पूजा–पाठ : तो आइए हम इसकी विशेषता को बताते हैं पूजन ने उपयोगी चीजों का महत्व।
महराजगंज हर कहीं,किसी भी जगह,स्थान पर जब भी कोई पूजा – पाठ/धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किया जाता है,तब निश्चित तौर से मौली मंत्र,तिलक,पान,सुपारी,दूबा आदि का प्रयोग किया जाता है।लेकिन प्रायः बहुत से लोग सिर्फ इतना ही जानते हैं कि – यह सभी वस्तुएं मात्र पूजा के ही लिए हैं।तो आइए हम इसकी विशेषता को बताते हैं-
*मौली मंत्र, तिलक मंत्र, पान का पत्ता, स्वस्तिक मंत्र, करवा, सुपारी, अक्षत, दूर्वा का महत्व…*
1. मौली मंत्र का महत्व..
येन बध्दो बली राजा दानवेन्दो महाबलः ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
*‘मौली’* का शाब्दिक अर्थ है *‘सबसे ऊपर’*। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध है और इसे शास्त्रों के मुताबिक रक्षा सूत्र और कलावा भी कहा जाता है। मौली बांधने से तिनों देवी-देवताओं की कृपा होती है।
शास्त्रों के मुताबिक मौली का रंग और उसका एक एक धागा मनुष्य को शक्ति प्रदान करता है। न केवल इसे बांधने से बल्कि मौली से बनाई गई सजावट की वस्तुओं को भी घर में रखने से लाभ होता है और सकारात्मकता आती है।
2. तिलक मंत्र महत्व
केशवानन्नत गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।
*पूजा के समय तिलक* लगाने का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।
तिलक लगवाते समय सिर पर हाथ इसलिए रखते हैं ताकि सकारात्मक उर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्र हो तथा हमारे विचार सकारात्मक हों। तिलक सदैव बैठकर ही लगाना चाहिए।
3. पान का पत्ता
पान का पत्ता ताजगी और समृद्धि का प्रतीक है। *स्कंद पुराण* के अनुसार, अमृत के लिए समुद्र मंथन के दौरान देवताओं द्वारा पान का पत्ता प्राप्त किया गया था। यह मुख्य कारण है कि पूजा में पान के पत्ते का उपयोग किया जाता है।पान का पत्ता जब भी किसी को अर्पित किया जाता है तो यह सम्मान का प्रतिक माना जाता है।
4. स्वस्तिक मंत्र महत्व
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
स्वस्तिक मंत्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। *स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो*। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते है। तथा यह माना जाता है कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मंत्र का पाठ करने की क्रिया *‘स्वस्तिवाचन’* कहलाती है।
यह मंत्र किसी भी शुभ कार्य जैसे गृहनिर्माण, गृहप्रवेश, षोडश संस्कार, यात्रा आदि के आरंभ में बोला जाता है, जिससे सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होते है।
5. करवा का महत्व
मिट्टी का करवा पंच तत्व *(भूमि, आकाश, वायु, जल, अग्नि)* का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रह्म माना गया है, क्योंकि जल ही सब जीवों की उत्पत्ति का केंद्र है।
इस तरह मिट्टी के करवे से पानी पिलाकर पति-पत्नी अपने रिश्ते में पंच तत्व और परमात्मा दोनों को साक्षी बनाकर अपने *दाम्पत्य जीवन* को सुखी बनाने की कामना करते है।
6. सुपारी का महत्व
*धार्मिक अनुष्ठानों* में सुपारी का बहुत महत्व है। इसके बिना पूजा प्रारंभ ही नहीं होती। शास्त्रों के अनुसार सुपारी को *जीवंत देव* का स्थान प्राप्त है एवं इसे *गणेशजी* का प्रतीक स्वरूप भी माना जाता है, यदि हमारे पास उनकी प्रतिमा ना हो, तो उनके स्थान पर सुपारी रखी जाती है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि, खाने वाली सुपारी बड़ी और गोल होती है, वहीं पूजा की सुपारी छोटी और शीर्ष पर *शिखर* जैसे आकार की होती है।
7. अक्षत का महत्व
चावल को *अक्षत* भी कहा जाता है, और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। अक्षत को पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए पूजा में इसे चढ़ाने का अर्थ है कि हमारी पूजा इस अक्षत की तरह पूर्ण हो।
इसका रंग सफेद होता है, जो शांति का प्रतीक माना जाता है, जिसे चढ़ाकर इस बात की प्रार्थना की जाती है कि व्यक्ति के नंहर कार्य पूर्ण रुप से और शांति के साथ सम्पन्न हो जाएं।
8. दूर्वा का महत्व
दूर्वा एक प्रकार की पवित्र घास है जिसे ‘दूब’ भी कहा जाता है, *संस्कृत में इसे दूर्वा, अमृता, अनंता, गौरी, महोषधि, शतपर्वा, भार्गवी* आदि नामों से जाना जाता है। ‘दूर्वा’ कई महत्वपूर्ण औषधीय गुणों से युक्त है।
मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब *अमृत कलश* निकला तो देवताओं से इसे पाने के लिए दैत्यों ने खूब छीना-झपटी की जिससे अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर भी गिर गईं थी जिससे ही इस विशेष घास दूर्वा की उत्पत्ति हुई।