏻आज का राशिफल🙏🏻
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आपका आज का दिन व्यस्तता से भरा रहेगा फिर भी काम से मन चुराने के कारण लोगो की आलोचना का सामना करना पड़ेगा। आज आपकी सोची हुई योजनाए अधूरी रह सकती है। घरेलू कार्यो के कारण व्यावसायिक कार्य मे देरी होगी जिससे बाद में कार्यो को जल्दबाजी में करने से हानि की संभावना है। नये कार्य अथवा व्यापार में विस्तार की योजना फिलहाल स्थगित रखें। आज अकस्मात हानि की भी संभावना है जिसका गुस्सा सहकर्मियो पर फूटेगा। घर एवं बाहर सुधार का प्रयास करने पर भी अव्यवस्था ही रहेगी। विपरीत लिंगीय आकर्षण नई मुसीबत में डाल सकता है सावधान रहें।
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन आप संतोषी भावना रहने के चलते सुख से बितायेंगे। कार्य क्षेत्र पर मन मे चल रही दुविधा के कारण कुछ विशेष आयोजन नही कर सकेंगे। आर्थिक लाभ की गति भी न्यून रहेगी फिर भी आप इन बातो को ज्यादा महत्त्व नही देंगे। धार्मिक अनुष्ठानों पूजा पाठ में सम्मिलित होंगे इनपर खर्च भी करेंगे। व्यवसायी लोगो को नए अनुबंध मिल सकते है जिससे भविष्य की आर्थिक योजनाए बल पकड़ेंगी। पारिवारिक जीवन आपके व्यवहार कुशलता से आनंद में रहेगा लेकिन महिलाये आज कुछ अनैतिक मांग पूरी करने पर अड़ सकती है।
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज के दिन का आरंभ केवल आश्वासनों में बीतेगा। किसी महत्त्वपूर्ण कार्य को लेकर किसी के निर्णय की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। नौकरी वाले जातक अधिक कार्य आने से असहज महसूस करेंगे। व्यवसायी वर्ग भी मध्यान के पहले समय तक उदासीनता से ग्रस्त रहेंगे। परन्तु मध्यान के बाद का समय बेहतर रहेगा। रुके कार्य मे गति आएगी व्यवसाय में बिक्री बढ़ेगी धन की आमद होने से अधूरे कार्य पूर्ण कर सकेंगे। महिलाओं की भावनाएं आज पल-पल में बदलेंगी जिससे सही निर्णय लेने में दिक्कत आएगी। बड़े लोगो से स्वार्थ सिद्धि पूर्ण कर लेंगे।
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज के दिन आप घर एवं व्यवसाय में तालमेल बैठाने के कारण दुविधा में रहेंगे। एक कार्य को करने के चक्कर मे अन्य आयवश्यक कार्य अधूरे रहेंगे। आलस्य भी आज अधिक रहेगा फिर भी मजबूरी में मेहनत करनी पड़ेगी परन्तु मन मे चंचलता एवं अनिर्णय की स्थिति लाभ से वंचित रखेगी। आर्थिक कारणों से घर की महिलाओं अथवा अन्य सदस्यों से कलह हो सकती है। मध्यान के समय शारीरिक कमजोरी अनुभव होगी थोड़ा आराम अवश्य करें। धार्मिक आयोजनों में सम्मिलित होने के कारण घरेलू कार्य अस्त-व्यस्त रहेंगे। महिलाये घर की परिस्थिति से अधिक चिंतित रहेंगी।
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज दिन का पूर्वार्ध लाभ दायक रहेगा परन्तु ले देकर कार्य करने की प्रवृति कुछ ना कुछ कमी अवश्य रखेगी। महिलाये आज अधिक शंकालु रहेंगी घर में कलह का कारण भी यही समस्या रहेगी। सरकारी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य दोपहर से पहले पूर्ण कर लें इसके बाद परिस्थिति विपरीत हो जाएगी। किसी भी कार्य मे प्रयत्न करने पर भी सफलता संदिग्ध रहेगी। आर्थिक समस्याएं खड़ी होंगी। नौकरी पेशा जातक अधिकारी वर्ग के रूखे व्यवहार से आहत हो सकते है। आज खर्च आकस्मिक बढ़ने से उधार लेने की नौबत आ सकती है यथासंभव आज ना ही लें। संतानो के कारण असुविधा होगी।
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज के दिन आप जिस भी कार्य को करेंगे उसमे सफलता अवश्य मिलेगी परन्तु प्रारंभ में कुछ परेशानियां देख कर हतोत्साहित ना हो जाये निरंतर प्रयासरत रहें। महिलावर्ग की आर्थिक विषयो में स्पष्टता ना रखने की वजह से आलोचना होगी सावधान रहें। कार्य क्षेत्र पर सहयोगियो से मिल कर रहें विचार ना मिलने पर भी मौन रहें अन्यथा व्यर्थ बहस हो सकती है। मध्यान के बाद का समय ज्यादा बेहतर रहेगा मेहनत का फल मिलने लगेगा। पारिवारिक वातावरण में थोड़ी गरमा गर्मी के बाद स्थिति सामान्य हो जाएगी। रिश्तेदारो से आनंददायक समाचार मिलेंगे। धर्म-कर्म में आस्था बढ़ेगी।
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज के दिन आप आध्यत्म के रंग में रंगे रहेंगे। दान-पुण्य कर पुण्य के भागी बंनेंगे। आज आपका सामाजिक दायरा भी बढेगा जिससे आने वाले समय मे लाभ की प्राप्ति होगी। व्यवसायीजन कामो के प्रति थोड़े उदासीन रहेंगे फिर भी दिन का आरंभिक भाग थोड़ा कष्ट दायीं रहेगा इसके बाद का समय धन के साथ सम्मान में वृद्धि करने वाला रहेगा। विरोधी प्रबल रहेंगे बीच मे किसी से व्यर्थ की नोंकझोंक भी हो सकती है। आप पैतृक कार्यो की अनदेखी करेंगे फिर भी इनसे कुछ ना कुछ लाभ अवश्य होगा। महिलाये किसी प्रसंग को लेकर जली भुनी रहेंगी।
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आपके लिए आज का दिन प्रतिकूल फलदायी रहेगा। सामाजिक क्षेत्र पर आज नए लोगो से जानपहचान होगी लेकिन आज मन राग द्वेष एवं हीन भावना से ग्रस्त रहने के कारण नये सम्बन्धो से लाभ नही उठा सकेंगे। स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव बना रहेगा रक्त-पित्त अथवा गैस संबंधित समस्या शरीर को शिथिल रखेंगी। परिवार में किसी सदस्य की आकस्मिक बीमारी के कारण भाग-दौड़ के साथ धन व्यय होगा। व्यवसाय क्षेत्र एवं घर पर आज आर्थिक कारणों से कई आयवश्यक कार्य लटके रहेंगे। उधार के व्यवहार आज ना करें। किसी पुराने प्रेमीजन से मिलकर हर्ष होगा।
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन कुछ विषयो को छोड़ विजय दिलाने वाला रहेगा। विद्यार्थ वर्ग को अध्ययन में बेहतर परिणाम मिलेंगे। व्यवसायी लोग भी आज अपने अधूरे कार्य पूर्ण होने से राहत की सांस लेंगे परन्तु आज कार्य क्षेत्र पर किसी से गरमा गर्मी हो सकती है जिससे कार्य कुछ समय के लिए प्रभावित होंगे। आज नए अनुबंध पाने के लिए ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ेगी। धन संबंधित उलझने कुछ हद तक शांत रहेंगी। घर के बुजुर्ग अथवा महिलाये आज अकारण ही क्रोध कर सकते है जिससे वातावरण कुछ समय के लिए अशान्त बनेगा धैर्य बनाये रखें।
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आपका आज का दिन सामान्य रहेगा फिर भी पारिवारिक संबंधो को जोड़ कर रखने का प्रयास करें। आज आपके विचारों में प्रखरता एवं विवेकी कार्यशैली रहने से आपसी विवादों को बढ़ने नही देंगे परन्तु किसी व्यक्ति द्वारा हद से ज्यादा अमर्यादित व्यवहार करने पर आप भी अपना धैर्य खो सकते है ध्यान रहे इसके परिणाम आगे गंभीर हो सकते है धैर्य से काम लें। सरकारी अथवा किसी भी प्रकार के जमीन-जायदाद संबंधित कार्य मे उलझने पड़ेंगी यथा संभव आज टालें। आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लेने से थोड़ी मानसिक शांति मिलेगी। धन के व्यवहारों में जबरदस्ती ना करें। सन्तानो को ज्यादा छूट ना दें।
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आपका आज का दिन थोड़ा उठापटक वाला रहेगा। प्रातः काल के समय किसी के मनमाने रवैये के कारण परेशान रह सकते है। परन्तु आर्थिक दृष्टिकोण से आज का दिन शुभ रहेगा। व्यवसाय में कई दिनों से रुके पैसे वापस मिलने से शान्ति मिलेगी। घर एवं बाहर के लोग भी आपकी बौद्धिक क्षमता की प्रशंशा करेंगे। लेकिन घर का वातावरण किसी गलतफहमी के कारण खराब होने की संभावना है आवश्यकता पड़ने पर ही किसी की बातों का जवाब दें अन्यथा मौन बनाये रखें व्यर्थ कलह से बचेंगे। महिलाये शुभ समाचार मिलने से प्रसन्न होंगी परन्तु किसी अन्य कारण से मानसिक उद्देग बनेगा।
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज के दिन का पूर्वार्ध भी परेशानियों वाला रहेगा। आकस्मिक किसी कार्य के आने से पूर्वनियोजित कार्यक्रम में बदलाव करना पड़ेगा। कार्य क्षेत्र पर भी प्रतिस्पर्धी हावी रहेंगे जिससे व्यवसाय विस्तार की योजना अधर में रहेगी। धन लाभ के लिए मध्यान तक तरसना पड़ेगा इसके बाद परिस्थिति आपके लिए अनुकूल बनेगी। धर्म के प्रति आस्था जागेगी जिससे मानसिक शांति मिलेगी धन लाभ भी अकस्मात ही होगा।सेहत आज छोटी मोटी बातों को छोड़ सामान्य रहेगी। पारिवारिक वातावरण में शांति रहते हुए अचानक विरोधी वातावरण बनने से थोड़ा असहजता आएगी।
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श्रीमद्भागवत प्रसंग – (१६३४)
भाई-बहनों, आज शुक्रवार है, आज हम आपको माता लक्ष्मी औऱ उनकी बहिन दरिद्रता देवी की कथा विस्तार से बतायेगें लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। लक्ष्मी, भगवान विष्णु की पत्नी और धन,सम्पदा,शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। देवी की जितनी भी शक्तियाँ मानी गयी हैं। उन सब की मूल भगवती लक्ष्मी ही हैं। ये ही सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति हैं। लक्ष्मी जी की अभिव्यक्ति दो रूपों में देखी जाती है-ये दो होकर भी एक हैं और एक होकर भी दो हैं। दोनों ही रूपों में ये भगवान विष्णु की पत्नी हैं। इनकी थोड़ी-सी कृपा प्राप्त करके व्यक्ति वैभववान हो जाता है। भगवती लक्ष्मी कमलवन में निवास करती हैं। कमल पर बैठती हैं और हाथ में कमल ही धारण करती हैं। समस्त सम्पत्तियों की अधिष्ठात्री श्रीदेवी शुद्ध सत्त्वमयी हैं। विकार और दोषों का वहाँ प्रवेश भी नहीं है। भगवान जब-जब अवतार लेते हैं। तब-तब भगवती महालक्ष्मी भी अवतीर्ण होकर उनकी प्रत्येक लीला में सहयोग देती हैं। इन्हें धन की देवी माना जाता है और नित्य लक्ष्मी जी का भजन पूजन और लक्ष्मी जी की आरती करते हैं। इनके आविर्भाव (प्रकट होने) की कथा इस प्रकार है-महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से एक त्रिलोक सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह समस्त शुभ लक्षणों से सुशोभित थी। इसलिये उसका नाम लक्ष्मी रखा गया। धीरे-धीरे बड़ी होने पर लक्ष्मी ने भगवान नारायण के गुण-प्रभाव का वर्णन सुना। इससे उनका हृदय भगवान में अनुरक्त हो गया। वे भगवान नारायण को पतिरूप में प्राप्त करने के लिये समुद्र तट पर घोर तपस्या करने लगीं। उन्हें तपस्या करते-करते एक हज़ार वर्ष बीत गये। उनकी परीक्षा लेने के लिये देवराज इन्द्र भगवान विष्णु का रूप धारण करके लक्ष्मी देवी के पास आये और उनसे वर माँगने के लिये कहा- लक्ष्मी जी ने उनसे विश्वरूप का दर्शन कराने के लिये कहा। इन्द्र वहाँ से लज्जित होकर लौट गये। अन्त में भगवती लक्ष्मी को कृतार्थ करने के लिये स्वयं भगवान विष्णु पधारे। भगवान ने देवी से वर माँगने के लिये कहा। उनकी प्रार्थना पर भगवान ने उन्हें विश्वरूप का दर्शन कराया। तदनन्तर लक्ष्मी जी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।
लक्ष्मी देवी की दूसरी कथा
लक्ष्मी जी के प्रकट होने का दूसरी कथा इस प्रकार है- एक बार महर्षि दुर्वासा घूमते-घूमते एक मनोहर वन में गये। वहाँ एक विद्याधरी सुन्दरी ने उन्हें दिव्य पुष्पों की एक माला भेंट की। माला लेकर उन्मत्त वेशधारी मुनि ने उसे अपने मस्तक पर डाल लिया और पुन: पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे। इसी समय दुर्वासा जी को देवराज इन्द्र दिखायी दिये। वे ऐरावत पर चढ़कर आ रहे थे। उनके साथ अन्य देवता भी थे। महर्षि दुर्वासा ने वह माला इन्द्र को दे दी। देवराज इन्द्र ने उसे लेकर ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत ने माला की तीव्र गन्ध से आकर्षित होकर उसे सूँड़ से उतार लिया और अपने पैरों तले रौंद डाला। माला की दुर्दशा देखकर महर्षि दुर्वासा क्रोध से जल उठे और उन्होंने इन्द्र को श्री भ्रष्ट होने का शाप दे दिया। उस शाप के प्रभाव से इन्द्र श्री भ्रष्ट हो गये और सम्पूर्ण देवलोक पर असुरों का शासन हो गया। समस्त देवता असुरों से संत्रस्त होकर इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मा जी की सलाह से सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये। भगवान विष्णु ने उन लोगों को असुरों के साथ मिलकर क्षीरसागर को मथने की सलाह दी। भगवान की आज्ञा पाकर देवगणों ने दैत्यों से सन्धि करके अमृत-प्राप्ति के लिये समुद्र मंथन का कार्य आरम्भ किया। मन्दराचल की मथानी और वासुकि नाग की रस्सी बनी। भगवान विष्णु स्वयं कच्छपरूप धारण करके मन्दराचल के आधार बने। इस प्रकार मन्थन करने पर क्षीरसागर से क्रमश:कालकूट विष,कामधेनु उच्चैश्रवा नामक अश्व,सऐरावत हाथी,कौस्तुभमणि,कल्पवृक्ष अप्सराएँ,लक्ष्मी,वारुणी,चन्द्रमा,शंख,शांर्ग धनुष धन्वंतरि और अमृत प्रकट हुए। क्षीरसमुद्र से जब भगवती लक्ष्मी देवी प्रकट हुईं। तब वे खिले हुए श्वेत कमल के आसन पर विराजमान थीं। उनके श्री अंगों से दिव्य कान्ति निकल रही थी। उनके हाथ में कमल था। लक्ष्मी जी का दर्शन करके देवता और महर्षि गण प्रसन्न हो गये। उन्होंने वैदिक श्रीसूक्त का पाठ करके लक्ष्मी देवी का स्तवन किया। सबके देखते-देखते वे भगवान विष्णु के पास चली गयीं। लक्ष्मी की बहिन दरिद्रा मां लक्ष्मी के परिवार में उनकी एक बड़ी बहन भी है जिसका नाम है- दरिद्रा। इस संबंध में एक पौराणिक कथा है कि इन दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था इसलिये एक बार माँ लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो? पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा अतः श्री विष्णु ने कहा, आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो। इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी। जब विष्णु भगवान ने माँ लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी। अत: उन्होंने दरिद्रा से पूछा वो कैसा वर पाना चाहती हैं। तो वह बोली कि वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो। श्री विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला। दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी। श्री विष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी। धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है। जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। अत:हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है।
अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत ज़रूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।Cएक बार लक्ष्मी ने गौओं के समूह में प्रवेश किया। गौओं ने उस रूपवती का परिचय पूछा। लक्ष्मी ने बताया कि उसका सहवास सबके लिए सुखकर है तथा वह लक्ष्मी है और उसके साथ रहना चाहती है। गौओं ने पहले तो लक्ष्मी को ग्रहण करना स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वह स्वभाव से ही चंचला मानी जाती है, फिर लक्ष्मी के बहुत अनुनय-विनय पर उन्होंने उसे अपने गोबर तथा मूत्र में रहने की आज्ञा प्रदान की। सृष्टि के आदि में राधा और कृष्ण थे। राधा के वामांग से लक्ष्मी प्रकट हुई। कृष्ण ने भी दो रूप धारण किये- एक द्विभुज और एक चतुर्भुज। द्विभुज कृष्ण राधा के साथ गोलोक में तथा चतुर्भुज विष्णु महालक्ष्मी के साथ बैकुंठ चले गये। एक बार दुर्वासा के शाप से इन्द्र श्री भ्रष्ट हो गये। मृत्युलोक में देवगण एकत्र हुए। लक्ष्मी ने रुष्ट होकर स्वर्ग त्याग दिया तथा वह बैकुंठ में लीन हो गयीं। देवतागण बैकुंठ पहुंचे तो पुराण पुरुष की आज्ञा से लक्ष्मी सागर-पुत्री होकर वहां चली गयीं। देवताओं ने समुद्र मंथन में पुन: लक्ष्मी को प्राप्त किया। लक्ष्मी ने सागर से निकलते ही क्षीरसागरशायी विष्णु को वरमाला देकर प्रसन्न किया।
भृFगु के द्वारा ख्याति ने धाता और विधाता नामक दो देवताओं को तथा लक्ष्मी को जन्म दिया। लक्ष्मी कालांतर में विष्णु की पत्नी हुई। लक्ष्मी नित्य, सर्वव्यापक है। पुरुषवाची भगवान हरि है और स्त्रीवाची लक्ष्मी, इनसे इतर और कोई नहीं है। एक बार शिव के अंशावतार दुर्वासा को याचना करने पर एक विद्याधरी से संतानक पुष्पों की एक दिव्य माला उपलब्ध हुई। ऐरावत हाथी पर जाते हुए इन्द्र को उन्होंने वह माला दे दी। तदुपरांत इन्द्र ने अपने हाथी को पहना दी। हाथी ने पृथ्वी पर डाल दी। इस बात से रुष्ट होकर दुर्वासा ने इन्द्र को श्रीहीन होने का शाप दिया। समस्त देवता तथा जगत के तत्त्व श्रीहीन हो गये तथा दानवों से परास्त हो गये।
वे सब ब्रह्मा की शरण में गये। उन्होंने विष्णु के पास भेजा। विष्णु ने दानवों के सहयोग से समुद्र मंथन का संपादन किया। समुद्र मंथन में से लक्ष्मी (श्री) पुन: प्रकट हुई तथा विष्णु के वक्ष पर स्थित हो गयी। इन्द्र की पूजा से प्रसन्न होकर उन्होंने वर दिया कि वह कभी पृथ्वी का त्याग नहीं करेंगी। जब भी विष्णु अवतरित होते हैं श्री सीता,रुक्मिणी आदि के रूप में प्रकट होती हैं