कुछ लोग श्रावण (सावन) मास को आध्यात्मिक दिन या शिव साधना का मास मानते हैं,तो कुछ लोग इसे सिर्फ हिंदू पञ्चांग के मुताबिक सावन का महीना मानते हैं। कुछ लोग शिव मंदिरों में गए,और शिव का जलाभिषेक किए,और चले आए।
ऐसा नहीं है,एक बार जरा शिव को जानने,समझने का प्रयास तो कीजिए।वास्तव में शिव क्या हैं…?
श्रावण मास में शिवजी के दर्शन करते समय,एक बात और सीखने योग्य है।जानते हैं क्या…?
शिवजी के जीवन में विलास नहीं है,संन्यास है,भोग नहीं है,योग है क्योंकि भगवान शिव के चित्त में काम नहीं राम है।शिवजी ने कामदेव को भी भस्म किया है।विषय,विष से भी अधिक घातक होते हैं।विष शरीर को मारता है, विषय आत्मा तक को दूषित कर देता है।
विष खाने से केवल एक जन्म, एक शरीर ही नष्ट होता है,पर विषय का चस्का लग जाने पर तो, जन्म – जन्मान्तर नष्ट हो जाते हैं।संयम से जीवन जीने से आयु भी बढ़ती है,और योग के साथ रहने से चित्त भी प्रसन्न रहता है। विषय आयु को तो नष्ट करता ही है,साथ ही चित्त में अशांति और भोगों को पुनः प्राप्त करने की इच्छा भी उत्पन्न करता है।भोग ही रोग को जन्म देता है। इसलिए भोगी बनकर नहीं योगी बनकर जीवन जीना सीखें…