कुरुक्षेत्र:- अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में पूरे देश के अलग-अलग राज्यों की संस्कृति एक ही मंच पर दिखाई दे रही है। नॉर्थ जोन कल्चरल सेंटर के द्वारा सांस्कृतिक कलाकारों को मंच प्रदान किया गया है, जिसमें पंजाब से आए कलाकार झूमर की प्रस्तुति देकर लोगों का मन मोह रहे हैं।
पंजाब से 13 सदस्यों की एक झूमर पार्टी आई हुई है जो यहां अपने झूमर का प्रदर्शन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर आए हुए पर्यटकों का मन मोह रही है। झूमर भांगड़ा की तरह ही होता है। भांगड़ा झूमर में ही से निकला है जो झूमर से तेज स्टेप में किया जाता है, लेकिन यह एक पंजाब की परंपरागत विरासत है इसको संजोए रखने के लिए यह टोली कामकर रही है।
झूमर कलाकार जसवंत सिंह बोले
झूमर कलाकार जसवंत सिंह ने बताया कि उन्हें खुशी है कि यहां आने का मौका मिला है। उनकी 13 लोगों की टीम यहां पर सांस्कृतिक प्रस्तुति देने के लिए पहुंची है। उन्होंने बताया कि पंजाब का लोकप्रिय भांगड़ा झूमर से ही निकला है, क्योंकि झूमर धीमा था और भंगड़ा तेज होता है। उन्होंने बताया कि इस झूमर में ही कई तरह के स्टाइल किए जाते हैं जिसमें फसलों को लेकर भी टप्पे होते हैं।
उन्होंने बताया कि उन्हें हर बार यहां आकर खुशी होती है। अपने पंजाब का कल्चर यहां दिखाने का मौका मिलता है। उन्होंने बताया कि वह पूरे देश में घूम चुके हैं और जो भी इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित होते हैं, उस प्रदेश के द्वारा उनको निमंत्रण दिया जाता है और वह वहां पर जाकर झूमर दिखाते हैं। वह लगभग देश के हर राज्य में जा चुके हैं और लगातार अपनी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
कई पीढ़ियां झूमर से लोगों का मनोरंजन कर रहीं
उन्होंने कहा कि जब अयोध्या में राम मंदिर में रामलाल की स्थापना हुई थी, उस समय भी उनको आमंत्रित किया गया था और उन्होंने वहां पर जाकर अपने झूमर से लोगों का मनोरंजन किया था। इसमें वह कई पीढ़ियों से काम करते आ रहे हैं। और यह उनका एक परंपरागत काम है जो पहले उनके बड़े बुजुर्ग करते आ रहे थे। उन्होंने बताया कि जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तब उनके बड़े बुजुर्ग पाकिस्तान से भारत में आए थे और यहां पर तब से ही वह झूमर कर रहे हैं। जैसे ही वह झूमर की कला का प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर करते हैं तो लोगों को यह काफी पसंद आता है।
अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव 2024 में कई राज्यों के कलाकार अपने राज्य का कल्चर कुरुक्षेत्र ब्रह्मसरोवर पर बिखेर रहे हैं। इसी कड़ी में राजस्थान के कलाकार भी अपने राज्य के कल्चर का बखूबी प्रदर्शन रहे हैं। राजस्थान से आए कलाकारों ने आज ब्रह्म सरोवर के तट पर कालबेलिया नृत्य का प्रदर्शन किया है। यह उनका परंपरागत नृत्य है। जैसे ही उन्होंने अपना कालबेलिया नृत्य अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में शुरू किया तो लोगों की वहां पर भीड़ लगनी शुरू हो गई। लोगों ने उनके डांस का खूब लुफ्त उठाया।
कालबेलिया नृत्य राजस्थान का बहुत ही प्रसिद्ध नृत्य
कलाकार मेहबूब और कलाकार कविता कालबेलिया ने बताया कि राजस्थान का बहुत ही प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्य है। जो विलुप्त होता जा रहा था। उन्होंने कहा कि पहले वह सांप के साथ खेल दिखाने का काम करते थे, जिसके बाद सरकार ने इस काम पर रोक लगा दी थी। रोक लगाने के बाद उन्होंने कालबेलिया नृत्य शुरू किया। उनकी कई पीढ़ियां इस नृत्य को करती आ रही हैं।
पहले वह सांपों के साथ इस नृत्य को किया करते थे, लेकिन पाबंदी के बाद उन्होंने अपने नृत्य में इसको शामिल नहीं किया और अपने कालबेलिया नृत्य में भी कुछ बदलाव किया। उन्होंने कहा कि पहले उनके माता-पिता इस नृत्य को करते थे। अब उन्होंने इस नृत्य को सीखा और आगे वह अपने बच्चों को इस नृत्य को सीखा रहे हैं और यह नृत्य का प्रदर्शन वह देश के कई राज्यों में कर चुके हैं।
अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे लोग
उन्होंने कहा कि चाहे किसी भी राज्य की किसी भी समुदाय की परंपरागत संस्कृति हो, सभी को लोग भूलते जा रहे हैं लेकिन उनका प्रयास है कि उनकी कालबेलिया नृत्य की संस्कृति लोगों तक पहुंचे और वह उसका लुफ्त उठाएं। इसी प्रयास में वह भारत में अलग-अलग राज्यों में आयोजित होने वाले अलग-अलग सरस मेलों में जाते हैं और अपने नृत्य का प्रदर्शन करते हैं, ताकि उनकी यह संस्कृति बची रह सके और राजस्थान ही नहीं, दूसरे राज्यों के लोग भी उनकी संस्कृति के बारे में जाने और यह बरकरार रहे।