इलाज नहीं मिलने के कारण निजी अस्पताल जाने को मजबूर मरीज डॉक्टरों-स्टाफ कमी से खुद बीमार सिविल अस्पताल, सुविधा न होने से कई विभाग बंद
संवाददाता गोविन्द दुबे | बरेली
बरेली/ करीब 2 लाख आबादी वाले क्षेत्र में शासन ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से सिविल अस्पताल के रूप में उन्नयन तो कर दिया लेकिन यहां की स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई सुधार नहीं आया। नया भवन बनने के बाद लोगों को लग रहा था कि अब यहां पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी और निजी अस्पतालों में उपचार करवाने में लगने वाली फीस की बचत होगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। नागरिकों को अब भी सिविल अस्पताल में उपचार नहीं मिलने पर निजी क्लीनिक और नर्सिंग होम्स और झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ रहा है। यह स्थिति है स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल के ग्रह नगर बरेली में बनी हुई है।तहसील मुख्यालय पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का सिविल अस्पताल के रूप में उन्नयन से बरेली, बाडी और उदयपुरा तहसील के लोगों को इलाज की सुविधाओं में विस्तार की उम्मीद जागी थी। लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे अस्पताल पताल से लोगों को निराशा हो रही है। हड्डी से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल आई शशिप्रभा कहती हैं कि इतने बड़े अस्पताल में हड्डी का डॉक्टर ही नहीं है। मजबूरी में किसी प्राइवेट अस्पताल में ही जाना पड़ेगा। इन विशेषज्ञ और स्टाफ की कमी सिविल अस्पताल में अस्थिरोग विशेषज्ञ, मेडिकल स्पेशलिस्ट, सर्जिकल स्पेशलिस्ट, रेडियोलाजिस्ट और पैथोलॉजिस्ट नहीं हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. रीना चौहान चाइल्ड केयर लीव पर हैं। छह नर्सिंग आफीसर और तीन महिला गार्ड भी नहीं हैं। ऐसे में इन बीमारियों के मरीज अस्पताल आकर वापिस जा रहे हैं।सामान्य बीमारियों का इलाज भी बमुश्किल मिल रहा, प्रबंधन जल्द करें सुधार
बार-बार बंद हो जाती है एक्स-रे मशीन
सिविल अस्पताल की एक्स-रे मशीन 15 साल से भी अधिक पुरानी हो चुकी है। इसके सॉफ्टवेयर कभी भी उड़ जाते हैं। बाहर से इंजीनियर आने तक मशीन बंद पड़ी रहती है। यह मशीन एक संस्था ने अस्पताल को दान में दी थी।
•पत्राचार किया है
* पद स्वीकृति और पद स्थापना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। वरिष्ठ कार्यालय से अस्पताल की आवश्यकताओं को लेकर पत्राचार चलता रहता है। पिछले दिनों ही स्टाफ बढ़ाने हमने पत्र लिखा था। -डॉ. हेमंत यादव, सीबीएमओ
कभी-कभार ही गांवों पहुंचता है अमला में
अंचल के गांवों में स्वास्थ्य विभाग की मौजूदगी कभी-कभार ही दिखती है। बाग पिपरिया के रामकुमार उपाध्याय कहते हैं कि मंगलवार को टीकाकरण के दिन ही अस्पताल खुलता है। कुछ ऐसी ही स्थिति जामगढ़ सहित अन्य गांवों में है। गांवों में इंजेक्शन लगाने और पट्टी करने वाला भी कोई नहीं मिलता। मजबूरी में लोग प्राइवेट डॉक्टरों की शरण में पहुंच रहे हैं। निजी उपचार करवाने में हूं असमर्थ आलीवाड़ा से मंगल सिंह बडी उम्मीद से अपनी आंखें दिखाने आए हैं। उन्हें बताया जाता है कि अस्पताल में आंखों का कोई डॉक्टर नहीं हैं। मंगल सिंह कहते हैं कि करीब 70 साल उनकी उम्र है। परिवार में कोई साथ आने-जाने वाला नहीं है और प्राइवेट अस्पताल में दिखाने लायक पैसे नहीं हैं।