सवांददाता नरसीराम शर्मा बीकानेर श्रीडूंगरगढ़
पंचांग का अति प्राचीन काल से ही बहुत महत्त्व माना गया है।शास्त्रों में भी पंचांग को बहुत महत्त्व दिया गया है और पंचाग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना गया है।पंचांग में सूर्योदय,सूर्यास्त,चद्रोदय-चन्द्रास्त काल,तिथि,नक्षत्र,मुहूर्त योगकाल,करण,सूर्य-चंद्र के राशि,चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं।
🙏जय श्री गणेशाय नमः🙏
🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
दिनांक:- 09/08/2024, शुक्रवार*
पंचमी, शुक्ल पक्ष,
श्रावण
“””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
तिथि———– पंचमी 27:13:31 तक
पक्ष———————— शुक्ल
नक्षत्र———— हस्त 26:43:19
योग————– सिद्ध 13:43:47
करण————- बव 13:54:43
करण———– बालव 27:13:31
वार———————- शुक्रवार
माह———————– श्रावण
चन्द्र राशि—————– कन्या
सूर्य राशि—————— कर्क
रितु————————– वर्षा
आयन——————दक्षिणायण
संवत्सर——————– क्रोधी
संवत्सर (उत्तर) —————कालयुक्त
विक्रम संवत—————- 2081
गुजराती संवत————– 2080
शक संवत—————— 1946
कलि संवत—————– 5125
वृन्दावन
सूर्योदय————— 05:48:05
सूर्यास्त—————- 19:00:51
दिन काल————- 13:12:45
रात्री काल————- 10:47:45
चंद्रोदय————— 09:48:12
चंद्रास्त—————- 21:45:23
लग्न—- कर्क 22°43′ , 112°43′
सूर्य नक्षत्र—————–आश्लेषा
चन्द्र नक्षत्र——————- हस्त
नक्षत्र पाया——————- रजत
*🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩*
पू—- हस्त 06:20:21
ष—- हस्त 13:08:02
ण—- हस्त 19:55:45
ठ—- हस्त 26:43:19
*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮*
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
==========================
सूर्य= कर्क 22°05, अश्लेषा 2 डू
चन्द्र= कन्या 13°30 , हस्त 1 पू
बुध =सिंह 09°53′ मघा 3 मू
शु क्र= सिंह 10°05, मघा ‘ 4 मे
मंगल=वृषभ 18°30 ‘ रोहिणी’ 3 वी
गुरु=वृषभ 21°30 रोहिणी , 4 वु
शनि=कुम्भ 24°10 ‘ पू o भा o ,2 सो
राहू=(व) मीन 15°00 उo भा o, 4 ञ
केतु= (व)कन्या 15°00 हस्त 2 ष
*🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 💮🚩💮*
राहू काल 10:45 – 12:24 अशुभ
यम घंटा 15:43 – 17:22 अशुभ
गुली काल 07:27 – 09: 06अशुभ
अभिजित 11:58 – 12:51 शुभ
दूर मुहूर्त 08:27 – 09:19 अशुभ
दूर मुहूर्त 12:51 – 13:44 अशुभ
वर्ज्यम 09:03 – 10:52 अशुभ
प्रदोष 19:01 – 21:12 शुभ
💮चोघडिया, दिन
चर 05:48 – 07:27 शुभ
लाभ 07:27 – 09:06 शुभ
अमृत 09:06 – 10:45 शुभ
काल 10:45 – 12:24 अशुभ
शुभ 12:24 – 14:04 शुभ
रोग 14:04 – 15:43 अशुभ
उद्वेग 15:43 – 17:22 अशुभ
चर 17:22 – 19:01 शुभ
🚩चोघडिया, रात
रोग 19:01 – 20:22 अशुभ
काल 20:22 – 21:43 अशुभ
लाभ 21:43 – 23:04 शुभ
उद्वेग 23:04 – 24:25* अशुभ
शुभ 24:25* – 25:46* शुभ
अमृत 25:46* – 27:07* शुभ
चर 27:07* – 28:28* शुभ
रोग 28:28* – 29:49* अशुभ
💮होरा, दिन
शुक्र 05:48 – 06:54
बुध 06:54 – 08:00
चन्द्र 08:00 – 09:06
शनि 09:06 – 10:12
बृहस्पति 10:12 – 11:18
मंगल 11:18 – 12:24
सूर्य 12:24 – 13:31
शुक्र 13:31 – 14:37
बुध 14:37 – 15:43
चन्द्र 15:43 – 16:49
शनि 16:49 – 17:55
बृहस्पति 17:55 – 19:01
🚩होरा, रात
मंगल 19:01 – 19:55
सूर्य 19:55 – 20:49
शुक्र 20:49 – 21:43
बुध 21:43 – 22:37
चन्द्र 22:37 – 23:31
शनि 23:31 – 24:25
बृहस्पति 24:25* – 25:19
मंगल 25:19* – 26:13
सूर्य 26:13* – 27:07
शुक्र 27:07* – 28:01
बुध 28:01* – 28:55
चन्द्र 28:55* – 29:49
*🚩विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार*
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
*💮दिशा शूल ज्ञान————-पश्चिम*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*
*🚩 अग्नि वास ज्ञान -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*
5 + 6 + 1 = 12 ÷ 4 = 0 शेष
मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l
*🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩*
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
बुध ग्रह मुखहुति
*💮 शिव वास एवं फल -:*
5 + 5+ 5 = 15 ÷ 7 = 1 शेष
कैलाश वास = शुभ कारक
*🚩भद्रा वास एवं फल -:*
*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*
*💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮*
*नाग पंचमी
*अमरनाथ यात्रा प्रारम्भ
*💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮*
निविषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा ।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोप भयंकरः ।।
।। चा o नी o।।
यदि नाग अपना फना खड़ा करे तो भले ही वह जहरीला ना हो तो भी उसका यह करना सामने वाले के मन में डर पैदा करने को पर्याप्त है. यहाँ यह बात कोई माइना नहीं रखती की वह जहरीला है की नहीं.
*🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩*
गीता -: अक्षरब्रह्मयोग अo-08
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।,
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ॥,
क्योंकि जगत के ये दो प्रकार के- शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं।, इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।,)– जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परमगति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ ( अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी।,) फिर वापस आता है अर्थात् जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है॥,26॥,
*💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮*
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
🐏मेष-पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। रचनात्मक कार्य सफल रहेंगे। व्यवसाय ठीक चलेगा। प्रसन्नता रहेगी। जीवनसाथी के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। पारिवारिक उन्नति होगी। सुखद यात्रा के योग बनेंगे। स्वविवेक से कार्य करना लाभप्रद रहेगा।
🐂वृष-पुराना रोग उभर सकता है। शोक समाचार मिल सकता है। भागदौड़ रहेगी। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। अधूरे कामों में गति आएगी। व्यावसायिक गोपनीयता भंग न करें। गीत-संगीत में रुचि बढ़ेगी। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।
👫मिथुन-शत्रु सक्रिय रहेंगे। स्वास्थ्य कमजोर होगा। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। बेरोजगारी दूर होगी। लाभ होगा। मान-प्रतिष्ठा में कमी आएगी। कामकाज में बाधाएं आ सकती हैं। कर्मचारियों पर व्यर्थ संदेह न करें। आर्थिक तंगी रहेगी।
🦀कर्क-यात्रा सफल रहेगी। प्रयास सफल रहेंगे। वाणी पर नियंत्रण रखें। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। लाभ होगा। व्यापार-व्यवसाय में उन्नति के योग हैं। वाणी पर संयम आवश्यक है। जीवनसाथी से मदद मिलेगी। सामाजिक यश-सम्मान बढ़ेगा। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
🐅सिंह-पुराने मित्र व संबंधियों से मुलाकात होगी। शुभ समाचार प्राप्त होंगे। व्यवसाय ठीक चलेगा। मान बढ़ेगा। स्वजनों से मेल-मिलाप होगा। नौकरी में ऐच्छिक पदोन्नति की संभावना है। किसी की आलोचना न करें। खानपान का ध्यान रखें। आर्थिक संपन्नता बढ़ेगी।
🙍♀️कन्या-रोजगार मिलेगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। नौकरी में अधिकार बढ़ेंगे। व्यावसायिक समस्या का हल निकलेगा। नई योजना में लाभ की संभावना है। घर में मांगलिक आयोजन हो सकते हैं। जीवनसाथी से संबंध घनिष्ठ होंगे।
⚖️तुला-ऐश्वर्य पर व्यय होगा। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। विवाद को बढ़ावा न दें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। राजकीय कार्य में परिवर्तन के योग बनेंगे। आलस्य का परित्याग करें। आपके कामों की लोग प्रशंसा करेंगे। व्यापार लाभप्रद रहेगा। नई कार्ययोजना के योग प्रबल हैं।
🦂वृश्चिक-राजमान प्राप्त होगा। नए अनुबंध होंगे। नई योजना बनेगी। व्यवसाय ठीक चलेगा। प्रसन्नता रहेगी। कार्य में व्यय की अधिकता रहेगी। दांपत्य जीवन में भावनात्मक समस्याएँ रह सकती हैं। व्यापार में नए अनुबंध आज नहीं करें।
🏹धनु-पुराना रोग उभर सकता है। चोट व दुर्घटना से बचें। वस्तुएं संभालकर रखें। बाकी सामान्य रहेगा। व्यापार-व्यवसाय सामान्य रहेगा। दूरदर्शिता एवं बुद्धि चातुर्य से कठिनाइयां दूर होंगी। राज्य तथा व्यवसाय में सफलता मिलने के योग हैं। पठन-पाठन में रुचि बढ़ेगी।
🐊मकर-पूजा-पाठ में मन लगेगा। कोर्ट व कचहरी के काम निबटेंगे। लाभ के अवसर मिलेंगे। प्रसन्नता रहेगी। कुछ मानसिक अंतर्द्वंद्व पैदा होंगे। पारिवारिक उलझनों के कारण मानसिक कष्ट रहेगा। धैर्य एवं संयम रखकर काम करना होगा। यात्रा आज न करें।
🍯कुंभ-धनार्जन होगा। संतान के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। परिवार के सहयोग से दिन उत्साहपूर्ण व्यतीत होगा। योजनानुसार कार्य करने से लाभ की संभावना है। आर्थिक सुदृढ़ता रहेगी। बेचैनी रहेगी। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। कोर्ट व कचहरी में अनुकूलता रहेगी।
🐟मीन-लेन-देन में सावधानी रखें। बकाया वसूली के प्रयास सफल रखें। व्यावसायिक यात्रा मनोनुकूल रहेगी। कानूनी मामले सुधरेंगे। धन का प्रबंध करने में कठिनाई आ सकती है। आहार की अनियमितता से बचें। व्यापार,नौकरी में उन्नति होगी।
🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
कैसे करें शुक्रवार व्रत,जानें पूजा विधि, व्रत कथा, मंत्र, आरती और महत्व-
शुक्रवार व्रत कथा, पूजा विधि,आरती-हिंदू धर्म में शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी और माता संतोषी को समर्पित किया गया है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन मां संतोषी और मां लक्ष्मी की अराधना करने से सुख,समृद्धि,सौभाग्य और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। कई लोग शुक्रवार का व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सारी मनोकामाएं पूर्ण हो जाती हैं। शुक्रवार व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जा सकता है। कहते हैं जो व्यक्ति लगातार 16 शुक्रवार व्रत करता है उसे मां संतोषी सुख और सौभाग्य प्रदान करती हैं। ध्यान रहे कि मां संतोषी के व्रत में खट्टी चीजों का सेवन बिल्कुल भी नहीं किया जाता है।
शुक्रवार व्रत कथा-
एक गांव में एक बुढिया रहती थी जिसके सात बेटे थे। छः बेटे कमाने वाले थे और एक बेटा निकम्मा था। बुढिया मां छहों पुत्रों का जूठा सातवें पुत्र को देती। सातवां पुत्र एक दिन अपनी पत्नी से बोला देखो। मेरी माता का मुझ पर कितना प्रेम है। वह बोली “क्यों नहीं सबका जूठा बचा हुआ तुमको खिलाती है। वह बोला जब तक आंखों से न देखें मान नहीं सकता पत्नी ने हंसकर कहा देख लोगे तब तो मानोगे ? कुछ दिन बाद एक बड़ा त्योहार आया। घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमा के लड्डू बने। वह पत्नी की बात को जांचने के लिए सिरदर्द का बहाना बनाकर पतला कपड़ा सिर पर ओढ़कर रसोई में जाकर सो गया और कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए। उसने देखा मां ने उनके लिए सुंदर-सुंदर आसन बिछाए। सात प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह कर-करके उन्हें भोजन कराती रही। वह देखता रहा। छहों भाई भोजन कर उठ गए तब मां ने उनकी 5 थालियों में से लड्डुओं के टुकड़ों को उठाया और एक लड्डू बनाया। जूठन साफ कर मां ने उसे पुकारा उठ बेटा उठ तेरे भाइयों ने भोजन कर लिया तू भी उठकर भोजन कर ले उसने कहा मां मुझे भोजन नहीं करना। मैं परदेस जा रहा हूं। माता ने कहा कल जाना हो तो आज ही जा। वह बोला हां हां जा रहा हूं यह कहकर वह घर से निकल गया। चलते समय उसे पत्नी की याद आई। वह गौशाला में कंडे थाप रही थी। वहां जाकर वह बोला मेरे पास तो कुछ नहीं है। यह अंगूठी है। सो ले लो और अपनी कोई निशानी मुझे दे दो। वह बोली मेरे पास क्या है? यह गोबर भरा हाथ है। यह कहकर पत्नी ने उसकी पीठ पर गोबार के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया। चलते-चलते दूर देश में पहुंचा। वहां एक साहूकार की दुकान थी। वहां जाकर बोला सेठ जी मुझे नौकरी पर रख लो। साहूकार को नौकर की सख्त जरूरत थी। साहूकार ने कहा काम देखकर तनख्वाह मिलेगी।उसने कहा सेठजी जैसा आप ठीक समझें। उसे साहूकार के यहां नौकरी मिल गई। वह वहां दिन-रात काम करने लगा। कुछ दिन में दुकान का लेन-देन हिसाब-किताब ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे। वे सब चक्कर खाने लगे। लेकिन उसने अपनी लगन,परिश्रम और ईमानदारी से सभी को पीछे छोड़ दिया। उसे अपने किए का फल मिला। सेठ ने भी उसका काम देखा और तीन महीने में ही उसे मुनाफे में साझीदार बना लिया। परिश्रम करते- करते बारह वर्ष में ही वह नगर का नामी सेठ बन गया और सेठ अपना सारा कारोबार उस पर छोड़कर बाहर चला गया। इधर उसकी पत्नी पर क्या बीती वह सुनें। सास-ससुर उसे दुख देने लगे। गृहस्थी का काम करवाकर उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते। इस बीच घर की रोटियों के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नरेली में पानी दिया जाता। इस तरह दिन बीतते रहे। एक दिन वह जब जंगल में लकड़ी लेने जा नही थी तब उसे रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दीं। यह वहां खड़ी होकर पूछने लगी बहनो यह तुम किस देवता का व्रत करती हो और इसके करने से क्या फल होता है ? इस व्रत के करने की क्या विधि है ? यदि तुम अपने इस व्रत का विधान मुझे समझाकर कहोगी तो मैं तुम्हारा। बड़ा अहसान मानूंगी। उनमें से एक स्त्री बोली सुनो यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता,दरिद्रता का नाश होता है। लक्ष्मी आती हैं। मन की चिंताएं दूर होती हैं। मन को प्रसन्नता और शांति मिलती है। निपूती को पुत्र मिलता है।प्रीतम बाहर गया हो तो वह शीघ्र लौट आता है।कुवारी कन्या को मन पसंद वर मिलता है।चलता मुकदमा खत्म हो जाता है।कलह क्लेश की निवृत्ति हो मुख-शांति होती है।घर में धन जमा हो धन जायदाद का लाभ होता है तथा और भी मन में जो कुछ कामना हो सब संतोषी माता की कृपा से पूरी हो जाती हैं। इसमें संदेह नहीं। वह पूछने लगी यह व्रत कैसे किया जाता है ? यह भी बताओ तो बड़ी कृपा होगी। वह स्त्री कहने लगी बिना परेशानी श्रद्धा और प्रेम से जितना भी बन सके प्रसाद लेना। सवा पांच पैसे से सवा पांच आने तथा इससे भी ज्यादा शक्ति और भक्ति के अनुसार गुड़ और चना लें। हर शुक्रवार को निराहार रहकर कथा कहना सुनना। इसके
और बीच क्रम नहीं टूटे। लगातार नियम पालन के करना। सुनने वाला कोई न मिले तो घी का दीपक जलाकर उसके आगे जल के पात्र को रख कथा कहना परंतु नियम न टूटे। जब तक कार्य सिद्ध न हो। नियम पालन करना और कार्यसिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना। तीन मास में माता पूरा फल प्रदान करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे हैं भी तो माता एक वर्ष में अवश्य उनको अनुकूल करती हैं।कार्य सिद्ध होने पर ही उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं उद्यापन में अढाई सेर आटे का खाजा तथा इसी अनुसार खीर तथा चने का साग बनाना। आठ बच्चों को भोजन कराना। जहां तक मिलें देवर,जेठ,भाई-बंधु,कुटुंब के लड़के लेना न मिले तो रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लड़के बुलाना। उन्हें भोजन करा यथाशक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना। ध्यान रखना उस दिन घर में कोई खटाई न खाए। यह सुन वह वहां से चल दी। रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों में गुड़ चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली। रास्ते में संतोषी माता के मंदिर में जा माता के चरणों में लोटने लगी। विनती करने लगी ‘मां मैं दीन हूं। निपट मुर्ख हूं। व्रत के नियम कुछ जानती नहीं। मैं बहुत दुखी हूं। हे माता! मेरा दुख दूर कर मैं तेरी शरण में हूं। माता को दया आई। एक शुक्रवार बीता कि दूसरे शुक्रवार को ही उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुंचा। यह देखकर जेठानी मुंह सिकोड़ने लगी इतने दिनों बाद इतना पैसा आया। इसमें क्या बड़ाई है? लड़के ताने देने लगे काकी के पास अब पत्र आने लगे रुपया आने लगा अब तो काकी की खातिर बढेगी अब तो काकी बुलाने से भी नहीं बोलेगी। बेचारी सरलता से कहती भैया पत्र आए रुपया आए तो हम सबके लिए अच्छा है। ऐसा कहकर आंखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में जा मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी “मां मैंने तुमसे पैसा नहीं मांगा। मुझे पैसे से क्या काम ? मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा मांगती तब माता ने प्रसन्न होकर कहा जा बेटी तेरा स्वामी जल्दी ही आएगा। यह सुन खुशी से बावली हो वह घर आकर काम करने लगी। संतोषी मां विचार करने लगीं इस भोली पुत्री से मैंने कह तो दिया कि तेरा पति शीघ्र आएगा पर आएगा कहां से ? वह तो इसे स्वप्नन में भी याद नहीं करता। उसे इसकी याद दिलाने तो मुझे ही जाना पड़ेगा। संतोषी माता ने उस बुढ़िया के बेटे को स्वप्न में समझाया पुत्र तेरी घरवाली कष्ट उठा रही है। यह बोला हां माता यह तो मुझे भी मालूम है। परंतु क्या करूं वहां कैसे जाऊ ? परदेस की बात है।लेन-देन का सारा हिसाब-किताब है। कोई जाने का रास्ता नजर नहीं आता। आप ही कोई राह दिखाएं कि वहां कैसे जाऊं। मां कहने लगीं सवेरे नहा-धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर और दुकान पर जा बैठना। देखते-देखते तेरा लेन-देन चुक जाएगा जमा माल बिक जाएगा सांझ होते-होते धन का ढेर लग जाएगा। वह अगले दिन सुबह बहुत जल्दी उठा। उसने अपने मित्र बंधुओं परिचितों से स्वप्न में माता द्वारा कही गई बात कह सुनाई। वे सब उसकी बात सुनकर उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। वे कहने लगे कि कहीं कभी सपने की बात भी सच्ची होती है। एक बूढ़ा व्यक्ति बहुत समझदार था। वह बोला देखो भाई मेरी बात मानो इस तरह सांच या झूठ कहने के बदले देवता ने जैसा कहा है।वैसा ही करना। तेरा क्या जाता है ?बूढ़े की बात मानकर नहा-धोकर उसने संतोषी माता को प्रणाम किया। फिर भी का दीपक जलाकर दुकान पर जा बैठा। शाम तक धन का ढेर लग गया। वह हैरान हुआ। मन में संतोषी माता का नाम ले प्रसन्न हो घर जाने के वास्ते गहना कपड़ा व सामान खरीदने लगा। सब काम से निपट अपने घर को रवाना हुआ। उधर उसको पत्नी जंगल में लकड़ी लेने गई। लौटते वक्त थक जाने के कारण संतोषी माता के मंदिर पर विश्राम करने बैठ गई। यह तो उसका रोज रुकने का स्थान था। धूल उड़ती देख उसने माता पूछा, हे माता यह धूल कैसी उड़ रही है ?मां ने कहा हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तु ऐसा कर लकड़ियों के तीन बोझ बना। एक नदी के किनारे रख दूसरा मेरे मंदिर पर और तीसरा अपने सिर पर रख तेरे पति को लकड़ी का गट्ठा देखकर मोह पैदा होगा। यह वहां रुकेगा नाश्ता-पानी बना खाकर मां से मिलने जाएगा। तू लकड़ी का बोझ उठाकर जाना और बीच चौक में गट्ठा डालकर तीन आवाजें जोर से लगाना लो सासूजी। लकड़ियों का, गट्ठा लो भूसी को रोटी दो नारियल के खोपरे में पानी दो आज कौन मेहमान आया है ? संतोषी मां की बात सुनकर वह बहुत अच्छा मां कहकर प्रसन्न मन से लकड़ियों के तीन बोझ बना लाई। एक नदी के तट पर दूसरा माता के मंदिर पर रखा। इतने में ही मुसाफिर वहां आ पहुंचा। सूखी लकड़ी देख उसको इच्छा हुई कि अब यहीं विश्राम कर ले और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव चले।
इस प्रकार भोजन कर विश्राम कर वह अपने गांव में आ गया। उसी समय बहू सिर पर लकड़ी का गट्ठा लिए आई। उसने गट्ठा को आंगन में डाल जोर से तीन आवाजें दी लो सासूजी लकड़ी का गट्ठा लो भूसी की रोटी दो नारियल के खोपर में पानी दो। आज कौन मेहमान आया है ? यह सुनकर सास ने अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने के लिए कहा बहू तू ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है। बैठ मीठा भात खाकर कपड़े गहने पहन। पत्नी की आवाज सुनकर उसका स्वामी बाहर आया और उसके हाथ में पहनी अंगूठी देख व्याकुल हो गया। उसने मां से पूछा मां यह कौन है ? मां बोली बेट तेरी पत्नी है। आज बारह वर्ष हो गए है।जब से तू गया है।तब से सारे गांव में जानवर की तरह भटकती फिरती है। कामकाज कुछ करती नहीं चार समय आकर खा जाती है।अब तुझे देखकर भूसी की रोटी और नारियल के खापरे में पानी मांगती है। वह बोला मां मैंने इसे भी देखा है और तुम्हे भी मुझे दूसरे घर की चाबी दो, मैं उसमें रहूंगा। ठीक है बेटा जैसी तेरी मरजी कहकर मां ने चाबी का गुच्छा बेटे के सामने रख दिया। उसने दूसरे घर को खोलकर सारा सामान जमाया। एक ही दिन में वहां राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था वह सुख भोगने लगी। अगला शुक्रवार उसने पति से कहा मुझे संतोषी मात का उद्यापन करना है। पति बोला बहुत अच्छा खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जेठ के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई, उन्होंने मंजूर किया। परंतु पीछे से जेठानी ने अपने बच्चों को सिखलाया देखो रे!भोजन के समय सब लोग खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो। लड़के भोजन करने आए। खीर पेट भरकर खाई। परंतु बात याद आते ही कहने लगे हमें कुछ खटाई खाने को दो खीर खाना हमें भाता नहीं देखकर अरुचि होती है। लड़के उठ खड़े हुए। बोले पैसे लाओ। भोली बहू कुछ जानती न थी उसने उन्हें पैसे दे दिए। लड़कों ने बाजार जाकर उन पैसों से इमली खरीदी और खाई यह देखकर बहू पर माता जी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले गए। अब सब मालूम हो जाएगा। जब जेल की रोटी खाएगा बहू से यह बचन सहन नहीं हुए। वह संतोषी माता के मंदिर में गई और कहने लगी माता! तुमने यह क्या किया हंसाकर क्यों रुलाने लगीं? माता बोली पुत्री! तूने मेरा व्रत भंग किया है। इतनी जल्दी सब बातें भुला दीं। वह बोली माता भूली तो नहीं हूं न कुछ अपराध किया है। मुझे तो लड़कों ने भूल डाल दिया। मुझे क्षमा करो मां। मां बोली ऐसी भूल भी कहीं होती है। वह बोली अब कोई भूल नहीं होगी। अब बताओ मेरे पति कैसे आएंगे ? मां बोली पुत्री। जा तेरा पति तुझे रास्ते में ही आता मिलेगा। वह मंदिर से निकलकर बाहर आई तो रास्ते में उसे अपना पति आता हुआ मिला। उसने पूछा, “कहा गए थे?वह बोला इतना धन जो कमाया है उसका कर राजा ने मांगा था। वह भरने गया था। वह प्रसन्न होकर बोली भला हुआ, अब घर चलो। फिर अगला शुक्रवार आया। वह बोली मुझे माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा ठीक है, करो। वह फिर जेठ के लड़कों से भोजन को कहने गई। जेठानी ने लड़कों को सिखा दिया कि तुम पहले ही खटाई मांगना। लड़के भोजन करने बैठे लेकिन भोजन करने से पहले ही कहने लगे हमें खीर-पूरी नहीं भाती। जी बिगड़ता है। कुछ खटाई खाने को दो। वह बोली खटाई खाने को नहीं मिलेगी खाना हो तो खाओ। उनके उठकर चले जाने पर उसने ब्राह्मणों के लड़के बुलाकर भोजन करवाया। दक्षिणा की जगह उन्हें एक- एक फल दिया। इससे संतोषी माता प्रसन्न हो गई। माता की कृपा से नौ माह बाद उसको चंद्रमा के समान एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को लेकर वह प्रतिदिन संतोषी माता के मंदिर में जाने लगी। मां ने। सोचा कि यह रोज आती है।आज क्यों न मैं ही इसके घर चलूं। इसका आसरा देखूं तो सही। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया। गुड़ और चने से सना मुख ऊपर से मुंड के समान होंठ उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं। दहलीज में पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई देखो रे! कोई चुड़ैल डाकिनी चली आ रही लड़को इसे भगाओ नहीं तो सबको खा जाएगी बहू रोशनदान से देख रही थी। वही प्रसन्न हो उठी आज मेरी माता मेरे घर आई हैं। यह कहकर दूध पीते बच्चे को गोद उतार दिया। इस पर उसको सास कोध में भरकर बोली अरी रांड इसे देखकर कैसी उतावली हुई है।जो बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से जहां देखो वहां लड़के ही लड़के नजर आने लगे। यह बोली मां जी मैं जिनका व्रत
करती हूं।यह वही संतोषी माता हैं। इतना कह उसने झट से घर के सारे किवाड़ खोल दिए। सबने माता के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे। हे माता। हम मूर्ख हैं अज्ञानी हैं। तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है। हे माता! आप हमारे अपराधों को क्षमा करो। इस प्रकार बार-बार कहने पर संतोषी मात प्रसन्न हुई। इसके बाद उसकी सास कहने लगी। हे संतोषी माता। आपने बहू को जैसा फल दिया वैसा सबको देना। जो यह कथा सुने या पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।
शुक्रवार व्रत पूजा विधि-
1.शुक्रवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठें।
2.घर की सफाई के बाद स्वयं स्नान कर लें।
3.घर के पवित्र स्थान पर माता संतोषी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
4.एक बड़े पात्र में शुद्ध जल भर लें।
5.फिर उस जल भरे पात्र के ऊपर एक कटोरी में गुड़ और भुने हुए चने रखें।
6.अब मां की प्रतिमा के समक्ष एक दीपक जलाएं।
7.माता संतोषी की विधिवत पूजा-अर्चना करें।
8.इसके बाद शुक्रवार व्रत की कथा सुनें।
9.ध्यान रहें कथा सुनते या पढ़ते समय अपने हाथों में गुड़ और भुने चने ज़रूर रखें।
10.फिर संतोषी मां की आरती करें।
11.आरती के बाद माता को भोग लगाएं और फिर उस प्रसाद को बाटें।
12.पूजा समापन के बाद बड़े पात्र वाले जल को घर में छिड़क दें और शेष जल को तुलसी के पौधे में डाल दें।
शुक्रवार व्रत पूजा आरती-
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता। अपने सेवक जन को,सुख संपत्ति दाता ।।
सुन्दर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हों। हीरा पन्ना दमके,तन श्रृंगार लीन्हों ।।
मेरु लाल छटा छवि,बदन कमल सोहै। मन्द हंसत करूणामयी त्रिभुवन मन मोहै ।।
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरें प्यारे। धुप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ।।
गुड़ अरू चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो। संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ।।
शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही। भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ।।
भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै। जो मन बसै हमारे इच्छा फल दीजै ।।
मन्दिर जगमग ज्योति,मंगल ध्वनि छाई। विनय करें हम बालक चरनन सिर नाई ।।
दुखी,द्ररिद्री,रोगी,संकट मुक्त किये। बहु धन-धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिये ।।
ध्यान धरयो जिस जन ने,मनवांछित फल पायो। पूजा कथा श्रवण कर,घर आनन्द आयो ।।
शरण गहे की लज्जा, रखियो जगदम्बे। संकट तू ही निवारे, दयामयी मां अम्बे ।।
संतोषी मां की आरती,जो कोई नर गावे। ऋद्धि-सिद्धि, सुख-संपत्ति,जी भरके पावे ।।
शुक्रवार व्रत महत्व
शुक्रवार व्रत रखने से संतोषी माता की कृपा बरसती है। निर्धनता और दरिद्रता का नाश होता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यवसाय में लाभ, परीक्षा में सफलता,न्यायालय में विजय और घरों में सुख-समृद्धि आती है। इसके अलावा अविवाहित लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है।
शुक्रवार व्रत के मंत्र-
ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।
ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
शुक्रवार व्रत के नियम-
इस व्रत में व्रती के साथ घर के बाकी सदस्यों को भी खट्टी चीजे नहीं खानी चाहिए। इस व्रत में तामसिक भोजन वर्जित है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराकर दक्षिणा अवश्य दें। इस व्रत में की पूजा भगवान गणेश की अराधना से शुरू करें।
शुक्रवार का व्रत कब शुरू करें ?
शुक्रवार व्रत हमेशा शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है। लेकिन,पितृ पक्ष में इस व्रत की शुरुआत न करें।16 शुक्रवार तक इस व्रत का पालन करें।