हर्षल रावल
23 दिसंबर, 2024
बच्चों को अलग से शिक्षित करने नहीं होंगे संस्कार, बस बच्चों को यह बातें कहना आरंभ करों- महंत रूपपुरी महाराज
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सिरोही। अपने पुत्रों के लिए माता शास्त्र का कार्य करती है और पिता शस्त्र का ! दोनों का उद्देश्य अपने पुत्रों के मंगलमय और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करना ही होता है ! माता अपने प्रेम से पुत्रों को समझाती है और पिता फटकार कर ! जो कार्य एक माता प्रेम से करती है, वही कार्य एक पिता थोड़ा कठोरता दिखाकर करता है !
जीवन न तो शास्त्र के बिना चलता है और न ही शस्त्र के बिना ! जहाँ पर सही और गलत का निर्णय न हो वहाँ पर शास्त्र कार्य आता है और जहाँ पर निर्णय ही गलत हो वहाँ पर शस्त्र कार्य आता है ! वह जीवन अवश्य ही गलत दिशा में बढ़ता है, जिसमें ना शास्त्र का सम्मान हो और न शस्त्र का अंकुश !
संस्कार ऐसे गुण होते हैं जो बच्चों में छोटी आयु से ही डाले जाते हैं। जिनसे बच्चों को उत्तम बातें सिखाई जा सकती हैं।
बच्चे यदि दूसरों के सामने उत्तम व्यवहार दिखाते हैं, उत्तम बातें करते हैं और माता-पिता के साथ-साथ अन्य लोगों का भी सम्मान करते हैं तो कहा जाता है कि बच्चे संस्कारी हैं। इससे माता-पिता की पालन-पोषण की अधिक प्रशंसा की जाती है। वहीं, बच्चों में बुरी आदतें नजर आती हैं तो उनके संस्कारों को ही दोष दिया जाता है। लेकिन आखिर संस्कार होते क्या हैं? वास्तविक में बच्चों के उत्तम गुणों को ही उनके संस्कार कहा जाता है। ये संस्कार बच्चों में अलग से नहीं डाले जाते बल्कि धीरे-धीरे, रोजमर्रा की आदतों और माता-पिता के व्यवहार से भी बच्चों में संस्कार आते हैं। यहां महंत रूपपुरी महाराज ही कुछ बातों के बारे में बात कर रहे है जो माता-पिता यदि बच्चों से कहते हैं तो बच्चे भी इन उत्तम आदतों को सीखते हैं और जीवन में उतारने लगते हैं। इस प्रकार स्वयं बच्चों में उत्तम संस्कार आने लगते हैं।
सहायता करना उत्तम बात है:-
बच्चे में उदारवादी भावना लाने के लिए या दूसरों के दुःखों के प्रति उसे सजग बनाने के लिए उसे सहायता करना सिखाया जा सकता है। बच्चे को कहें कि सहायता करना उत्तम बात है। जिससे जीवन के किसी भी मोड़ पर यदि उसे कोई जरूरतमंद दिखाई दे तो वह उसकी सहायता करने के लिए सदैव तत्पर रहे।
क्षमा मांगने से छोटे नहीं हो जाते:-
अधिकांश ही देखा जाता है कि अल्प आयु से ही बच्चों में क्षमा ना मांगने की हट नजर आती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे को लगने लगता है कि क्षमा मांग लेने पर उसकी हार हो जाएगी या उसे किसी के सामने झुकना पड़ेगा। लेकिन बच्चे को सिखाएं कि क्षमा मांग लेने का अर्थ यह नहीं होता है कि वह किसी के सामने झुक रहा है और क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता है। अपनी गलती का प्रायश्चित करना और क्षमा मांग लेना एक उत्तम गुण होता है।
सत्य की राह सही राह होती है:-
बच्चे को यह समझाना आवश्यक है कि सत्य बोलकर ही वह जीवन में सफल एवं सचमुच आगे बढ़ता है। सत्य ना बोलकर या असत्य बोलकर बच्चे एक असत्य को कई गुना तक बड़ा बना देते हैं। वहीं, सत्य कभी बदलता नहीं है और यह स्वयं की आत्मसंतुष्टि के लिए भी आवश्यक होता है।
धन्यवाद कहना आवश्यक है:-
यदि कोई आपकी सहायता करे तो उसे धन्यवाद कहना आवश्यक होता है। किसी को धन्यवाद कहने के लिए आपको अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं होती और यही बच्चों को बताना आवश्यक है। जब कोई बच्चे की सहायता करता है और जब बच्चा उसे धन्यवाद कहता है तो इससे बच्चे के उत्तम संस्कारों का पता चलता है।
सम्मान की भावना जरूरी है:-
चाहे सामने वाला व्यक्ति छोटा हो या बड़ा, सम्मान का भागीदार होता है। यह बात बच्चे से कहना और उसे छोटी आयु से ही समझाना आवश्यक होता है। बच्चे में दूसरों के प्रति सम्मान की भावना होना अत्यंत आवश्यक है और यह एक ऐसा गुण है जो सभी में होना आवश्यक है।
अतः हमारे जीवन में माता रुपी शास्त्र और पिता रुपी शस्त्र का सम्मान बचा रहना चाहिये ताकि हमारे जीवन का पथ प्रदर्शन होता रहे ! कभी प्रेम से और कभी मार से, कभी प्रेम से तो कभी फटकार से माता और पिता दोनों ही हमारा जीवन संवारते हैं !