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बादल गीत /वाह रे गर्मी

श्री गणेशाय नमः

बादल गीत /वाह रे गर्मी

 

घनश्याम घटा अब बन कर के सूखे घट को तुम भर जाओ।
घायल वसुधा तरु जीव मनुज मन में हरियाली कर जाओ।।

यह घाम बड़ा घातक लगता घर घुसकर चलता काम नहीं।
गायों को घास नहीं धरनी सर सरिता जल का नाम नहीं।।
मानव मन में सद्बुद्धि भरे यूं आप धरोहर धर जाओ।
घनश्याम घटा अब बन कर के सूखे घट को तुम भर जाओ।।

धरती की छाती चीर चीर संसाधन का दोहन करते।
जग जीव मार काटें तरुवर नहिं पाप कर्म से जन डरते।।
हे जगत गुरुs मोहन आकर सबकी विपदा तुम हर जाओ।
घनश्याम घटा अब बनकर के सूखे घट को तुम भर जाओ।।

प्यासी बिरहन अब तड़प रही सावन मानो वैशाख लगे।
इस विरह अग्नि में तप तप कर तरुणी तन भी जल राख लगे।।
बादल बन बारिश कर कह दो आएंँगे पिय तुम घर जाओ।।
घनश्याम घटा अब बनकर के सूखे घट को तुम भर जाओ।।

राजेश कुमार तिवारी
सतना मध्यप्रदेश

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