न्यूज रिपोर्टर मनोज मूंधड़ा श्री डूंगरगढ़ 28 अप्रैल रविवार
इस साल धींगा गवर मेले में बेंत लेकर आई बाहरी युवतियों को रोकने के प्रयास में स्थानीय महिलाओं की उनसे झड़प हो गई।शादी के लिए बेंत की मार खाते युवक और अलग-अलग स्वांग रचकर घूमती महिलाएं-युवतियां. ये नजारा देखने को मिला जोधपुर के प्रसिद्ध धींगा गवर मेले में। इस अनोखे मेले को देखने के लिए पूरे मारवाड़ से लोग जोधपुर पहुंचते हैं। इस उत्सव से जुड़ी अनोखी परंपराएं लोगों को यहां आकर्षित करती हैं। गवर माता की 16 दिन की पूजा के अंतिम दिन होने वाले इस आयोजन में माता की सवारी निकलती है। इस साल शनिवार की रात को निकली सवारी में अलग-अलग प्रतिमाओं को करीब 6 करोड़ की ज्वेलरी पहनाई गई थी। जोधपुर में यह खास मेला शनिवार रात 10 बजे से रविवार सुबह 4 बजे तक चला। इस दौरान स्थानीय महिलाओं की बाहर से आने वाली युवतियों के साथ धक्का-मुक्की भी हो गईं!
नारी शक्ति का प्रतीक है धींगा गवर का मेला-
1. गवर बैठाने की परंपरा जोधपुर के परकोटे में स्थित हड्डियों के चौक से हुई थी।
2. मान्यता है यहां चौक में गवर माता की प्रतिमा अवतरित हुई थी।
3. चैत्र शुक्ल तीज से वैशाख कृष्ण पक्ष की तीज तक धींगा गवर का पूजन होता है।
4.महिलाएं 16 दिन तक व्रत रखती हैं, इसके बाद 16वें दिन रात को मेले का आयोजन होता है।
5. पूरी रात महिलाओं का साम्राज्य होता है। देर रात तक हाथ में बेंत लिए महिलाएं नाचती-गाती घूमती हैं।
6.ये बेंत अगर किसी कुंवारे युवक को पड़ जाए तो उसकी जल्द ही शादी हो जाती है।
व्रत खोलकर होती है मेले की शुरुआत-
शनिवार को महिलाओं ने चौथ का व्रत किया। फिर चांद देखने के बाद रात भर मुख्य मेले का आयोजन किया गया। गवर विदाई पर अलग-अलग तरह के स्वांग रचकर महिलाएं गवर प्रतिमाओं के दर्शन के लिए पहुंची। रास्ते में कई जगहों पर इनका स्वागत किया गया। महिलाओं ने गवर माता के दर्शन कर अखंड सौभाग्य और परिवार की खुशहाली की कामना की। लाइव आर्केस्ट्रा पर महिलाओं ने पारंपरिक गीत भी प्रस्तुत किए।
बेंत मारने के लेकर छीना-झपटी भी हुई-
शहर के परकोटा इलाके में बेंत मारने को लेकर छीना-झपटी भी हो गई। मेले में शामिल व्रती महिलाओं ने आरोप लगाया कि मेले की छवि खराब करने की कोशिश की गई। कॉलेज के युवक-युवतियां और मनचले इसमें शामिल हो गए। वे न तो व्रत रखते हैं और न ही उनके पास पूजित छड़ी थी। बाहरी लोगों के कारण पवित्र धींगा गवर मेले का नाम बेंत मार मेला हो गया है। हालांकि, बाद में पुलिस ने बीच-बचाव कर महिलाओं-युवतियों से बेंत लेकर रखवा लिया।
– छड़ी को ईसरजी का रूप मानते हैं
ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों तक गवर अपने पीहर में रहती हैं।
1. इस दौरान जब ईसर जी गवर से मिलने आए तो पीहर में उन्हें रोक दिया गया। तब उन्होंने बेंत का रूप धारण किया और 16 दिनों तक उनकी बेंत के रूप में रक्षा की। 2.इसका पूजन करने वाली महिलाओं को तिजणियां कहा जाता है।
3.ये दुलार की छड़ी है। इस छड़ी से ईसरजी का आशीर्वाद मिलता है।
4.इसमें कई प्रकार की बाधाएं दूर होती है। इमसें एक बाधा शादी की भी है।
जोधपुर के परकोटे में रहने वाली महिलाओं ने बताया- आजकल मेले को लेकर झूठा प्रचार किया जा रहा है। अफवाह फैलाई जा रही है कि मेले में कुंवारा युवक बेंत की मार खा ले तो उसकी शादी जल्दी हो जाती है। लेकिन, असल मान्यता यह है कि जो महिलाएं 16 दिनों तक व्रत रखती हैं और नियमों का पालन करती हैं। वह अनजाने में किसी युवक को छड़ी से मारती हैं कुंवारे युवकों की सगाई हो जाती है। महिलाओं का आरोप था कि जिन युवतियों ने व्रत नहीं किया। वह युवतियां भी यहां पर बेंत लेकर आती हैं। ये कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियां हैं और जोधपुर की निवासी भी नहीं है। इससे यहां मनचले भी आते हैं। इससे मेले का माहौल खराब होता है। कई बार लड़ाई झगड़े भी हो चुके हैं। महिलाओं ने आरोप लगाया कि प्रशासन का मेले में पूरी तरह से सपोर्ट नहीं रहा। जिसकी वजह से बाहरी युवतियां और मनचले भी मेले में आ गए।
धींगा गवर मेले से जुड़ी PHOTOS…
जोधपुर के परकोटे में इस साल मेले के मौके पर 65
अलग-अलग आयोजन किए गए। करीब 40 प्रतिमाओं की
स्थापना की गईं। इन्हें करीब 6 करोड़ की ज्वेलरी से
सजाया गया था।
रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक महिलाएं सड़कों पर
अलग-अलग वेश बना कर पहुंचीं।
मेले में इस बार तिजणियों ने बाहर से बेंत लेकर आने
वाली महिलाओं को रोकने का प्रयास किया
शहर में अलग अलग जगहों पर विराजित प्रतिमाओं को
देखने के लिए जोधपुर के साथ पूरे मारवाड़ से लोग
पहुंचे।
बेंत से युवकों की पिटाई की परंपरा ने भी इस मेले को
खास बनाया है। हालांकि, स्थानीय महिलाओं का कहना है
कि मान्यताओं को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।
अलग अलग स्वांग रचकर महिलाएं कार्यक्रम में शामिल हुईं।
धींगा गवर मेले में महिलाएं ग्रुप बनाकर भी शामिल हुई।
एक जैसी ड्रेस और परंपरागत मारवाड़ी पगड़ी के अलावा
सभी के हाथ में बेंत या छड़ी भी थी।
देर रात तक भीतरी शहर में मेले में शामिल होने के लिए
लोगों का हुजूम उमड़ता रहा। पुराने शहर में आकर्षक
सजावट भी की गई थी।
