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नारद जयंती पर श्री त्रिवेदी का आत्ममंथनात्मक संबोधन

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Satyarath
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नारद जयंती पर श्री त्रिवेदी का आत्ममंथनात्मक संबोधन

मनोज कुमार माली
सोयत कला नगर

जिला आगर-मालवा मध्य प्रदेश में नारद जयंती के अवसर पर बुधवार को मधुबन गार्डन में विश्व संवाद केंद्र आगर मालवा द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में samachar.com के संपादक , वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रकाश त्रिवेदी (उज्जैन) ने पत्रकारिता की आत्मा को टटोलने वाला गहन विचारमंथन प्रस्तुत किया। विषय था – “राष्ट्रहित के विमर्श में पत्रकारिता का योगदान”, जिसे उन्होंने ऐतिहासिक विमर्श में परिवर्तित कर दिया। चारों तहसीलों से पहुंचे पत्रकारों की उपस्थिति में श्री त्रिवेदी ने स्पष्ट किया कि वर्तमान समय को भीड़ नहीं, विवेकशील पत्रकारों की ज़रूरत है – नारद जी जैसे, जो देव और दानव दोनों के बीच संवाद का धर्म निभाते थे।

पत्रकारिता: व्यवसाय नहीं, विचारधारा की साधना

श्री त्रिवेदी ने कहा कि आज पत्रकार ‘चपेट से बने पत्रकार’ हो रहे हैं – न साधना है, न दृष्टि। उन्होंने चेताया कि पत्रकार को सत्ता का नहीं, समाज का प्रतिनिधि बनना चाहिए। पत्रकारिता केवल समस्या उजागर करने का कार्य नहीं, समाधान की ओर समाज को दिशा देने का माध्यम है। पत्रकार का धर्म उलझन नहीं, समाधान हो।

विचार, दृष्टि और इकोसिस्टम – राष्ट्र के प्रहरी बने पत्रकार

वक्ता ने राष्ट्र को केवल भूखंड नहीं, अपितु जीवंत चेतना बताया और पत्रकार को उसका प्रहरी कहा। उन्होंने नारद परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए कहा कि संवाद का उद्देश्य सुधार होना चाहिए, न कि प्रतिशोध। पत्रकारिता को आज अपने विचारधारा आधारित इकोसिस्टम की आवश्यकता है, जिससे वह कॉर्पोरेट प्रभाव से मुक्त होकर समाजोन्मुख हो सके।

वर्तमान चुनौतियां और विचारधारा की उपेक्षा

उन्होंने चिंता जताई कि आज खोजी पत्रकारिता सिमट गई है और कॉपी-पेस्ट की संस्कृति ने पत्रकारों की जिज्ञासा छीन ली है। समाज से संवाद टूट गया है, और मीडिया अब मौनदर्शक बनता जा रहा है। पत्रकारों को चाहिए कि वे महज सूचना न दें, अपितु जनप्रतिनिधियों से उत्तरदायित्व भी माँगें।

डिजिटल युग की चुनौती और संभावनाएं

डिजिटल मीडिया की शक्ति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रिंट की अपेक्षा डिजिटल पोर्टल अधिक पढ़े जा रहे हैं, परंतु समाज की भागीदारी घट रही है। यह केवल पत्रकारों की नहीं, समाज की निष्क्रियता का द्योतक है। पत्रकारिता को युद्ध जैसी परिस्थिति में भी मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए, और मीडिया में पनप रहे षड्यंत्रों को पहचानकर सच्चाई के पक्ष में खड़ा होना चाहिए।

जीवित पत्रकारिता से जीवंत राष्ट्र

उद्बोधन का सार यह था कि पत्रकारिता केवल उपकरणों से नहीं, चिंतन से चलती है। आज सबसे बड़ी कमी विषय-वस्तु की है। श्री त्रिवेदी ने स्पष्ट किया कि प्रेस की स्वतंत्रता एक अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व भी है – जो संविधान ने दिया है, उसे चरित्र से निभाना होगा। समाज और प्रशासन के बीच सेतु बनने की पत्रकार की भूमिका आज और अधिक प्रासंगिक हो गई है।

निष्कर्ष: पत्रकार बने समाज का दिशा-दर्शक

इस अवसर पर उन्होंने अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता से जुड़े संस्मरण साझा करते हुए स्पष्ट किया कि पत्रकारिता कोई पाठ्यक्रम नहीं, एक उपजी हुई समझ है। उन्होंने केरल और राजकोट जैसे मॉडलों को उदाहरण बनाकर समाज-आधारित मीडिया की ओर प्रेरित किया और प्रश्न रखा – “क्या हम अपने जिले में वैसा कोई प्रयास कर सकते हैं?”

अंततः श्री त्रिवेदी का संदेश यही था

“*जब तक पत्रकारिता जीवित है, राष्ट्र जीवंत है। विचारधारा की चिंता करेंगे, तभी संस्कृति बचेगी।
यह संबोधन केवल भाषण नहीं, आज के पत्रकार के लिए ‘सार्थक आत्मदर्पण’ बन गया*।

विचार मंच की गरिमा

विश्व संवाद केंद्र आगर मालवा द्वारा आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवानिवृत्त प्राचार्य नंदकिशोर कारपेंटर ने की। अतिथियों द्वारा देवऋषि नारद जी के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।संचालन पत्रकार राजेश अजनबी द्वारा और अतिथि परिचय पत्रकार राजेश कुमरावत ‘सार्थक’ द्वारा कराया गया। आभार पत्रकार राकेश बिकुंदिया ने व्यक्त किया।

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