छ. ग. विशेष संवाददाता :- राजेन्द्र मंडावी पत्रकारिता बनाम मीडिया – बदलते दौर की चुनौतियाँ
कांकेर
मीडिया और पत्रकारिता के बीच बढ़ती खाई
बस्तर जिला पत्रकार संघ द्वारा आयोजित ‘‘वर्तमान दौर में पत्रकारिता एवं चुनौती’’ विषय पर मंगलवार को एक महत्वपूर्ण व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर देश के ख्यातनाम पत्रकार पी. साईंनाथ ने मीडिया और पत्रकारिता के बीच बढ़ती खाई पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में पूरी पत्रकारिता बदल चुकी है। आज जहाँ पत्रकारिता समाज और आजीविका से जुड़ी हुई है, वहीं मीडिया बाजार और मालिकों के नियंत्रण में आ चुका है।
मीडिया के गिरते मूल्य और बढ़ती मोनोपॉली
साईंनाथ ने कहा कि वर्तमान समय में मीडिया के मूल्यों में भारी गिरावट आई है। मीडिया अब मिशन नहीं, बल्कि मशीन बन चुका है। इसके साथ ही बड़े मीडिया समूहों के विलय (Merger) के नाम पर पत्रकारों की नौकरियाँ छीनी जा रही हैं। कोरोना काल में मीडिया को ‘इंसेशियल सर्विस कटेगरी’ में रखा गया था, जिसके तहत नौकरी से नहीं निकाले जाने का प्रावधान था, लेकिन फिर भी पिछले दो वर्षों में 3500 पत्रकार और 15,000 मीडिया कर्मियों की छंटनी हो चुकी है।
प्रेस फ्रीडम पर खतरा: जब नौकरी नहीं तो आज़ादी कैसी?
साईंनाथ ने सवाल उठाया कि जब पत्रकारों की नौकरियाँ ही सुरक्षित नहीं रहेंगी तो प्रेस की स्वतंत्रता का क्या औचित्य बचेगा? आज मीडिया में सर्वाइव करना सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। युवा पत्रकारिता छोड़कर जनसंपर्क के क्षेत्र में जा रहे हैं। बड़ी मीडिया कंपनियाँ युवाओं को ‘हॉबी करेस्पोंडेंट’ के रूप में रख रही हैं, जहाँ उनके लिए कोई सेवा-शर्तें तय नहीं की जातीं।
सोशल मीडिया: कम्युनिकेशन से ज्यादा प्रॉफिट का साधन
साईंनाथ ने कहा कि सोशल मीडिया आज ‘एंटी सोशल’ हो चुका है। यह अब संचार का माध्यम कम, मुनाफ़े का ज़रिया ज़्यादा बन गया है। उन्होंने बताया कि भारत में सोशल मीडिया पर दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, जिससे डिजिटल स्वतंत्रता पर सवाल उठ रहे हैं।
मीडिया की आत्मा और सत्ता का गठजोड़
उन्होंने कहा कि मीडिया की आत्मा बिक चुकी है। पत्रकारिता की ताकत अब पूँजी और विज्ञापनों पर निर्भर हो गई है। विज्ञापन को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे मीडिया मालिक सत्ता के साथ गठजोड़ कर चुके हैं।
मीडिया मोनोपॉली तोड़ना जरूरी
साईंनाथ ने कहा कि यूरोपीय देशों की तरह भारत में भी मीडिया मोनोपॉली पर रोक लगानी होगी। इसके लिए पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग को स्वतंत्र बनाने के प्रयास होने चाहिए। आज की पीढ़ी पत्रकारिता में नैतिकता और आदर्शों के साथ आती है, लेकिन परिस्थितियाँ उन्हें इससे विमुख कर देती हैं।
बस्तर की पत्रकारिता और फेलोशिप की घोषणा
साईंनाथ ने कहा कि बस्तर में पत्रकारिता के लिए अपार संभावनाएँ हैं। यहाँ की समस्याओं और मुद्दों को उजागर करने के लिए पत्रकारों को आगे आना चाहिए। उन्होंने बस्तर के पत्रकारों के लिए 50,000 रुपये की फेलोशिप देने की घोषणा भी की, जिससे स्थानीय पत्रकारों को प्रोत्साहन मिलेगा।
बस्तर की पत्रकारिता: एक नई चुनौती
इस अवसर पर बस्तर जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष मनीष गुप्ता सहित कई स्थानीय पत्रकारों ने अपने विचार रखे। वक्ताओं ने कहा कि लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब पत्रकारिता मजबूत होगी। जैसे-जैसे बस्तर में नक्सलवाद का प्रभाव कम हो रहा है, वैसे-वैसे भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियाँ बढ़ रही हैं।
शहीद पत्रकार को श्रद्धांजलि
कार्यक्रम में हाल ही में हिंसा के शिकार हुए बस्तर के युवा पत्रकार मुकेश चंद्रकार को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत पत्रकार को याद किया गया।
इस व्याख्यान में बड़ी संख्या में पत्रकार और मीडिया कर्मी उपस्थित थे। कार्यक्रम ने इस सवाल को और मजबूती से उठाया कि क्या आज के दौर में पत्रकारिता जिंदा रह पाएगी, या मीडिया के नियंत्रण में खो जाएगी?