Advertisement

रामायण के प्रचारक रामानंद सागर जयंती

29 दिसम्बर विशेष

रामायण के प्रचारक रामानंद सागर जयंती

जन्म : 29 दिसंबर 1927
मृत्यु : 12 दिसंबर 2005

पलवल-29 दिसम्बर
कृष्ण कुमार छाबड़ा

फिल्मी दुनिया में अनेक निर्माता-निर्देशकों ने यश और धन कमाया है; पर रामानन्द सागर ऐसे फिल्मकार हुए, जिन्हें जनता ने साधु सन्तों जैसा सम्मान दिया। उनके द्वारा निर्मित ‘रामायण’ धारावाहिक के प्रसारण के समय घरों में पूजा जैसा वातावरण बन जाता था। लोग नहा-धोकर शान्त होकर धूप-अगरबत्ती जलाकर बैठते थे। उस समय सड़कें खाली हो जाती थीं। बस के यात्री रामायण देखने के लिए सड़कों के किनारे बने ढाबों में बसें रुकवा देते थे। लाखों लोगों ने रामायण धारावाहिक देखने के लिए ही दूरदर्शन खरीदे।

रामानन्द सागर का जन्म लाहौर के पास असलगुरु गाँव में 29 दिसम्बर, 1927 को एक धनाढ्य घर में हुआ था। उनका बचपन का नाम चन्द्रमौलि था; पर उनके पिता की मामी ने उन्हें गोद ले लिया और उन्हें रामानन्द नाम दिया। दहेज के लालच में किशोरावस्था में ही घर वालों ने उनका विवाह करना चाहा; पर इन्होंने इसका विरोध किया। फलतः उन्हें घर छोड़ना पड़ा। इन्होंने चौकीदारी और ट्रक पर परिचालक जैसे काम किये; पर कदम पीछे नहीं हटाया।

रामानन्द सागर की रुचि बचपन से ही पढ़ने में थी। पंजाब विश्वविद्यालय ने उन्हें स्वर्ण पदक दिया था। इस कारण उन्हें उर्दू दैनिक ‘प्रताप’ और फिर दैनिक ‘मिलाप’ के सम्पादकीय विभाग में काम मिल गया। देश विभाजन के समय वे भारत आ गये। उस समय उनकी जेब में मात्र पाँच आने थे; पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। विभाजन के समय उन्होंने मुस्लिम अत्याचारों का जो वीभत्स रूप देखा, उसे ‘और इन्सान मर गया’ नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया है।

1948 में वे मुम्बई आ गये। वहाँ उनकी भेंट राज कपूर से हुई। राज कपूर ने उनकी कहानी पर ‘बरसात’ नामक फिल्म बनायी, जो अत्यधिक सफल हुई। इससे रामानन्द सागर के लेखन की धाक जम गयी। इसके बाद उन्होंने स्वयं भी अनेक फिल्में बनायीं। उनमें से अधिकांश सफल हुईं; पर इसी बीच फिल्मी दुनिया में हिंसा और नग्नता का जो दौर चला, उसमें उन्होंने स्वयं को फिट नहीं समझा और शान्त होकर बैठ गये।

जीवन के संध्याकाल में रामानन्द सागर के मन में धार्मिक भावनाओं ने जोर पकड़ा। उनके मन में श्रीराम के प्रति अतीव श्रद्धा थी। वे दूरदर्शन के माध्यम से उनके जीवन चरित्र को जन-जन तक पहुँचाने के लिए धारावाहिक बनाना चाहते थे। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि एक रात स्वप्न में उन्हें हनुमान जी ने दर्शन देकर यह कार्य शीघ्र करने को कहा। बस फिर क्या था ? रामानन्द सागर प्रभु श्रीराम का नाम लेकर इस काम में जुट गये।

उन्होंने सर्वप्रथम श्रीराम से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ और पुस्तकों का अध्ययन किया और फिर संवाद लिखने लगे। वे लेखन कार्य रात में करते थे। सुबह उठकर जब वे उन संवादों को दुबारा पढ़ते थे, तो उन्हें स्वयं ही आश्चर्य होता था। उनका मानना था कि स्वयं हनुमान जी रात में आकर उनसे संवाद लिखवाते थे। रामायण के बाद उन्होंने श्रीकृष्ण, जय गंगा मैया, जय महालक्ष्मी जैसे धार्मिक धारावाहिकों का भी निर्माण किया।

इन सेवाओं के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2001 ई. में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। 12 दिसम्बर, 2005 को मुम्बई में वे सदा के लिए श्रीराम के धाम को महाप्रयाण कर गये।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!