भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म माता देवकी व वासुदेव जी की आठवीं संतान के रूप में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि 12:00 बजे हुआ था।
इस बार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 26 अगस्त, सोमवार को मध्य रात्रि 2:00 बजे तक रहेगी। अतः अबकी बार जन्माष्टमी व्रत 26 अगस्त 2024, सोमवार को रखा जाएगा।
जन्माष्टमी मुहूर्त्त :- 26 अगस्त 2024, सोमवार,
निशीथ पूजा मुहूर्त :- मध्य रात्रि 12:00 से 12:45 तक
अवधि :- 0 घंटे 44 मिनट
जन्माष्टमी विशेष :
जन्माष्टमी के दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कथाओं का श्रवण, नाम जप, मंत्र जप इत्यादि किया जाता है। पूरे दिन व्रती व्रत रहने के बाद रात में 12 बजे विधि विधान से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण को तुलसी दल के साथ सात्विक वस्तुओं का भोग लगाया जाता है उसके उपरांत व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी क्या है?
कृष्ण के जन्म से पहले ही उनकी मृत्यु का षड्यंत्र रचा जाना और कारावास जैसे नकारात्मक परिवेश में जन्म होना किसी त्रासदी से कम नही था। परन्तु विपरीत वातावरण के बाद भी नंदलाला, वासुदेव के पुत्र ने जीवन की सभी विधाओं को बहुत ही उत्साह से जिवंत किया है। श्री कृष्ण की संर्पूण जीवन कथा कई रूपों में दिखाई पङती है।
नटवरनागर श्री कृष्ण उस संर्पूणता के परिचायक हैं जिसमें मनुष्य, देवता, योगीराज तथा संत आदि सभी के गुणं समाहित है। समस्त शक्तियों के अधिपति युवा कृष्ण महाभारत में कर्म पर ही विश्वास करते हैं। कृष्ण का मानवीय रूप महाभारत काल में स्पष्ट दिखाई देता है। गोकुल का ग्वाला, बिरज का कान्हा धर्म की रक्षा के लिए रिश्तों के मायाजाल से दूर मोह-माया के बंधनों से अलग है।
कंस हो या कौरव पांडव, दोनो ही निकट के रिश्ते फिर भी कृष्ण ने इस बात का उदाहरण प्रस्तुत किया कि धर्म की रक्षा के लिए रिश्तों की अपेक्षा कर्तव्य को महत्व देना आवश्यक है। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि कर्म प्रधान गीता के उपदेशों को यदि हम व्यवहार में अपना लें तो हम सब की चेतना भी कृष्ण सम विकसित हो सकती है।
कृष्ण का जीवन दो छोरों में बंधा है। एक ओर बांसुरी है, जिसमें सृजन का संगीत है, आनंद है, अमृत है और रास है। तो दूसरी ओर शंख है, जिसमें युद्ध की वेदना है, गरल है तथा निरसता है। ये विरोधाभास ये समझाते हैं कि सुख है तो दुःख भी है।
यशोदा नंदन की कथा किसी द्वापर की कथा नही है, किसी ईश्वर का आख्यान नही है और ना ही किसी अवतार की लीला। वो तो यमुना के मैदान में बसने वाली भावात्मक संवेदना की पहचान है। यशोदा का नटखट लाल है तो कहीं द्रोपदी का रक्षक, गोपियों का मनमोहन तो कहीं सुदामा का मित्र। हर रिश्ते में रंगे कृष्ण का जीवन नवरस में समाया हुआ है।
माखन चोर, नंदकिशोर के जन्म दिवस पर मटकी फोङ प्रतियोगिता का आयोजन, खेल-खेल में समझा जाता है कि किस तरह स्वयं को संतुलित रखते हुए लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है; क्योंकि संतुलित और एकाग्रता का अभ्यास ही सुखमय जीवन का आधार है। सृजन के अधिपति, चक्रधारी मधुसूदन का जन्मदिवस उत्सव के रूप में मनाकर हम सभी में उत्साह का संचार होता है और जीवन के प्रति सृजन का दृष्टिकोण जीवन को सुंदर बना देता है।