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पत्रकारिता पर प्रवचन परंतु पत्रकारों को वेतन और नियुक्ति पत्र पर चर्चा नहीं

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Satyarath
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पत्रकारिता पर प्रवचन परंतु पत्रकारों को वेतन और नियुक्ति पत्र पर चर्चा नहीं

(पत्रकारिता पर प्रवचन परंतु पत्रकारों को वेतन और नियुक्ति पत्र पर चर्चा नहीं हुई क्योंकि प्रेस क्लब सिर्फ साहित्यिक कार्यक्रम तक के लिए समर्पित है उसे पत्रकारों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है।

इंदौर। एक गरिमामय समारोह में इंदौर प्रेस क्लब का तीन दिवसीय इंदौर मीडिया कॉन्क्लेव का शुभारंभ हुआ। यह आयोजन इंदौर प्रेस क्लब के 63वें स्थापना दिवस पर आयोजित किया जा रहा है। समारोह में सभी अतिथियों ने मूर्धन्य पत्रकार राजेंद्र माथुर जी, राहुल बारपुते जी, प्रभाष जोशी जी, डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी, शरद जोशी जी, अभय छजलानी जी, कृष्णकुमार अष्ठाना जी को स्मरण किया। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि सांसद शंकर लालवानी और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो. राकेश सिंघई थे। समारोह में बड़ी संख्या में प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार, सोशल इन्फ्लूएंसर, विभिन्न सामाजिक एवं शैक्षणिक संगठनों के प्रमुख एवं प्रतिनिधि मौजूद थे। कार्यक्रम का शुभारंभ सांसद शंकर लालवानी, कुलगुरु प्रो. राकेश सिंघई, कस्तूरबाग्राम ट्रस्ट के करुणाकर त्रिवेदी, सेवा सुरभि के ओम नरेडा, अभ्यास मंडल के रामेश्वर गुप्ता, सानंद न्यास के जयंत भिसे, इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, महासचिव हेमंत शर्मा, प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष सतीश जोशी ने दीप प्रज्जवल कर किया।

शुभारंभ मौके पर सांसद शंकर लालवानी ने कहा कि इंदौर प्रेस क्लब इंदौर एक ऐसा शहर है जिसने देश को बड़े-बड़े पत्रकार और संपादक दिए हैं। जिन्होंने पत्रकारिता को एक नया आयाम देकर देश-दुनिया में पत्रकारिता का परचम लहराया है। इंदौर को गढऩे में पत्रकारों का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने आगे कहा कि प्रिंट मीडिया के साथ अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अपना एक वजूद है और वह प्रिंट मीडिया को लगातार चुनौती दे रहा है। इसलिए प्रिंट मीडिया को अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रो. राकेश सिंघई ने कहा कि इंदौर की भाषाई पत्रकारिता की देश और दुनिया में विशिष्ट पहचान है। यहां के पत्रकारों की लेखनी की चर्चा सभी जगह होती है, क्योंकि वे अपनी बात बेवाकी से लिखते हैं। पत्रकारिता के इस तीन दिवसीय अनुष्ठान के मंथन से जो अमृत निकलेगा, उसका लाभ पत्रकारिता के छात्रों को भी मिलेगा और यह आयोजन पत्रकारिता के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा।

इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि इन्दौर की सबसे पुरातन पत्रकारिता की संस्था इन्दौर प्रेस क्लब के इस महत्त्वपूर्ण परिसर में आपका स्वागत है। आज से पत्रकारिता के समृद्ध इन्दौर घराने का अपना महोत्सव इन्दौर मीडिया कॉनक्लेव का आरंभ हो रहा है। यह इन्दौर राजेन्द्र माथुर, राहुल बारपुते, प्रभाष जोशी, शरद जोशी, माणिकचंद वाजपेयी, वेदप्रताप वैदिक, पदम् श्री अभय छजलानी और कई हस्ताक्षरों से समृद्ध है। इन्ही सब पूर्वजों के द्वारा लगाया गया इन्दौर प्रेस क्लब आज वटवृक्ष बन गया है। नि:संदेह आगामी तीन दिन आप और हम सभी देश के सुप्रसिद्ध पत्रकारों, चिंतकों के विचारों को सुनेंगे, विभिन्न विषय, महत्त्वपूर्ण, विचारोतेजक सत्र और सैकड़ों अनुभवों के साथ आप सब जुड़ें तीनों दिन। आपके अपने उत्सव इन्दौर मीडिया कॉनक्लेव को आपकी उपस्थिति ही महनीय बनाएंगी।

इंदौर मीडिया कॉन्क्लेव का पहला सत्र पत्रकारिता का इंदौर घराना के नाम रहा। इस विषय पर वक्ताओं ने बेवाकी के साथ अपनी बात कही। वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व कार्यकारी राज्यसभा टीवी के संपादक राजेश बादल ने कहा कि करीब चार दशक पहले देश में इंदौर की पहचान मिनी मुंबई या कारोबारी शहर के नाम पर होती थी, लेकिन आज इंदौर पत्रकारिता का एक घराना बन चुका है। जिसने देश को कई ख्यात पत्रकार दिए हैं। इंदौर पत्रकारिता का एक ऐसा शिल्पी है जो पत्रकारों को गढ़ता है। यहां के लोगों में जो सेंस ऑफ ह्यूमर और शब्दों की संवेदनाएं हैं, वह उसे दूसरे शहरों से एकदम विशिष्ट हैं। मालवा की सौम्यता की बात ही अलग है।

अमर उजाला डिजिटल नई दिल्ली के संपादक जयदीप कर्णिक ने अपने उद्बोधन में कहा कि इंदौर की पत्रकारिता ने जो भाषा के संस्कार दिए हैं, वह बेमिशाल हैं। उन्होंने नईदुनिया का जिक्र करते हुए कहा कि यह केवल एक अखबार ही नहीं पत्रकारिता की सबसे बड़ी पाठशाला रही है। जिसका लोहा आज भी देश और दुनिया में माना जाता है।

अमर उजाला के समूह सलाहकार संपादक यशवंत व्यास ने कहा कि तीन दशक बाद मैं इंदौर में आया हूं। इसके बावजूद मैं यहां लोगों से मिला तो ऐसा लगा कि मैं यहां से गया ही कब था। यहां की पत्रकारिता की अपनी एक विशिष्टता है। जो एक बार यहां आता है, वह यहीं का होकर रह जाता है। उन्होंने कहा कि नईदुनिया एक ऐसा अखबार है, जिसने वहां के पत्रकारों को पत्रकारिता के नए-नए प्रयोग करने की पूरी स्वतंत्रता है। उन्होंने मालवी और निमाड़ी बोली की भी चर्चा की, जिसका पत्रकारिता में अच्छी खासी भूमिका रही है।

आजतक नई दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार सईद अंसारी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपनी बात रखते हुए कहा कि इंदौर ने पत्रकारिता को एक नई दिशा दी। पत्रकारिता की आत्मा है इंदौर और राजेद्र माथुर जी, आलोक मेहता जी व राहुल बारपुते जी जैसे मूर्धन्य पत्रकार पत्रकारिता के पुरोधा हैं, जिन्होंने पत्रकारिता को जिया है। लेखनी पत्रकारों का चरित्र है और संपादक उसका मार्गदर्शक होता है।

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि इंदौर से प्रकाशित नईदुनिया का देश में वही स्थान है, जो किसी समय शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा और तक्षशिला का रहा है। पत्रकारिता को घराना बनाने में नईदुनिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, क्योंकि उसने देश को ऋषितुल्य संपादक और मूर्धन्य पत्रकार दिए हैं। नईदुनिया एक ऐसा अखबार है, जिसको पढ़कर कई लोगों ने शुद्ध भाषा सीखी।

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कि अभी तक इंदौर की पहचान पोहे और जलेबी तक ही सीमित रही, लेकिन सही मायने में इंदौर एक ऐसा शहर है, जहां आईआईटी और आईआईएम दोनों हैं और जहां बनारस, ग्वालियर और जयपुर के संगीत घराने की तरह इंदौर पत्रकारिता का घराना है। इंदौर से निकले राजेंद्र माथुर जी, प्रभाष जोशी जी, शरद जोशी जी ऐसे मूर्धन्य पत्रकार और संपादक रहे, जिन्होंने दूसरे शहरों में जाकर केवल पत्रकारिता ही नहीं की बल्कि पत्रकारिता में एक बड़ा परिवर्तन भी किया। इसी वजह से इंदौर पत्रकारिता का घराना कहलाता है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत प्रेस क्लब महासचिव हेमंत शर्मा, उपाध्यक्ष दीपक कर्दम, प्रदीप जोशी, कोषाध्यक्ष संजय त्रिपाठी, विपिन नीमा, मुकेश तिवारी, सुनील जोशी, श्रुति अग्रवाल, अभिषेक चेंडके, जमना मिश्रा ने किया। स्मृति चिह्न पद्मश्री भालू मोढे, प्रेस क्लब सचिव अभिषेक मिश्रा, अनिल त्यागी, किरण वाईकर, हरेराम वाजपेयी ने प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन संस्कृतिकर्मी संजय पटेल ने किया। इस अवसर पर राजेश बादल ने मूर्धन्य पत्रकार स्व. राजेंध्र माथुर और पत्रकारिता पर लिखी पुस्तकें एवं श्री माथुर का चित्र इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी को भेंट किया।

इंदौर मीडिया कॉन्क्लेव का दूसरा सत्र एआई-कृत्रिम बुद्धि का धमाल-नौकरी लेगा या करेगा कमला विषय पर केंद्रित था। इस सत्र के मॉडरेटर पीटीआई के ब्यूरोचीफ हर्षवर्धन प्रकाश थे। एनडीटीवी, नई दिल्ली के सीनियर एडिटर हिमांशु शेखर ने कहा कि अधिकतर न्यूज एजेंसी की अपनी कोई एआई पॉलिसी नहीं है। आज इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 96 करोड़ हो गई है। न्यूज एजेंसी के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं सोशल मीडिया और चेटबोर्ड। एआई एंकर को न्यूज एंकर के रूप में स्वीकृति देना मुश्किल है, क्योंकि इनमें ह्यूमेन इंटरफेस की कमी है। एआई को उपयोगी बनाने के लिए बहुत बुुद्धिमान और शक्तिशाली मानवीय सेना लगती है। अमर उजाला नई दिल्ली के डिजिटल संपादक जयदीप कर्णिक कहा कि कोई भी तकनीक मानवीय रोजगार समाप्त करने के लिए नहीं बल्कि उसे चुनौती देने के लिए आती है। अत: हमें इस चुनौती के लिए खुद को तैयार करना होगा।

डिजिटल सेवाएं, मल्टीमीडिया, सोशल मीडिया एवं फैक्ट चेकिंग पीटीआई नई दिल्ली के हेड प्रत्यूष रंजन ने कहा कि एआई पत्रकारिता के लिए नहीं बल्कि कमजोर और आलस से भरी पत्रकारिता के लिए खतरा है। एआई का उपयोग करने से पहले दो बिंदुओं की जांच करना जरूरी है जैसे एआई के सूत्र क्या हैं और उसकी नीतियां क्या हैं।

देश में हिंदी पोर्टल वेबदुनिया की शुरुआत करने वाले वरिष्ठ पत्रकार विनय छजलानी ने कहा कि मनुष्य ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके अपने से अधिक बुद्धिमान तकनीक को जन्म दिया है। एआई से हमारी नौकरियां तब तक ही सुरक्षित रहेंगी, जब तक हम इसे अपने नौकर की तरह इस्तेमाल करेंगे। प्राइवेसी और कॉपीराइट के सवाल के जवाब में जयदीप कर्णिक ने कहा कि एआई की अपनी कोई मौलिक सामग्री या जानकारी नहीं है। जिस तरह से सिखाया जा रहा है, वह वही बताता है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रत्यूष रंजन ने कहा कि एआई के आने के बाद अच्छी और सच्ची जानकारी में फर्क करना मुश्किल हो गया है। बहुत सी न्यूज एजेंसी को भय है कि वे दौड़ में पीछे रह जाएंगे। हालांकि एआई के द्वारा जनरेट किए गए कन्टेंट को गूगल लेंस और रिजेंबल जैसे प्लेटफार्म से कर सकते हैं।

अतिथि स्वागत एवं स्मृति चिन्ह इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, हरीश फतेहचंदानी, संजय लाहोटी, विपिन नीमा और ग्रीष्मा त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम का संचालन प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने किया।

कॉन्क्लेव का तीसरा सत्र अखबारों से सिमटता साहित्य विषय पर केंद्रित रहा। जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कहा कि इंदौर में इस तरह के आयोजन होना केवल सराहनीय नहीं बल्कि प्रशंसनीय भी हैं। इंदौर की पहचान साफ-सुथरे शहर से बढ़कर देश में भाषाई पत्रकारिता के क्षेत्र में भी है। मीडिया कॉन्क्लेव से जो निष्कर्ष निकलेगा उसका प्रभाव देश-दुनिया की पत्रकारिता पर भी पड़ेगा।

दैनिक जागरण दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार अनन्त विजय ने कहा कि हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि हम साहित्य किसे मान रहे हैं। सिनेमा, रंगमंच, लघुकथा क्या यही साहित्य हैं। आज देश में स्वतंत्र रूप से लिखने वालों की कमी हो गई है। अगर हम यह सोचें कि साहित्य के नाम पर अखबारों में फूहड़ता लिखें तो सच में स्थान की कमी हो गई है। अगर घटिया साहित्य को ही लेखन मान लिया जाएगा तो बचेगा क्या। उन्होंने कहा कि लेखन में आज गुणवत्ता की कमी है। हरीशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीलाल शुक्ल जैसे कितने ही मूर्धन्य साहित्यकार हैं, जिनका आज भी तोड़ नहीं हैं। अगर हम अपनी लेखनी पर स्वयं ध्यान देकर सब आरोप अखबारों पर लगा देंगे तो यह ज्यादती होगी।

एनडीटीवी इंडिया के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रियदर्शन ने कहा कि आजादी की जंग में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह पत्रकारिता जेलों में गढ़ी गईं और उसका अपना संघर्ष रहा है। समय और काल के साथ पत्रकारिता में बड़ा बदलाव आया है, जिससे साहित्य का स्थान अपने आप कम हो गया। आज की कविताओं में न कविता है और ना ही गजल में गजल है। कहानियों से कहानी गायब जो साहित्य के लिए चिंतनीय है। जीवन की घटनाओं से साहित्य का जन्म होता है और साहित्य का अपना दृष्टिकोण भी होता है। वक्त के साथ पत्रकारिता और साहित्य दोनों के दृष्टिकोण बदल गए। आज का साहित्य रसहीन है। आज अखबार तो पढ़े जा रहे हैं, लेकिन मुद्दे की बात यह है कि उसमें छप क्या रहा है। एक दौर था जब पत्रकारिता ही साहित्य का हिस्सा हुआ करती थी। फिर पत्रकारिता में साहित्य का दौर आया और आज दोनों की धुरी अलग-अलग है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार निर्मला भुराडिय़ा ने कहा कि साहित्य से मनुष्य में चेष्टा जागृत होती थी, लेकिन समय के साथ यह कम हो गई। अखबारों से साहित्य में कमी आई जो चिंता की बात है। कार्पोरेट कल्चर आने के बाद पत्रकारिता से साहित्य दिनों-दिन गुम होता जा रहा है। युवाओं का ध्यान भी साहित्य पर नहीं है, जो चिंतनी है। एक दौर था जब युवाओं में साहित्य के प्रति ललक होती थी, आज यह सब खत्म हो गई। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. स्वाति तिवारी ने कहा कि एक दौर था, जब अखबार भी साहित्य का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ इसमें भी बदलाव आया। अब पत्रकारिता से साहित्य कम होता जा रहा है। किसी घटना को देखकर एकर साहित्यकार जो सृजन करता था, उसमें संवेदना हुआ करती थी। यह संवेदना ही समाज को गति प्रदान करती थी, लेकिन आज के साहित्य में संवेदना गायब है। साहित्य की किसी भी विधा की रचना में संवेदना को बचाना जरूरी है, तभी सही मायनों में साहित्य बच सकेगा। आज का समय कॉपी पेस्ट व कट पेस्ट का है और साहित्य में भी यही सब हो रहा है। यही कारण है कि अखबारों से साहित्य कम होता जा रहा है। कार्यक्रम मॉडरेट डॉ. अमिता नीरव थी। कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित नईदुनिया के स्टेट एडिटर सद्गुरुशरण अवस्थी एवं संपादक डॉ. जितेन्द्र व्यास और नवभारत समूह के संपादक क्रांति चतुर्वेदी का स्वागत भी किया गया।

अतिथियों का स्वागत मुकेश तिवारी, डॉ. कमल हेतावल, डॉ. ज्योति जैन, सुधाकर सिंह, विनिता तिवारी, संध्या राय चौधरी ने किया। प्रतीक चिन्ह व्योमा मिश्रा, अलका सैनी, वैशाली शर्मा और स्मृति आदित्य ने प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अर्पण जैन ने किया।

पद्मश्री भेरूसिंह चौहान के कबीर भजनों ने समां बांधा

इंदौर मीडिया कॉन्क्लेव का अंतिम सत्र कबीर गायक पद्मश्री भेरूसिंह चौहान के नाम रहा। उन्होंने अपनी मखमली और दमदार आवाज में संत कबीर और मीराबाई के भक्ति भरे भजनों को संगीत की लड़ी में पिरो कर संपूर्ण माहौल में समा बांध दिया। श्री चौहान को सुनने में बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी एवं विभिन्न प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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