गंजबासौदा
जिला ब्यूरो संजीव शर्मा
श्री धाम बासौदा दरबार में गुरु गोरखनाथ जी कथा सुनने बड़ी संख्या में पहुंच रहे श्रद्धालु*
गंज बासौदा – गुरु गोरखनाथ जी ने अपने प्रमुख शिष्य ओघड़नाथ जी को आज्ञा दी तुम नगर में जाकर भिक्षा मांग कर लाओ भिक्षा में केवल अन्न ही लेना नगर में भिक्षा के लिए पहुंच गए परंतु किसी के घर भिक्षा नहीं मिली उन्हें बताया आपको भिक्षा राज भवन से ही मिलेगी राजमहल पहुंचकर अलख निरंजन का शब्दकोश राजा के महल में हुआ तब माता बचल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा माता वाचाल ने दासी के हाथों हीरे मोतियों से भर थाल संतों की सेवा में भिजवा दिया तब ओघडनाथ बोले ये कंकड़ पत्थर किस लिए लाई हो है हमारे किसी काम के नहीं
संतों की बात सुनकर दासी ने कहा इन चीजों की कीमत तुम क्या जानो तब संत ओघडनाथ जी ने गुरु जी का ध्यान करके अपनी झोली को थोड़ा सा टेढ़ा कर दिया जिससे वहां हीरे मोतियों का ढेर लग गया और दाशी घबरा गई तथा सोचने लगी जी गुरु के शिष्य इतने करामाती है उनके गुरु कैसे होंगे माता गुरु का आदेश है हमें भिक्षा में फल स्वरुप अन्न ही चाहिए माता फूट फूट कर रोने लगी और बोली मेरे यहां कोई संतान नहीं है तुमने मुझे माता कहा है इसलिए तुम मेरे बच्चे के समान हो तुम्हें मेरी लाज रखनी होगी हमें एक महात्मा ने गुरु गोरखनाथ जी की ज्योत जलाने के लिए कहा था एक दिन गुरु गोरखनाथ जी अपने 14 शिष्यों के साथ ईस नगरी में आएंगे है वह बात सच हो चुकी है मैं गुरु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता उनका आदेश है कि पुत्रवती नारी के हाथ से ही भोजन स्वीकार करना हां स्वयं भोजन लेकर नौलखा बाग चली आना गुरुजी नाराज होंगे तो मैं उन्हें मना लूंगा माता बछल आज्ञा पाकर भंडारे की व्यवस्था में लग गई भंडार तैयार करवरकर अपनी सखी सहेलियां और दाशियो के साथ नौलखा के बैग में गुरु गोरखनाथ जी की सेवा में उपस्थित हो गई इतनी मात्रा में तरह-तरह के पकवान देखकर गुरु गोरखनाथ जी ने ओघडनाथ जी से पूछा ये कौन नारी है ओघड़ नाथ जी ने कहा गुरुदेव महारानी वाछाल आपकी परम भक्त है जो 2 वर्षों से आराधना कर रही है हम सबके लिए हम सबके लिए श्रद्धा से भोजन लाई है संत ओघडनाथ जी ने खीर को दिखा और उनके मन में लालच आ गया कहीं फिर से वंचित न रह जाए यह सोचकर उन्होंने अपने लिए पहले एक ही बचा कर रख ली गुरु गोरखनाथ जी तो जानते थे जब तभी जब सभी संतो ने तीर का सेवन कर लिया उसके उपरांत भी ही बच गई गुरु गोरखनाथ जी ने ओघडनाथ जी से कहा अपने लिए फिर परोस लें गुरुजी मैंने तो अपने लिए की पहले से ही रख ली थी इतना सुनते ही गुरु गोरखनाथ जी को गुस्सा आ गया उन्होंने धूनी से चिमटा उठाकर पांच सात चिमटे ओघडनाथ जी की पीठ पर जमा दिए