बैंकिंग नियमों की दोहरी नीति: व्यक्तिगत ग्राहकों पर कड़ा शिकंजा, जबकि कॉर्पोरेट्स के लिए रियायतें क्यों?
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Rajat Bisht
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• बैंकिंग नियमों की दोहरी नीति: व्यक्तिगत ग्राहकों पर कड़ा शिकंजा, जबकि कॉर्पोरेट्स के लिए रियायतें क्यों?
RBI द्वारा हाल ही में जारी किए गए नए नियमों के तहत अब बैंकों को हर 15 दिन में ग्राहकों का क्रेडिट स्कोर चेक करने का आदेश दिया गया है। इसका मकसद ग्राहकों को उनके कर्ज के प्रति जिम्मेदार बनाना और डिफॉल्ट की स्थिति में बैंकों को नुकसान से बचाना है। यह कदम उन छोटे कर्जदारों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो सीमित आय पर निर्भर हैं। दूसरी ओर, यह देखा गया है कि बड़े कॉर्पोरेट्स को पिछले कुछ वर्षों में बैंकों से भारी रियायतें और लोन माफी मिली हैं। आइए, इस दोहरी नीति के पीछे के कारणों और इसके प्रभावों का विश्लेषण करते हैं।
1. छोटे कर्जदारों पर कड़ी निगरानी:
RBI के नए नियमों के तहत व्यक्तिगत ग्राहकों का क्रेडिट स्कोर हर 15 दिन में अपडेट होगा। इसका सीधा मतलब है कि कर्ज लेने वाले व्यक्तियों को अपने आर्थिक व्यवहार में अत्यधिक सावधानी बरतनी होगी। एक छोटी सी चूक भी उनके क्रेडिट स्कोर को प्रभावित कर सकती है, जिससे भविष्य में उन्हें ऋण प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है। यह कदम बैंकों के जोखिम को कम करने के लिए उठाया गया है, लेकिन इसका प्रभाव उन लोगों पर भी पड़ेगा जो पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।
2. कॉर्पोरेट्स को मिलती रियायतें:
इसके विपरीत, बड़े कॉर्पोरेट्स को पिछले कुछ वर्षों में 17 लाख करोड़ रुपये तक के कर्ज माफ किए गए हैं, और बैंकों ने उनके कर्ज पर बड़े-बड़े “हैरकट्स” लिए हैं। हैरकट का मतलब है कि बैंकों ने कर्ज की वसूली में भारी छूट दी है, जिससे कंपनियों को फायदा हुआ है। यह असंतुलन इस सवाल को जन्म देता है कि क्यों बैंकों ने बड़े कॉर्पोरेट्स के मामलों में इतनी नरमी बरती जबकि व्यक्तिगत ग्राहकों के लिए नियम इतने सख्त हैं।
3. दोहरी नीति का कारण:
कॉर्पोरेट्स को दी जाने वाली रियायतों के पीछे तर्क यह है कि बड़े कॉर्पोरेट्स के दिवालिया होने से बैंकिंग प्रणाली पर भारी असर पड़ सकता है। ऐसे में, बैंकों के लिए नुकसान की भरपाई करने के लिए “हैरकट्स” एक विकल्प होता है। इसके अलावा, कई मामलों में, कॉर्पोरेट्स के पास राजनीतिक और कानूनी समर्थन होता है, जो उन्हें लाभ पहुंचाता है। दूसरी ओर, व्यक्तिगत ग्राहकों के मामलों में, बैंकों का मानना है कि सख्त नियम उनके जोखिम को कम करेंगे और उनकी वसूली को आसान बनाएंगे।
4. परिणाम और भविष्य:
इस दोहरी नीति के चलते, छोटे कर्जदारों पर दबाव बढ़ेगा और उन्हें अपने क्रेडिट स्कोर को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। दूसरी ओर, कॉर्पोरेट्स को मिलती रियायतें आर्थिक असमानता को बढ़ावा दे सकती हैं। अगर यह स्थिति जारी रहती है, तो बैंकिंग प्रणाली में असंतोष और असंतुलन बढ़ सकता है, जिससे आर्थिक संकट भी उत्पन्न हो सकता है।
निष्कर्ष:
RBI के नए नियम छोटे कर्जदारों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, जबकि बड़े कॉर्पोरेट्स को मिली रियायतें उनके प्रति बैंकिंग प्रणाली की नरमी को दर्शाती हैं। यह स्थिति आर्थिक असमानता को बढ़ा सकती है और बैंकिंग प्रणाली के लिए दीर्घकालिक जोखिम पैदा कर सकती है। इस दोहरी नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है ताकि सभी कर्जदारों के साथ समानता और न्याय हो सके।