दिल्ली रिपोर्टर नरेश शर्मा
शिवलिंग का स्वयं भू रुप मे प्रकट होना
इस मंदिर मे शिवलिंग दो भागों में विभाजित है एक भाग को मां पार्वती व दूसरे भाग को भगवान शिव के रूप मे माना जाता है इस स्थान की विशेषता है कि इन दो भागों के बीच का अन्तर ग्रहों व नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता है शायद यही विशेषता आदिकाल से ही चली आ रही है या आज के युग को अपना प्रत्यक्ष प्रमाण देते हुए भगवान ने ऐसी विशेषता अपनाई हों इस मंदिर का इतिहास दन्त कथाओं एवं किंवदंतियां के अनुसार पुराणों से जुड़ा हुआ है जैसे कि शिव पुराण मे वर्णित कथानुसार श्री ब्रह्मा जी व विष्णु जी का आपस में बड़प्पन के बारे मे युद्ध हुआ तो दोनों एक-दूसरे पर भयानक अस्त्रों शस्त्रों से प्रहार करने लगे तब भगवान शिव शंकर आकाश मण्डल मे छिपकर ब्रह्मा एवं विष्णु का युद्ध देखने लगें दोनों एक-दूसरे के वध कि इच्छा से महेशृवर और पाशुपात अस्त्र का प्रयोग करने मे प्रयासरत थे क्योंकि इनके प्रयोग होते ही त्रैलोक्य भस्म हो जाता इस महाप्रलय रुप को देखकर भगवान शिव शंकर जी से रहा न गया
उनका युद्ध शांत करने के लिए भगवान शंकर महाग्नि तुल्य एक स्तम्भ के रूप मे उन दोनों के बीच प्रकट हुए इस महाग्नि के प्रकट होते ही ब्रह्मा जी और विष्णु जी के अस्त्र स्वयं शांत हो गये यह अद्भुत दृश्य देखकर ब्रह्मा और विष्णु जी आपस मे कहने लगे कि यह अग्नि स्वरुप क्या है हमें इसका पता लगाना चाहिए
ऐसा निश्चय कर भगवान विष्णु जी (शूकर) का रुप धारण उस स्तम्भ का मूल देखने के लिए पाताल की और चले गए तथा ब्रह्मा जी ने ( हंस) का रुप धारण कर आकाश की और गमन किया विष्णु जी पाताल मे बहुत दूर तक चले गये परन्तु जब बहुत समयोपरान्त भी स्तम्भ के मूल का पता न चला तो वापिस चलें आएं उधर ब्रह्मा जी आकाश से केतकी का फूल लेकर विष्णु जी के पास आए तथा झूठा विश्वास दिलाया कि स्तम्भ का शीर्ष मैं देख आया हूं जिसके ऊपर केतकी का फूल था तब भगवान विष्णु जी ने ब्रह्मा जी के चरण पकड़ लिए
ब्रह्मा जी के इस छल को देखकर आशुतोष भगवान शंकर महादेव को साक्षात प्रकट होना पड़ा और विष्णु जी ने उनके चरणों प्रणाम किया विष्णु जी इस महानता से शिव महादेव जी प्रसन्न हो गए उन्होंने कहा कि हे विष्णु तुम बड़े सत्यवादी हो अतः मैं तुम्हें अपनी समानता प्रदान करता हूं ब्रह्मा तथा विष्णु जी के मध्य हुए युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव को महाअग्नि तुल्य स्तम्भ के रूप मे प्रकट होना पड़ा यही काठगढ़ महादेव विराजमान शिवलिंग जाना जाता है