‼️ देवउठनी एकादशी पर विशेष प्रस्तुति‼️
कार्तिक मास को सनातन धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है इसका विशेष कारण यह है कि इस माह में हिंदू धर्म के अनेक पर्व मनाए जाते हैं उन्हीं में से एक देवउठनी या देवोत्थान एकादशी है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन मनाई जाती है जिसे देवउठनी या देवोत्थान कहते हैं जिसका अर्थ है कि देव का उत्थान या उठाना होता है और इसे देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
‼️ देवउठनी एकादशी का महत्व‼️
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि आषाढ माह की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और उसके बाद कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के दिन वे अपनी योग निंद्रा अवस्था से बाहर आते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म में देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नही किया जाता है इन चार माह के बाद इस दिन से सभी शुभ मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं इसलिए सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। और इसके अगले दिन द्वादशी तिथि के दिन शालिग्राम जी और माता तुलसी का विवाह पर्व भी मनाया जाता है।
‼️ देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त‼️
देवउठनी एकादशी कार्तिक मास शुक्ल पक्ष 11 नवंबर 2024 शाम 6 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर 12 नवंबर 2024 शाम को 04 बजकर 04 मिनट तक रहेगी। उदय तिथि में होने के कारण देवउठनी एकादशी का व्रत 12 नवंबर को रखा जाएगा।
‼️ एकादशी पूजा-विधि‼️
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि सेनिवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान श्री विष्णु जी को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें व प्रभु को भोग लगाएं।
इस पावन दिन भगवान विष्णुजी के साथ साथ माता लक्ष्मी जी व गणेश जी की पूजा करें।
‼️ देव प्रबोधिनी मंत्र‼️
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
‼️ भगवान विष्णु जी के मंत्र‼️
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।।
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः।।
ॐ नमोः नारायणाय।।
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय।।
शान्ता कारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशम्
विश्वा धारं गगन सदृशं मेघ वर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभिर्ध्या नगम्यम्
वन्दे विष्णुं भव भय हरं सर्वलोकैक नाथम् ।।
‼️ भगवान विष्णु जी की आरती ‼️
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे।।
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का।। ॐ जय जगदीश हरे।।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी।। ॐ जय जगदीश हरे।।
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय जगदीश हरे।।
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।। ॐ जय जगदीश हरे।।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति।। ॐ जय जगदीश हरे।।
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।। ॐ जय जगदीश हरे।।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।। ॐ जय जगदीश हरे।।
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।। ॐ जय जगदीश हरे।।
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे।। ॐ जय जगदीश हरे।।
‼️ॐ नमो नारायण ‼️