सवांददाता नरसीराम शर्मा बीकानेर श्रीडूंगरगढ
हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है।भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन चार महीनों में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।देवउठनी एकादशी पर जब देव जागते हैं, तब मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है। देव जागरण या उत्थान होने के कारण इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं। शास्त्रों में इस दिन का विशेष महत्व देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु समेत सभी देवता अपनी योग निद्रा से जाग जाते हैं। इस दिन व्रत रखने का खास महत्व होता है।
आइए जानते हैं व्रत की तिथी,विधि,नियम और संपूर्ण कथा।
देवउठनी एकादशी – देवउत्थान एकादशी 12 नवम्बर 2024 मंगलवार को मनाया जाएगा।
देवउठनी एकादशी तिथि:-11 नवंबर 2024 को शाम 06 बजकर 42 मिनट पर प्रारंभ होगी और एकादशी तिथि का समापन 12 नवंबर 2024 को शाम 04 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी। देवउठनी एकादशी व्रत 12 नवंबर 2024 को रखा जाएगा। वहीं इसका पारण 13 नवंबर को सुबह 6 बजे के बाद किया जाएगा।
“देवउत्थान/प्रबोधिनी एकादशी”:-
देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। हर साल ये पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु,माता लक्ष्मी और तुलसी की पूजा का विधान है। कई जगहों पर इस दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराने की परंपरा रही है। ये तिथि देवों के जागने की होती है जिस का इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने का खास महत्व होता है।
“देवउत्थान एकादशी व्रत महात्म्य”:-
प्रबोधिनी का महात्म्य पाप का नाश,पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धिवाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करनेवाला है। एकादशी को एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेघ तथा सौ राजसूय यज्ञ का फल पा लेता है। जो दुर्लभ है,जिसकी प्राप्ति असम्भव है तथा जिसे त्रिलोकी में किसी ने भी नहीं देखा है,ऐसी वस्तु के लिये भी याचना करने पर‘प्रबोधिनी’ एकादशी उसे दे देती है। भक्तिपूर्वक उपवास करने पर मनुष्यों को हरिबोधिनी’ एकादशी ऐश्वर्य,सम्पति,उत्तम बुद्धि,राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरूपर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप है,उन सबको यह पापनाशिनी प्रबोधिनी एक ही उपवास में भस्म कर देती है। जो लोग प्रबोधिनी एकादशीका मन से ध्यान करते तथा जो इसके व्रत का अनुष्ठान करते हैं। उनके पितर नरक के दु:खों से छुटकारा पाकर भगवान विष्णु के परम धाम को चले जाते हैं। जो’प्रबोधिनी’ एकादशी के दिन श्रीविष्णु की कथा श्रवण करता है,उसे सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी के दिन तुलसी विवाहोत्सव भी मनाया जाता है।
जानिए व्रत की विधि,नियम और कथा।
देवउठनी एकादशी व्रत के नियम:-
देवउठनी एकादशी पर बहुत से नियमों का पालन करना जरूरी होता है,इस दिन केवल निर्जल या जलीय पदार्थों पर ही उपवास रखना चाहिए। अगर व्रत रखने वाला रोगी,वृद्ध बालक या व्यस्त व्यक्ति हैं तो वह केवल एक वेला का उपवास रख सकता है,इस दिन चावल और नमक से परहेज करना चाहिए। इस व्रत में भगवान विष्णु या अपने इष्ट देव की उपासना की जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन तामसिक आहार प्याज,लहसुन मांस,मदिरा या बासी भोजन का सेवन बिल्कुल न करें।
पूजन सामग्री:-श्री विष्णु जी की
मूर्ति,वस्त्र,पुष्प,पुष्पमाला, नारियल,सुपारी,अन्य ऋतुफल,धूप,दीप,घी,पंचामृत,कच्चा दूध,दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण अक्षत, तुलसी दल, चंदन, मिष्ठान।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि:-
देवोत्थान एकादशी के दिन सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक बनाएं। चौक के मध्य में भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रखें,इसके साथ ही चौक से भगवान के चरण चिह्न बनाए जाते हैं,जो ढककर रखने चाहिए। भगवान को गन्ना,सिंगाड़ा और पीले फल-मिठाई अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही भगवान को पीली मिठाई करें,इसके बाद घी का एक दीपक जलाएं और इसे रात भर जलने दें। इस दिन रात के समय अपने पूजा स्थल और घर के बाहर दीपक जलाने चाहिए और घर के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवी देवताओं का पूजन करना चाहिए। फिर शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्णु को यह कहते हुए उठाएं उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाए कार्तिक मास।
भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र:-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
देवउठनी एकादशी की कथा :-
एक बार भगवान विष्णु से लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान! आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा। लक्ष्मीजी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा कि तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता इसलिए आज से मैं हर वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करूंगा।
देवउठनी एकादशी: पढ़ें पौराणिक व्रत कथा:-
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने उस समय ‘हां’ कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है।
उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया। पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज,मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ। पूजा करता हूं,पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए। राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा,परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा। लेकिन भगवान नहीं आए,तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता,जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा- 2
एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न ग्रहण नही करता था। सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया। उसने पूछा- हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहाँ क्यों बैठी हो। तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले- मैं निराश्रिता हूँ। नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं है, किससे सहायता माँगू? राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह बोला- तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो। सुंदरी बोली- मैं तुम्हारी बात मानूँगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊँगी,तुम्हें खाना होगा। राजा उसके रूप पर मोहित था,अतः उसने उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाए तथा परोसकर राजा से खाने के लिए कहा। यह देखकर राजा बोला-रानी! आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूँगा। तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली- या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट लूँगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म न छोड़ें बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जाएगा,पर धर्म नहीं मिलेगा। इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। माँ की आँखों में आँसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो माँ ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी। तब वह बोला- मैं सिर देने के लिए तैयार हूँ। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी,जरूर होगी। राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताई- राजन! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर माँगने को कहा तो राजा बोला- आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करें। उसी समय वहाँ एक विमान उतरा। राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परम धाम को चला गया।।
एकादशी जी की आरती:-
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी,भक्ति प्रदान करनी ।
गण गौरव की देनी माता,शास्त्रों में वरनी ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।।
पौष के कृष्णपक्ष की,सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।।
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।।
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।।
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।।
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।।
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।।
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।।
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।।
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।।
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।।
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।।