लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला त्याग,धर्म और स्नेह की वास्तविक मूर्ति हैं,जिनसे आदर्श और ज्ञान लेकर हर भारतीय नारियों को आगे बढ़ना चाहिए।
राम चरित्र मानस का हर एक पात्र त्याग,धर्म,धैर्य और स्नेह का ही संदेश देते हैं,आप उसे किस रूप में स्वीकार करेंगे,किस आदर्शों पर चलेंगे ए आपके स्वविवेक पर निर्भर करता है।आइए जानते हैं लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला जी का पति धर्म…भगवान राम को जब 14 वर्ष का वनवास हुआ तो,उनकी पत्नी सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया।
परंतु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा में रहनेवाले लक्ष्मण जी कैसे रामजी से दूर हो पाते…?
माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी,वन जाने की….. परंतु… पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढते हुए दुविधा में थे।
लक्ष्मण जी सोच रहे थे कि मां ने तो आज्ञा दे दी,परंतु… उर्मिला को कैसे समझाऊंगा…?,उसके एक – एक सवाल का क्या जवाब दूंगा…?,क्या कहूंगा…?
यहीं सोच-विचार करते हुए जब अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती की थाली सजा कर हाथ में लिए खडी हैं। वे बोलीं, “आप मेरी चिंता छोड़, प्रभु की सेवा में वन जाइए।
वे बोलीं, “आप मेरी चिंता छोड़, प्रभु की सेवा में वन जाइए।
मैं आपको रोकूंगी नहीं।मेरे कारण भगवान की सेवा में आपको कोई बाधा न आए,इसलिए साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।
लक्ष्मणजी को कहने में काफी संकोच हो रहा था। परंतु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया।
वास्तव में यही पत्नी-धर्म है।
पति संकोच में पड़े,उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर निकाल दे।
लक्ष्मणजी चले गये,परंतु 14 वर्ष तक उर्मिला ने अपने ही महल में रह कर एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया – भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं,परंतु उर्मिला ने भी अपने महल के द्वार 14 वर्षों तक कभी भी बंद नहीं कि,और सारी रात जाग – जाग कर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया ।
मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को शक्ति वाण लग जाती है,और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी बूटी सहित द्रोणगिरी पर्वत लेकर लौट रहे थे, तब मार्ग में अयोध्या धाम पड़ी। तब नंदिग्राम में रह कर अयोध्या का राज काज संभाल रहे भरत जी ने,उन्हें राक्षस या कोई शत्रु समझकर बाण मार दिया था। जिस कारण हनुमान जी संजीवनी बूटी से लदे द्रोणगिरी पर्वत लेकर वायु मण्डल से नीचे आ जाते हैं। तब हनुमान जी भरत जी को संपूर्ण वृत्तांत सुनाते हैं। कि सीताजी को लंकापति रावण हरण कर ले गया है और युद्ध के दौरान शक्ति वाण लगने से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए हैं ।
यह सुनते ही माता कौशल्या जी कहती हैं कि हे हनुमान!राम को कहना कि मेरे लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे।
लेकिन माता सुमित्रा जी तुरंत कह पड़ती हैं कि नहीं हनुमान!मेरे राम से कहना कि कोई बात नहीं।अभी तो मेरा शत्रुघ्न है।मैं उसे भी भेज दूंगी।मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिए ही तो जन्मे हैं।
माताओं का ऐसा प्रेम देखकर हनुमान की आखों से अश्रुधारा बह निकली।…और जैसे ही हनुमान जी ने उर्मिला जी की ओर देखा, तो सोचने लगे कि अरे वाह!देवी इतनी शांत और प्रसन्न कैसे हैं…? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं…?
हनुमान जी उर्मिला जी से पूछते हैं की – देवी ! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है…?
आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का एक दीपक बुझ जाएगा।इस पर उर्मिला का उत्तर सुनकर तीनों लोकों चौदहो भुवन का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किए बिना नहीं रह पाएगा।
उर्मिला जी बोलीं -“मेरा दीपक संकट में नहीं है,वह बुझ ही नहीं सकता।रही सूर्योदय की बात तो, आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिए,कारण आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता।
उर्मिला जी ने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति (लक्ष्मण जी) को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोद में लेटा हो,कालों का काल महाकाल भी उसे छू नहीं सकता।
यह तो वे दोनों केवल लीला कर रहे हैं।मेरे पति जब से वनवास गए, तब से सोये नहीं हैं।उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोडी देर के लिए विश्राम कर रहे हैं,और जब भगवान् की गोद मिल गई है तो थोड़ा और अधिक विश्राम हो गया।वे उठ जाएंगे और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं है। शक्ति तो खुद रामजी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम,उनके रोम – रोम में राम हैं,उनके रक्त की एक – एक बूंद में राम हैं,और जब उनके शरीर और आत्मा में केवल राम ही हैं,तो शक्ति रामजी को ही लगी,वेदना राम जी को हो रही है। इसलिए हे हनुमान!,आप निश्चिंत होकर जाएं।सूर्य उदित नहीं होगा। वास्तव में रामराज्य की नींव महाराज जनक जी की बेटियां ही थीं… कभी सीता तो कभी उर्मिला।भगवान राम ने तो केवल रामराज्य का कलश स्थापित किया,परंतु वास्तव में रामराज्य इन सबके प्रेम,त्याग,समर्पण और बलिदान से ही आया