सवांददाता नरसीराम शर्मा बीकानेर श्रीडूंगरगढ़
पंचांग का अति प्राचीन काल से ही बहुत महत्त्व माना गया है। शास्त्रों में भी पंचांग को बहुत महत्त्व दिया गया है और पंचाग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना गया है। पंचांग में सूर्योदय सूर्यास्त,चद्रोदय-चन्द्रास्त काल,तिथि, नक्षत्र, मुहूर्त योगकाल,करण,सूर्य-चंद्र के राशि,चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं।
🙏जय श्री गणेशाय नमः🙏
🙏जय श्री कृष्णा🙏
दिनांक:- 05/12/2024, गुरुवार
चतुर्थी, शुक्ल पक्ष, मार्गशीर्ष “”””””””(समाप्ति काल)
तिथि———– चतुर्थी 12:48:57 तक
पक्ष———————— शुक्ल
नक्षत्र———- उत्तराषाढा 17:25:44
योग—————— वृद्वि 12:26:48
करण———— विष्टि भद्र 12:48:57
करण—————– बव 24:30:38
वार———————– गुरूवार
माह———————- मार्गशीर्ष
चन्द्र राशि—————– मकर
सूर्य राशि——————- वृश्चिक
रितु————————- हेमंत
आयन——————– दक्षिणायण
संवत्सर (उत्तर)—————- कालयुक्त
विक्रम संवत—————- 2081
गुजराती संवत————– 2081
शक संवत——————- 1946
कलि संवत—————— 5125
सूर्योदय——————— 06:56:51
सूर्यास्त———————- 17:23:03
दिन काल——————– 10:26:12
रात्री काल——————- 13:34:30
चंद्रोदय———————- 10:30:45
चंद्रास्त———————- 21:07:50
लग्न——– वृश्चिक 19°12′, 229°12′
सूर्य नक्षत्र—————– ज्येष्ठा
चन्द्र नक्षत्र—————— उत्तराषाढा
नक्षत्र पाया——————- ताम्र
🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩
जा—- उत्तराषाढा 11:24:44
जी—-उत्तराषाढा 17:25:44
खी—- श्रवण 23:25:31
खू—- श्रवण 29:24:03
*💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
==========================
सूर्य= वृश्चिक 19°45, ज्येष्ठा 1 नो
चन्द्र=मकर 04°30 , उ oषाo 3 जा
बुध =वृश्चिक 21°52 ‘ ज्येष्ठा 2 या
शु क्र= मकर 03°05, उ oषा०’ 2 भो
मंगल=कर्क 11°30 ‘ पुष्य ‘ 3 हो
गुरु=वृषभ 22°30 रोहिणी, 4 वू
शनि=कुम्भ 18°50 ‘ शतभिषा , 4 सू
राहू=(व) मीन 08°45 उo भा o, 2 थ
केतु= (व)कन्या 08°45 उ o फा o 4 पी
🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 💮🚩💮
राहू काल 13:28 – 14:47 अशुभ
यम घंटा 06:57 – 08:15 अशुभ
गुली काल 09:33 – 10: 52अशुभ
अभिजित 11:49 – 12:31 शुभ
दूर मुहूर्त 10:26 – 11:07 अशुभ
दूर मुहूर्त 14:36 – 15:18 अशुभ
वर्ज्यम 21:26 – 23:02 अशुभ
प्रदोष 17:23 – 20:09 शुभ
चोघडिया, दिन
शुभ 06:57 – 08:15 शुभ
रोग 08:15 – 09:33 अशुभ
उद्वेग 09:33 – 10:52 अशुभ
चर 10:52 – 12:10 शुभ
लाभ 12:10 – 13:28 शुभ
अमृत 13:28 – 14:47 शुभ
काल 14:47 – 16:05 अशुभ
शुभ 16:05 – 17:23 शुभ
चोघडिया, रात
अमृत 17:23 – 19:05 शुभ
चर 19:05 – 20:47 शुभ
रोग 20:47 – 22:29 अशुभ
काल 22:29 – 24:10* अशुभ
लाभ 24:10* – 25:52* शुभ
उद्वेग 25:52* – 27:34* अशुभ
शुभ 27:34* – 29:16* शुभ
अमृत 29:16* – 30:58* शुभ
होरा, दिन
बृहस्पति 06:57 – 07:49
मंगल 07:49 – 08:41
सूर्य 08:41 – 09:33
शुक्र 09:33 – 10:26
बुध 10:26 – 11:18
चन्द्र 11:18 – 12:10
शनि 12:10 – 13:02
बृहस्पति 13:02 – 13:54
मंगल 13:54 – 14:47
सूर्य 14:47 – 15:39
शुक्र 15:39 – 16:31
बुध 16:31 – 17:23
होरा, रात
चन्द्र 17:23 – 18:31
शनि 18:31 – 19:39
बृहस्पति 19:39 – 20:47
मंगल 20:47 – 21:55
सूर्य 21:55 – 23:02
शुक्र 23:02 – 24:10
बुध 24:10* – 25:18
चन्द्र 25:18* – 26:26
शनि 26:26* – 27:34
बृहस्पति 27:34* – 28:42
मंगल 28:42* – 29:50
सूर्य 29:50* – 30:58
🚩 उदयलग्न प्रवेशकाल 🚩
वृश्चिक > 04:18 से 06:56 तक
धनु > 06:56 से 09:08 तक
मकर > 09:08 से 11:56 तक
कुम्भ > 11:56 से 12: 28 तक
मीन > 12:28 से 14:00 तक
मेष > 14:00 से 15:24 तक
वृषभ > 15:28 से 17:32 तक
मिथुन > 17:32 से 19:40 तक
कर्क > 19:40 से 22:08 तक
सिंह > 22:08 से 00:02 तक
कन्या > 00:02 से 02:18 तक
तुला > 02:18 से 04:28 तक
विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
नोट- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें।
लाभ में व्यापार करें।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें।
दिशा शूल ज्ञान—————दक्षिण
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा केशर खाके यात्रा कर सकते हैl
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु चl
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय:ll
अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु।दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं।।
महारुद्र व्रतेमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत्।।
4 + 5 + 1 = 10 ÷ 4 = 2 शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक हैl
🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
बुध ग्रह मुखहुति
शिव वास एवं फल -:
4 + 4 + 5 = 13 ÷ 7 = 6 शेष
क्रीड़ायां = शोक , दुःख कारक
भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
दोपहर 12:49 तक समाप्त
पाताल लोक = धनलाभ कारक
💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮
विनायक चतुर्थी व्रत
💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः।
न च विद्यागमऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत्।।
।। चा o नी o।।
उस देश मे निवास न करें जहाँ आपकी कोई ईज्जत नहीं हो, जहा आप रोजगार नहीं कमा सकते, जहा आपका कोई मित्र नहीं और जहा आप कोई ज्ञान आर्जित नहीं कर सकते।
🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩
गीता -: विश्वरूपदर्शनयोग अo-11
अदृष्टपूर्वं हृषितोस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देवरूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास॥,
मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्यमय रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है, इसलिए आप उस अपने चतुर्भुज विष्णु रूप को ही मुझे दिखलाइए।, हे देवेश! हे जगन्निवास! प्रसन्न होइए॥,45॥,
💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत।।
🐏मेष-व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। किसी प्रभावशाली वरिष्ठ व्यक्ति का सहयोग व मार्गदर्शन प्राप्त होगा। शारीरिक कष्ट संभव है। विरोधी सक्रिय रहेंगे। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। प्रसन्नता रहेगी। वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है।
🐂वृष-पार्टी व पिकनिक का कार्यक्रम बन सकता है। यात्रा मनोरंजक रहेगी। बौद्धिक कार्य सफल रहेंगे। कारोबार में वृद्धि होगी। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी। मनपसंद भोजन का आनंद प्राप्त होगा। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड मनोनुकूल लाभ देंगे। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। ईर्ष्यालु व्यक्तियों से सावधानी आवश्यक है।
👫मिथुन-कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। बेवजह चिड़चिड़ापन रह सकता है। धनागम होगा। बकाया वसूली के प्रयास सफल रहेंगे। यात्रा मनोरंजक रहेगी। मित्रों का सहयोग समय पर प्राप्त होगा। प्रसन्नता रहेगी। अज्ञात भय सताएगा। व्यापार ठीक चलेगा। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। प्रमाद न करें।
🦀कर्क-कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। वाणी पर नियंत्रण रखें। अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे। कर्ज लेना पड़ सकता है। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। जल्दबाजी में कोई महत्वपूर्ण निर्णय न लें। व्यापार ठीक चलेगा। मित्रों के साथ समय अच्छा व्यतीत होगा। कुसंगति से बचें। धनहानि हो सकती है।
🐅सिंह-प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि होगी। भूमि व भवन संबंधी योजना बनेगी। स्थायी संपत्ति में वृद्धि के योग हैं। आय में वृद्धि होगी। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। भाग्य का साथ मिलेगा। निवेशादि लाभदायक रहेंगे। दुष्टजनों से सावधान रहें। हानि पहुंचा सकते हैं। प्रमाद न करें।
🙎♀️कन्या-रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। व्यावसायिक यात्रा लंबी हो सकती है। अप्रत्याशित लाभ के योग हैं। जुए, सट्टे व लॉटरी से दूर रहें। किसी बड़ी समस्या से छुटकारा मिल सकता है। किसी प्रभावशाली व्यक्ति का मार्गदर्शन मिल सकता है। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी।
⚖️तुला-प्रयास सफल रहेंगे। सामाजिक कार्य करने में रुचि रहेगी। पराक्रम व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। किसी प्रभावशाली व्यक्ति से परिचय हो सकता है। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा।। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी।
🦂वृश्चिक-दूर से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। पारिवारिक मित्र व संबंधी अतिथियों के रूप में घर आ सकते हैं। वाणी पर नियंत्रण रखें। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। कारोबार ठीक चलेगा। प्रमाद न करें। बुरे लोगों की पहचान जरूरी है। उनसे दूर रहें।
🏹धनु-घर-परिवार के किसी सदस्य के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। दौड़धूप होगी। विवाद से क्लेश होगा। किसी व्यक्ति के व्यवहार से मन को ठेस पहुंच सकती है। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। आय बनी रहेगी। धनहानि की आशंका बनती है। दूर से दु:खद समाचार प्राप्त होगा, धैर्य रखें।
🐊मकर-किसी व्यक्ति के व्यवहार से लगेगा कि अपमान हुआ है। नई योजना बनेगी। कार्यस्थल पर परिवर्तन पर विचार हो सकता है। व्यापार ठीक चलेगा। घर-परिवार में सुख-शांति रहेगी। आंखों को चोट व रोग से बचाएं। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है।
🍯कुम्भ-ऐश्वर्य के साधनों पर व्यय होगा। धन प्राप्ति सुगम तरीके से होगी। यात्रा मनोरंजक रहेगी। व्यापार लाभदायक रहेगा। मित्रों का सहयोग प्राप्त होगा। भाइयों से मतभेद दूर होकर स्थिति अनुकूल रहेगी। तीर्थयात्रा की योजना बनेगी। सत्संग का लाभ मिलेगा। चिंता तथा तनाव रहेंगे।
🐟मीन-वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। पुराना रोग उभर सकता है। विवाद को बढ़ावा न दें। नकारात्मकता रहेगी। व्यापार ठीक चलेगा। आय में निश्चितता रहेगी। दूसरों पर भरोसा न करें। आशंका-कुशंका के चलते कोई बड़ी गलती हो सकती है।
🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
शिवलिंगम् –समाधानम्
प्रायः लोग नासमझी के कारण शिवलिंग के विषय में भ्रामक प्रचार किया करते हैं।तथा अपनी मानसिक अतृप्त वासना का अध्यारोप उपासना पथ में भी कर डालते हैं।जबकि समग्र धरा ही जलहरी है आकाश ही लिंग है।शिव ही लिंग है विष्णु ही आधारशिला जलहरी है।
प्रश्न1क्या शिवलिंग तथा तदाधारभूत जलहरी प्रजननेन्द्रिय है?
उत्तर नहीं।
वास्तविकता ये है कि जब ज्योतिर्मय शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ उस समय समस्त सृष्टि में कुछ था ही नहीं।
1-नासदासीन्नोसदासीत्तदानीम् (ऋक् 8-7-7-1)
तदानीम्=उस समय। न असत् आसीत्=न असत् था। नो सत् आसीत्=ना ही सत् ही था।
2-सर्वे निमेषा जज्ञिरे विद्युतः पुरुषा दधि,नैनमूर्ध्वं च तिर्यंच न मध्ये परिजग्रभत्।। (यजु 32-2)
सर्व प्रथम तब ज्योतिः स्वरूप प्रगट हुआ।अधि=तदनन्तर। विद्युतःपुरुषात्=उस विद्युत पुरुष से। सर्वे निमेषाःजज्ञिरे=सभी कला काष्ठा आदि चराचर जगत उत्पन्न हुआ। एनम् न ऊर्ध्वं न तिर्यङ् च न मध्ये परिजग्रभत्=इस विद्युत पुरुष का न ऊपर न नीचे न पार्श्व में न मध्य में कहीं भी कोई भी पार न पा सका।उसका ओर छोर आदि अन्त मध्य पता न कर सका।(विशेष शिवपुराण 2-15से 64 श्लोक तक देखें)
3-तदण्डमभवद्धैमं सहस्रांशु समप्रभम्।।(मनु)
वह सूर्य की किरणों के समान देदीप्यमान स्वर्णाभाण्ड हुआ। श्रुति स्मृति पुराण वर्णित यह शिवलिंग ही तैजस रूप में विख्यात है। अब आप ही सोचो सज्जनों कि शिव लिंग को (जननेन्द्रिय समझना कितना गम्भीर दैवीय अपराध है व्यर्थ में भ्रम फैलाना अपनी दूषित मानसिकता को प्रकट करना है)
आपकी शंका न्यायदर्शन विरुद्ध है।
युगपज्ज्ञानानुपपत्तिः मनसो लिंगम् (न्याय दर्शन 1-16)
एककालावच्छेदेन=एक काल में, एक साथ, अनेक वस्तुओं का ज्ञान न होना यह मन का लक्षण है।।लिंग=लक्षण
वैशेषिक दर्शन विरुद्ध,निष्क्रमणं प्रवेशनम् इत्याकाशस्य लिंगम् (वै द 2-1-10)
जिसमें प्रवेश तथा निर्गम होता है उसे आकाश या अवकाश कहते हैं। लिंग=चिन्ह ,परिभाषा,लक्षण है।
व्याकरण विरुद्ध अथ लिंगानुशासनम्।
लिंगों का अर्थात् शब्दों की श्रेणियों का विभाग पूर्वक व्यवस्थापन करते हैं।
यथा पुर्लिंग,स्त्रीलिंग,नपुंसकलिंग,,यदि ये लोग लिंग का अर्थ कामोपभोग साधन जननेन्द्रिय ही मानते हैं तो नपुंसकलिंग का क्या करेंगे। कौन पढेगा व्याकरण ।विशेष क्या लिखें कितनी बङी नादानी करते हैं लोग एक शब्द का एक ही अर्थ नहीं होता शब्दानामनेकार्थत्वात्।
इस प्रकार ळिंग शब्द का अर्थ है लक्षण,चिन्ह,परिभाषा निशान शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का चिन्ह प्रतीक।
उसी प्रकार जलहरी को भग कहते हैं परन्तु भग का अर्थ योनि करने वाले अज्ञानी हैं। भग के अनेक अर्थ हैं जैसे माया,प्रकृति,ऐश्वर्य कारण आदि। प्रातर्जितं भगमग्रम् हवामहे (अथर्व 3-16-2)
प्रातः ऐश्वर्य के अधिष्ठातादेवता की हम स्तुति करते हैं।।
भग =ऐश्वर्य
भगवान् में जो भग है उसका अर्थ
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः।
ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरिणा।।
भग=समग्र ऐश्वर्य,समग्रधर्म, समग्र यश,समग्र श्री, समग्र ज्ञान,समग्र वैराग्य।। इन छ को भग कहते हैं इनसे युक्त होने के कारण ही ईश्वर को भगवान कहा जाता है।तस्य योनिं परिपश्यन्ति धीराः..(यजु 31-16)
उस परमात्मा की योनि मूलप्रकृति माया को धीर लोग ही यथार्थ रूप से देख पाते हैं। लीनार्थं गमकं चिन्हं,लिंगमित्यभिधीयते। भं वृद्धिं गच्छतीत्यर्थात् भगः प्रकृतिरुच्यते।। मुख्यो भगस्तु प्रकृतिः भगवान् शिव उच्यते।।(शिपु,विसं 16-106)
अव्यक्त वस्तु को स्पष्ट करने वाले चिन्ह को लिंग कहते हैं,तथा वृद्धि को प्राप्त होने वाली वस्तु को भग कहते हैं।जो कि प्रकृति नाम से कही गयी है।
इसीलिये मुख्य प्रकृति को भग कहते हैं।तथा उस प्रकृति (भग)के अधिष्ठाता होने से ही शिव को भगवान कहा जाता है (भगः अस्यास्तीति भगवान्)
इसप्रकार शिवलिंग का निश्चप्रच अर्थ हुआ अव्यक्त परमात्मा का ज्ञान कराने वाला चिन्ह(प्रतीक)
श्रद्धाश्रमाभ्यां सकलार्थ सिद्धिः = श्रद्धा और श्रम से सकल अर्थों की सिद्धि होती है।।विश्वास की छांव में बैठकर अनादि काल से ऋषि मुनि सन्त महात्मा शिवार्चन करते आ रहे हैं..श्री राम श्रीकृष्ण ने भी शिवार्चन किया है,,,पाणिनि के शिवार्चन का फल तो अष्टाध्यायी के रूप में समग्र विश्व के व्याकरणानुरागी पा ही रहे हैं।
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्वां नवपंचवारम्।
उद्धर्तुकामान् सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्।।
ये शिव सूत्र जाल
अइउण्,ऋलृक्,एओङ्,ऐऔच्,हयवरट्,लण्,ञमङणनम्,झभञ्घढधष्,जबगडदश्,खफछठथचटतव्,कपय्,शषसर्,हल्।।)
तो शिव की कृपा का ही प्रसाद है। शिवार्पणमस्तु
कुत्सित मानसिकता के शोधनार्थ ये प्रयास नहीं है,अपितु शुद्ध अन्तःकरण रूपी पात्र में शास्त्रीय विश्वासामृत भरना मात्र है।जिनको सहमत होने में कठिनाई हो वे पुनः हृदय के नेत्रों से पढें उघरहि विमल विलोचन हिय के।।