भारत में पारंपरिक धोबी और संगठित लॉन्ड्री क्षेत्र अर्थात स्टार्टअप्स नरेंद्र दिवाकर
कौशांबी से सत्यार्थ न्यूज के साथ सुशील कुमार की खास रिपोर्ट
कौशांबी भारत में कपड़े धोने की प्रथा काफी पहले से ही धोबी समुदाय में प्रचलित है। लेकिन वर्तमान पीढ़ी जीवन के सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व त्वरित बदलाव देख रही है। लॉन्ड्री सेक्टर के मामले में भी काफी बदलाव आया है। कपड़े धोने का काम धोबियों से हटकर संगठित सेक्टर अर्थात मशीन-केंद्रित धुलाई की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
पहले, मशीन से धुलाई की सुविधा न होने के कारण, कपड़े पारंपरिक तरीके से धुले जाते थे जो कि बहुत मेहनत लेते थे। लेकिन समय के साथ नए रास्ते खुल गए और भारत में लॉन्ड्री सेक्टर ने लोगों को अपने कपड़े स्थानीय धोबियों को देने के बजाय एक विकल्प प्रदान किया है। जिसके कारण आजकल विशेषतौर पर महानगरों में, घरों में अधिक आय होने के कारण लोग अपने कपड़ों की धुलाई मशीन से करवा सकते/रहे हैं।
समय के साथ बढ़ती भागदौड़ के कारण कपड़े धोने के मामले में घरेलू मदद मिलना काफी मुश्किल हो गया है। इसलिए घर पर कपड़े धोना पहले की अपेक्षा अधिक मुश्किल हो गया है। इसके साथ ही लोग यह भी मानने लगे कि हाथ से धोने की गुणवत्ता कभी भी मशीन से धुलाई की तुलना में बेहतर नहीं हो सकती। इसलिए ज़्यादातर लोग अब लॉन्ड्री का विकल्प अपना रहे हैं।
देश के विभिन्न हिस्सों में कई स्टार्ट-अप ने सफलतापूर्वक अपना लॉन्ड्री व्यवसाय शुरू किया है। जानकारों का मानना है कि भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के बीच लॉन्ड्री की मांग हमेशा बनी रहेगी, इसलिए इस व्यवसाय में मंदी की कोई गुंजाइश नहीं है।
भारत के कई शहरों विशेषतौर से महानगरों में मशीन से चलने वाली लॉन्ड्रियां काफी सफल रही हैं। कई स्टार्टअप्स इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं और विभिन्न शहरों में अपने आउटलेट और फ्रेंचाईजीज सेंटर खोल रहे हैं। इसलिए कई विदेशी दिग्गज भी इस क्षेत्र में निवेश करने पर विचार करने को मजबूर हो रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक लॉन्ड्री क्षेत्र 96.8 बिलियन डॉलर अर्थात अरबों रुपए का उद्योग है, जिसमें अधिकांश हिस्सेदारी असंगठित क्षेत्र अर्थात धोबियों की ही है। हालांकि संगठित क्षेत्र अर्थात लॉन्ड्री स्टार्टअप्स में तेजी से विकास हो रहा है जिस कारण विकास की संभावना उनके पक्ष में अधिक दिखाई दे रही है। वे B2B और B2C दोनों क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।
लॉन्ड्री के क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप्स का मानना है कि भारत में लॉन्ड्री सेक्टर में प्रवेश करने के लिए बहुत कम निवेश अर्थात कम पूंजी की आवश्यकता होती है और इस व्यवसाय में उतरने के लिए किसी पूर्व अनुभव की भी आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए यह उन लोगों के लिए काफी आकर्षक है जो इस व्यवसाय में कुछ नया शुरू करना चाहते हैं।
इन सबके बावजूद भारत में कपड़े धोने के बाजार पर
कपड़े धोने का असंगठित क्षेत्र अर्थात पारंपरिक तौर पर काम करने वाले धोबी अभी भी हावी हैं क्योंकि अभी तक भारत में कपड़े धुलवाने के लिए धोबियों के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं था। धोबियों ने दशकों की सेवा, ग्राहक संबंध (कस्टमरी रिलेशनशिप) और कड़ी मेहनत के ज़रिए अपने ग्राहक बनाए हैं। इसलिए एक झटके में उनकी (धोबियों की) ज़रूरत को खत्म करना संगठित क्षेत्र के बूते की बात नहीं थी।
भारत में कपड़े धोने का क्षेत्र बहुत बड़ा है, बिजनेस एक्सपर्ट के अनुसार अरबों रुपए का है लेकिन आज भी इस पर स्थानीय (Local) धोबियों का ही कब्जा है। उनका सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि धोबियों को अपने ग्राहकों को अपने पास लाने के लिए प्रचार पर कोई पैसा खर्च करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती है। उनके पास कई वर्षों और पीढ़ियों का प्रैक्टिस बेस्ड अनुभव है या अनुभव जन्य ज्ञान है, इसलिए कई ग्राहक अभी भी हाथ से कपड़े धोने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं अपनाना चाहते हैं।
लेकिन पिछले कुछ सालों में, कई स्टार्टअप्स ने अपना लॉन्ड्री व्यवसाय शुरू किया और बिना किसी शोर-शराबे के अधिकांश बंद भी हो गए। फिर भी स्टार्टअप्स अभी भी हताश नहीं हुए हैं बल्कि और अधिक सजग होकर काम करने में लगे हैं कि कैसे ग्राहकों को अपने पक्ष में तैयार कर सकें।
अध्ययन के जरिए उन्हें यह पता लगा कि संगठित लॉन्ड्री सेक्टर भारतीय बाज़ार के लिए असंगठित क्षेत्र की अपेक्षा काफी नया है, इसलिए ग्राहक अधिग्रहण या यूं कहें कि ग्राहकों को धुलाई सेवाएं प्रदान करने हेतु राजी करना एक ऐसी चीज़ है जिस पर उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी। स्टार्टअप्स कंपनियां यह जानती हैं कि भारतीय लोग परंपरा और मूल्यों के साथ काफी सहज हैं इसलिए लॉन्ड्री बाज़ार में जगह बनाने के लिए, मशीन से चलने वाली लॉन्ड्रियों को बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी।
वे अब यह भी समझ गई हैं कि बिना उचित योजना के किसी भी काम में सिर उठाकर कूद पड़ना ठीक नहीं है, नहीं तो धोबियों (असंगठित क्षेत्र) से खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ लाभदायक होने के बजाय अधिक हानिकारक हो सकती है।
यही कारण है कि स्टार्टअप्स कंपनियां कपड़े धोने के क्षेत्र में सफलतापूर्वक प्रवेश करने के लिए स्थानीय धोबियों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम करने और एक समावेशी मॉडल तैयार करने की योजना बनाने में जुट गए हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि मशीन से चलने वाली लॉन्ड्रीयां भारत के लॉन्ड्री क्षेत्र का भविष्य हैं। लेकिन यह तभी सफल हो सकेंगी जब इनका उद्देश्य हमेशा परंपरा और आधुनिकता दोनों को एक साथ लाना होना चाहिए ताकि सभी के लिए लाभकारी वातावरण बनाया जा सके।
अब यहां पारंपरिक धोबियों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि यदि वे स्टार्टअप्स कंपनियों के लॉन्ड्री सेक्टर में आने के बाद भी बने रहना चाहते हैं तो कपड़े धोने के अपने पारंपरिक तरीके के साथ-साथ धुलाई की आधुनिक तकनीकों के साथ भी समायोजन स्थापित करें अर्थात सामंजस्य स्थापित करें अन्यथा की स्थिति में आने वाले निकट भविष्य में संगठित क्षेत्र वर्षों से उनके एकाधिकार वाले व्यवसाय पर अपना वर्चस्व कायम कर लेगा।
उन्हें ग्राहक के साथ अपने जुड़ाव, उनको दी जाने वाली सेवाएं, उनके कपड़ों की देखभाल और ग्राहकों के धुले हुए कपड़े तय समय पर उपलब्ध कराने आदि सेवाओं में आवश्यक सुधार/बदलाव करना होगा जिससे पारंपरिक धोबी स्टार्टअप्स कंपनियों का मुकाबला कर सकें।
पारंपरिक धोबियों को चाहिए कि वे पिकअप-डेलीवरी और आकर्षक पैकेजिंग के मामले में पुनर्विचार करें और प्रोफेशनली प्रशिक्षित लोगों को ही इन सेवाओं के लिए हायर करें या फिर स्वयं प्रशिक्षण प्राप्त करें, जिससे ग्राहकों के असंतोष का सामना न करना पड़े।