निरंतर निर्माण कार्य का सूचक है विश्वकर्मा जी का कील ठोकना
वर्षो से परम्परा की जीवित रखा है बरेली मे
बरेली रायसेन मध्य प्रदेश से तखत सिंह परिहार की रिपोर्ट
भारतीय संस्कृति मे प्रत्येक त्यौहार का अपना अलग महत्व है परन्तु दीपावली ऐसा त्यौहार है जिसमे हऱ वर्ग हर समाज हऱ व्यापारी हर दुकानदार के व्यापार मे तेज़ी उन्नति आती है
वही त्योहारों मे विशेष परम्पराओं का अपना स्थान है
दीपावली पर जहाँ लोग दिए पटाखे नए वाहन कपड़े जेबर खरीदकर पूजन करते है
वही वर्षो से परम्परा है कील ठोकने की दीपावली के दूसरे दिन विश्वकर्मा समाज द्वारा घर घर दुकान दुकान कारखाने शोरूम मे कील ठोकी जाती है घरों की देहलीज पर ऑफिस दुकान के गल्ले की दराज काउंटर मे कारखाने उद्योग के मुख्य गेट की देहलीज पर कील ठोकी जाती है
नगर मे राजू विश्कर्मा ने इस प्रथा को जीवित रखा है राजू विश्वकर्मा बताते है कि बचपन से दीपावली पर लोगो के घरों मे दीवाली पर कील ठोकने जाते है
पूर्व मे दीवाली पर सोनी जी लोहार भी कील ठोकने जाते थे समय के अनुसार सबने बंद कर दिया वही हम इस प्रथा को ज़ब तक जीवित है
अपनी विश्वकर्मा वंश परम्परा को जारी रखेंगे । हमारा बेटा मयंक कि भी यही इच्छा है विश्वकर्मा वंशी होने के नाते हम अपनी परम्पराओं को सिंचित कर जीवित रखे
पूर्ब मे मछुहारे गोदन पर जाल डालने आते थे उन्होंने भी बंद कर दिया पर हमने नहीं किया ना करेंगे
कील ठोकने के कई कारण है बुजुर्ग बताते है कि विश्वकर्मा का कील ठोकने का अर्थ है दीपावली से आपके घर मे निर्माण कार्य कि खटपट प्रारम्भ हो गई अब पूरे वर्षभर निर्माण कार्य चलते रहे
वही कुछ लोग इसे लक्ष्मी पूजा के बाद लक्ष्मी जी कि घर मे कि रहने कि रस्म बताते है
वही कुछ लोगो का मत है कील ठोकने से लक्ष्मी जी कि सदा
उस स्थान पर रहती है दीपावली की पूजन मे कील हथोड़ी की पूजन कर दीपावली की रात मे कील ठोकने की रस्म की जाती है उसमे बाद जो घर बचते है उनमे दूसरे दिन कील ठोकी जाती है
दिनों दिन लोहे की चौखट ने मार्बल पत्थर ने घरो से देहलीज को खत्म कर दिया
जहाँ पूर्ब मे हम 400 से 450 घरो मे कील ठोकने जाते थे आज के बदलते परिवेश मे 100 से 150 घरो मे हीं जाते है