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लड़कियों की शिक्षा में निवेश करने के होते हैं कई लाभ- पूर्णिमा प्रांजल

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लड़कियों की शिक्षा में निवेश करने के होते हैं कई लाभ- पूर्णिमा प्रांजल

बालिकाओं के अधिकार और शिक्षा का अधिकार विषय पर विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन

कौशांबी आज दिनांक 19 दिसंबर, 2024 को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कौशाम्बी के तत्वावधान में कस्तूरबा गांधी इंटरमीडिएट कॉलेज भरवारी चायल कौशाम्बी में बालिकाओं के अधिकार और शिक्षा का अधिकार विषय पर विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती पूर्णिमा प्रांजल, अपर जिला जज/सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जनपद न्यायालय कौशाम्बी ने बालिकाओं के अधिकार और शिक्षा के अधिकार पर बात करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1989 में अपनाए गए बाल अधिकारों पर कन्वेंशन में बच्चों के बुनियादी मानवाधिकारों को निर्धारित किया गया है, जो आमतौर पर 18 वर्ष से कम उम्र के होते हैं। इन अधिकारों में गैर भेदभाव; जीवित रहने और क्षमता के विकास का अधिकार; हानिकारक प्रभावों, दुर्व्यवहारों और शोषण से सुरक्षा; और परिवार, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में पूर्ण भागीदारी शामिल है। कन्वेंशन में कुछ मानवाधिकार उल्लंघनों का भी उल्लेख किया गया है जो केवल बालिकाओं के लिए हैं, जिसमें लिंग के आधार पर भेदभाव, जन्मपूर्व लिंग चयन और कम उम्र में विवाह आदि शामिल हैं।
गरीब और ग्रामीण परिवारों की लड़कियों को शिक्षा से वंचित किए जाने की संभावना विशेष रूप से अधिक होती है। लड़कियों को घर के अंदर और बाहर बाल श्रम के रूप में इस्तेमाल किए जाने की संभावना अधिक होती है फिर भी लड़कियों की शिक्षा में निवेश करने के कई लाभ होते हैं जैसे- स्वस्थ परिवार, कम प्रजनन दर, बेहतर आर्थिक प्रदर्शन और गरीबी में कमी आदि। लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए लड़कियों को एक सहायक, लिंग-संवेदनशील वातावरण में शिक्षित करना बेहद महत्वपूर्ण है।
समाज में और लड़कियों के बीच लड़कियों की ज़रूरतों और उनकी क्षमता के बारे में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए ताकि वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग ले सकें। तमाम कानूनी प्रावधानों के चलते प्रगति तो हुई है, लेकिन लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें अपना बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है जिससे वे और अधिक सशक्त हो सकें।
स्त्री-पुरुष समानता जीवन के शुरुआत से ही आनी चाहिए। बालिकाओं को स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और अन्य बुनियादी सेवाओं तक पहुँच की बहुत आवश्यकता है।
कम उम्र में शादी और फिर बच्चे पैदा करने से महिलाओं की जीवन प्रत्याशा कम हो जाती है और उनके स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और रोजगार के अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
किशोर न्याय अधिनियम 1986 में 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियों और 16 वर्ष से कम आयु के लड़कों की सुरक्षा, उपचार और पुनर्वास के लिए विशेष प्रावधान शामिल हैं।
प्रत्येक बच्चे अर्थात बालक और बालिका दोनों को पोषण युक्त भोजन, कपड़े, आश्रय, सम्मान के साथ जीवन जीने, अच्छा स्वास्थ्य, स्वच्छ हवा-पानी, साफ-सुथरे वातावरण का अधिकार है।
बालकों (लड़के और लड़की दोनों) को शोषण व हिंसा के विरुद्ध अधिकार, अपमानित किए जाने के विरुद्ध, शारीरिक व लैंगिक शोषण के विरुद्ध,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ या संगठन बनाने के स्वतंत्रता, आत्म निर्णय की स्वतंत्रता जैसे अधिकार भी प्राप्त हैं।
सीखने, शिक्षा प्राप्त करने, आराम करने, खेलने-कूदने के साथ ही मानसिक, शारीरिक व संवेगात्मक विकास का अधिकार भारतीय संविधान, बालकों से संबंधित विभिन्न विधियों और बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत प्रदान किया गया है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के का विवाह प्रतिबंधित किया गया है।
प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण जीवन एवं बहुमुखी विकास का जन्मजात अधिकार है, इसके अन्तर्गत बच्चों की सुरक्षा, उनके स्वास्थ्य एवं उनकी शिक्षा का अधिकार सम्मिलित हैं जिनका उद्देश्य बच्चों के व्यक्तित्व, योग्यता व मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का सम्पूर्ण विकास है तथा सामाजिक सुरक्षा से पूर्ण लाभ प्राप्त करने का अधिकार भी इसमें सम्मिलित है।
किशोर न्याय देखभाल एवं संरक्षण अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम, एंटी ट्रैफिकिंग एक्ट, बाल कल्याण समिति, एंटी रैगिंग एक्ट तथा भारतीय न्याय संहिता (पूर्व में भारतीय दण्ड संहिता), कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (पूर्व में दण्ड प्रकिया संहिता) की धारा 125 के तहत उपलब्ध भरण पोषण के उपबंधों सहित अन्य अधिनियमों में बालकों व उनके अधिकारों से संबंधित तमाम प्रावधानों, उत्तर प्रदेश पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना व विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं, पात्र व्यक्तियों, तहसील स्तर पर स्थापित लीगल एड फ्रन्ट ऑफिस और वैकल्पिक विवाद समाधान पद्धति की प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी प्रदान की।
बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम का निर्माण 18 वर्ष के कम उम्र के बच्चों के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, पोर्नोग्राफी और छेड़छाड़ के मामलों को रोकने के लिए किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य है बच्चों को इस अपराध से बचाना व समय पर न्याय दिलवाना। इस एक्ट के अन्तर्ग दोषी पाए गए व्यक्ति के लिए 3 साल से लेकर उम्रकैद व मृत्युदंड का भी प्रावधान है।

इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य श्रीमती नीलम, तहसीलदार चायल पुष्पेन्द्र गौतम, शशि त्रिपाठी, उपनिरीक्षक विंध्यवासिनी, शिक्षक, कर्मचारी व पीएलवी कृष्णा कपूर सहित सैकड़ों की संख्या में छत्राएं मौजूद रहे।
डॉ. नरेन्द्र दिवाकर पीएलवी जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कौशाम्बी

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