• आप ध्यान से अपने आप से पूछिए । घड़ा टूट जाने के बाद मिट्टी बनता है कि घड़ा रहते हुए भी मिट्टी रहता है?
परमब्रहम परमात्मा निखिल सृष्टि का अभिन्न निमित्तोंपादान कारण है ।
ध्यान दीजिए, परमब्रहम राम का स्वरूप के बारे में । चूँकि सनातन आर्य वैदिक हिन्दू सिद्धांत में राम श्रृष्टि के अभिन्न निमित्तोंपादान कारण है । इसलिए, प्रपंच ज्यों का त्यों बना रहता है और तत्वज्ञ के लिए वह ब्रह्म स्वरूप हो जाता है ।अब जिसका दिमाग़ अभी बच्चे का है वह घड़े को पहचानता है और जो थोड़ा सोचता है वह मिट्टी को देख सकता है ।
घड़ा फूटने पर भी मिट्टी है, घड़ा, घड़ा रहते हुए भी मिट्टी है । यह संसार नष्ट हो जाने पर ब्रह्म होता है या महाप्रलय के बाद ब्रह्म का साक्षात्कार होता है, यह दूत और पूत वालों का दर्शन है ।सनातन वैदिक आर्य हिन्दू दर्शन की सोच एकदम स्पष्ट है । आपको घड़ा टूटने का इंतिजार नहीं करना है मिट्टी के लिए । आपको महाप्रलय या जजमेंट डे या क़यामत का इंतिजार नहीं करना है । बल्कि आपको जितनी भी आकृति दिखे ( सगुण साकार, सगुण निराकार या निर्गुण निराकार ) और चाहे जितने भी नाम हों तत्वज्ञ की दृष्टि से सब कुछ राम है ।
अब आकृतियों की मैंने बात क्यों करी है ? आप बहुत ध्यान से सोचिए, आकृतियाँ भी नित्य होती हैं ।आकार अनेक होने पर उसमें जो निराकार धातु होती है उसे समझने की जिज्ञासा होती है । किसी ने कान में कुंडल पहना है, हाथ में कंगन पहना है, नाक में नथुनी पहनी है, ऊँगली में अँगूठी पहनी है । और सबके आकार अलग अलग हैं तो सोना क्या है यह जानने की जिज्ञासा होती है ।
निराकार निर्गुण वाले मान लेते हैं या एक ही आकार मानने वाले भी मान ही लेते हैं पर जिज्ञासा नहीं होती । सनातन वैदिक आर्य हिन्दू सिद्धांत में विष्णु भी हों, ब्रह्मा भी हों, शिव भी हों, लक्ष्मी भी हों , पार्वती भी हों, राम भी हों , कृष्ण भी हों , सीता भी हों , राधा भी हों तो ब्रह्म क्या है , कैसा है यह जानने की जिज्ञासा होती है ।गोस्वामी जी अंत में भगवान राम को प्रणाम करते हैं । राम को प्रणाम चार प्रकार से करते हैं । सबसे पहले तुलसीदास जी ने भगवान राम के माया का प्रभाव बताया । उन्होंने लिखा कि संपूर्ण श्रृष्टि राम के वश में है । उसके बाद राम की सत्ता की व्याख्या करते हैं । तुलसीदास जी कहते हैं कि यह राम की सत्ता का ही प्रभाव है कि मिथ्या संसार एकदम सच्चा दिखाई देता है । अर्थात झूठी दुनिया को सच्ची प्रतीत कराने वाली सत्ता, राम की सत्ता है ।
तुलसीदास जी राम के माया और सत्ता के बाद साधन तत्व पर जाते हैं । कहते हैं कि राम की भक्ति ही वह मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य भवसागर पार कर लेता है । राम के चरणों की शरणागति ही माया से और जगत प्रपंच से मुक्त कर सकती है और चौथी बात जो तुलसीदास जी ने बताई, वह श्री राम का स्वरूप था । कहते हैं जिसमें सारा विश्व रमण करे उसका नाम राम है । और जो सबमें रमे उसका नाम भी राम है ।
ये राम कैसा है ?????
अब ध्यान से पढ़िए । संसार में एक कार्य होता है और एक कारण होता है । जैसे आपके पिताजी कारण थे तो आप कार्य हुए । जब आप कारण बनेंगे तो आपका बेटा कार्य होगा । यही संसार है । कारण और कार्य में बधा हुआ । आज जो कार्य है कल कारण हो जाएगा । यह आदि और अनादि तक चलता रहता है ।