• तेहि छन राम मध्य धनु तोरा, भरे भुवन धुनि घोर कठोरा… परशुराम का फरसा देख भाग खड़े हुए सीता स्वयंवर में बैठे राजा, श्री राम नें तोड़ा धनुष, त्रिलोक में हुई जय-जयकार...
वाराणसी : विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के पांचवें दिन राजा जनक के आमंत्रण पर सीता के स्वयंवर में पहुंचे भगवान राम नें जैसे ही शिव धनुष को तोड़ा तीनों लोक भयंकर ध्वनि से गूंज उठे। लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें, काहुं न लखा देख सबु ठाढ़ें। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा, भरे भुवन धुनि घोर कठोरा…अर्थात लेते, चढ़ाते और जोर से खींचते हुए किसी ने नहीं लखा (अर्थात ये तीनों काम इतनी फुर्ती से हुए कि धनुष को कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचा, इसका किसी को पता नहीं लगा), सबने श्री रामजी को (धनुष खींचे) खड़े देखा। उसी क्षण श्री रामजी नें धनुष को बीच से तोड़ डाला। भयंकर कठोर ध्वनि से लोक भर गए।
भगवान राम ने जैसे ही शिव धनुष को तोड़ा तीनों लोक भयंकर ध्वनि से गूंज उठे। तोपों की गर्जना से पूरा रामनगर गूंज उठता था लेकिन इस बार तोप मिस फायर होनें से आवाज नहीं हो सकी। धनुष टूटते ही लीलाप्रेमियों नें सजल नेत्रों से इस दृश्य को देख राजा रामचंद्र की जय का उदघोष किया। इस दौरान धनुष यज्ञ व परशुराम-लक्ष्मण संवाद लीला का मंचन किया गया। प्रसंगानुसार सीता स्वयंवर में गुरु विश्वामित्र की आज्ञा मांग श्रीराम व लक्ष्मण रंगभूमि में रखे शिव के धनुष के पास पहुंचे। हर लीलाप्रेमी की सांसे थमी थीं। ऐसा लगा मानों वक्त ठहर गया हो। लीलाप्रेमियों की आंखें एकटक रंगभूमि में रखे शिवधनुष पर टिकी थी।
शिवधनुष को तोड़ने के लिए अनेक राजा यहां तक की लंकाधिपति रावण भी जनकपुर पहुंचा। सभी असफल हो वापस लौट गए। लोगों नें इन राजाओं की खिल्लियां भी उड़ाई। गुरु की आज्ञा के बाद श्रीराम नें धनुष को प्रणाम किया और उसे अपने हाथों में उठा लिया। जनकपुर का लीला प्रांगण भगवान राम के जय के उदघोष से गूंज उठा। जैसे ही प्रभु श्रीराम नें धनुष की प्रत्यंचा खींची प्रवेश द्वार की बुर्जी पर खड़े मशालची नें 36वीं वाहिनी पीएसी परिसर में तोप पर लगे तोपची को मशाल का इशारा किया। शिव धनुष टूटने के साथ ही तोप को दागा गया। दूसरी ओर शिवधनुष तीन खंडों में विभक्त हो गया। श्वेत लाल महताबी की रोशनी में धनुष का एक टूटा भाग अपने हाथों में लिए श्रीराम की झांकी का दर्शन कर रामलीला का एक-एक श्रद्धालु भावविभोर हो गया। धनुष टूटते हैं पीएससी कैंपस में गोले दागे गए। शिव के धनुष टूटने की गर्जना सुनकर रंगभूमि में पधारे परशुराम व लक्ष्मण के मध्य हुए संवादों का भी लीलाप्रेमियों ने आनंद उठाया। लक्ष्मण की बातों नें परशुराम का दंभ तोड़ दिया। अंततः परशुराम भी श्रीराम की विनम्रता से प्रभावित हो आशीर्वाद देकर चले गए। इधर भगवान सूर्य के रथ के घोड़ों ने धनुष टूटनें की गर्जना सुन दक्षिणायन की ओर जा रही अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण की और मुंह कर लिया।
सूर्य के उत्तरायण जाते ही राम-सीता विवाह के मंगल कार्य शुरू हुए। सीता ने श्रीराम के गले में वरमाला डाल दी। आकाश में देवगणों ने पुष्प वर्षा कर अलौकिक क्षण का आनंद उठाया। विश्वामित्र की सलाह पर राजा जनक ने महाराज दशरथ को सूचना देने के लिए अपने दूतों को भेजा। जनकपुर में चारों ओर खुशियां छा जाती हैं। राजा जनक पूरे राज्य को सजाने का निर्देश दे मंडप सजाने को कहते हैं। यहीं लीला को विश्राम दिया गया।