• सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर रहे है इस बार शुभ फलदाई होगा श्राद्ध पक्ष।
• पितृ पक्ष 17 सितंबर 2024 से 2 अक्टूबर तक रहेंगे।
पंडित यज्ञदत्त चतुर्वेदी शास्त्री
• पूर्वजों के प्रति आदर श्रद्धा का पर्व हैं श्राद्ध।
यह श्राद्ध कन्यागत श्राद्ध बोले जाते हैं इस वार सूर्य का कन्या राशि में 16 सितंबर को प्रवेश हो चुका है इसलिए इस बार सोलह दिन के श्राद्ध शुभ फलदाई होंगे।
श्राद्ध में श्राद्धकर्ता का यह अटल विश्वास रहता है कि मृत या पितरों के कल्याण के लिए ब्राह्मणों को जो कुछ भी दिया जाता है, वह उसे या उन्हें किसी प्रकार अवश्य ही मिलता है। श्राद्ध श्रद्धा का प्रतिरूप है। श्राद्ध कर्म पितृ ऋण चुकाने की क्रिया है। इसमें पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव होता है।
आयु: पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च।
प्रयच्छति तथा राज्यं पितर: श्राद्ध तर्पिता।।
अर्थात जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं।
मनु द्वारा शुरू की गयी श्राद्ध कर्म की परंपरा में तीन पीढ़ियों के श्राद्ध का विधान है, यानि पितृ (पिता) पितामह, (बाबा)प्रपितामह(परबाबा)प्रकार मातृ (माता) पितामही (दादी ) प्रपितामही (परदादी) तथा यदि ननिहाल में कोई नहीं हो तो उनका भी श्राद्ध किया जाता हैं।तीन पीढ़ियों के तीन देवता क्रमश: वसु, रुद्र, आदित्य माने गए हैं। श्राद्ध का समय दोपहर अर्थात पहली तिथि मान्य है। वेद व्यास के अनुसार जो व्यक्ति श्राद्ध द्वारा पितरों को संतुष्ट करता है, वह पितृ ऋण से मुक्त होकर ब्रह्म लोक को जाता है। *कूर्म पुराण के अनुसारश्राद्ध न करने का कुफल* — पितृ पक्ष में पितृ श्राद्ध न पाने पर निराश होकर दीर्घ स्वांस लेते हुए गृहस्थ को दारुण दुख का श्राप देकर पितृलोक में वापस चले जाते हैं। श्राद्ध में तिल का प्रयोग महत्वपूर्ण है।श्राद्ध पक्ष में इन दश की प्रधानता बतलाई गई है।
दर्व दया और दोयतो द्रव्य दक्षिणा दान।
दूध दही अदरक उड़द दशदा श्राद्ध प्रधान।।
अर्थात कुशा , श्रद्धा का भाव, दौहित्र या नाती, पेय पदार्थ, ब्राह्मण को दक्षिण,दान का भाव, दूध ,दही से बने पदार्थ अदरक उड़द का प्रयोग को प्रधानता दी गई हैं । श्राद्ध दक्षिणाभिमुख होकर करना चाहिए । श्राद्ध के समय उच्चारित नाम, गोत्र और मंत्रों से श्राद्ध में अर्पित द्रव्य वायु रूप में प्रविष्ट होकर पितरों को प्राप्त होते हैं। श्राद्ध के द्रव्य तिल, उड़द, जौ, चावल, जल, कंदमूल फल व घृत हैं।
*श्राद्ध पक्ष में क्या करें* सबसे पहले निर्मित भोज्य पदार्थों का ठाकुर जी का भोग लगाकर , प्रतिदिन गौ ग्रास निकालना चाहिए , श्राद्ध वाले दिन गौ ग्रास के अलावा काक ( कौवा) जो की यम का रूप हैं श्वान ( कुत्ता) के लिए भी ग्रास निकालना चाहिए तथा सात्विक व योग्य ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात यथा शक्ति वस्त्र, उपहार, दक्षिणा दे कर विदा करना चाहिए। ब्राह्मण को विदा करने के वाद पवित्र नदी या सरोवर पर योग्य आचार्य के निर्देशन में तर्पण (जल दान) ऋषि तर्पण , देव तर्पण, पितृ तर्पण अवश्य करें । *श्राद्ध के दिन क्या नही करना हैं * –क्षौर कर्म यानी बाल , नाखून नही करना , ब्रह्मचर्य का पालन दिन मे सोना, असत्य बोलना,सिर व शरीर मे तेल , साबुन, इत्र लगाना, मदिरा पान, अनैतिक कृत्य, वाद विवाद , जुआ खेलना और किसी जीवधारी को कष्ट नही पहुँचाना चाहिए। *गरीब व्यक्ति कैसे करे श्राद्ध* मनु के अनुसार जो व्यक्ति नितांत गरीव है वह तिल, जौ,चावलयुक्त जल से तिलांजलि देकर भी पितरों को संतुष्ट कर सकता है , यदि ये भी न हो तो दक्षिण दिशा की और मुख कर के श्रद्धा के साथ पितरों का स्मरण करे तो इस से भी पितृ संतुष्ट होते हैं।
पंडित यज्ञदत्त चतुर्वेदी शास्त्री
श्रीचंद्र ज्योतिष कर्मकांड संस्थान मथुरा
तिथि इस प्रकार हैं ।
17 सितंबर,मंगलवार,पूर्णिमा श्राद्ध 12 बजे के उपरांत
18 सितंबर,बुधवार प्रतिपदा श्राद्ध
19 सितंबर,गुरुवार,द्वितीय श्राद्ध
20 सितंबर,शुक्रवार,तृतीया श्राद्ध
21 सितंबर,शनिवार,चतुर्थी श्राद्ध
22 सितंबर,रविवार,पंचमी श्राद्ध
23 सितंबर,सोमवार षष्ठी श्राद्ध13:50 तक
24 सितंबर,मंगलवार,सप्तमी श्राद्ध 12:38 तक उपरांत अष्टमी श्राद्ध।
25 सितंबर,बुधवार,अष्टमी श्राद्ध*12:10 तक
उपरांत नवमी श्राद्ध ।
26 सितंबर,गुरुवार,नवमी श्राद्ध 12:25 तक
उपरांत दशमी श्राद्ध।
27 सितंबर,शुक्रवार,दशमी श्राद्ध*13:20 तक
28 सितंबर,शनिवार,एकादशी श्राद्ध व्रत सर्वेशम
29 सितंबर,रविवार,द्वादशी श्राद्ध
30 सितंबर,सोमवार,त्रयोदशी श्राद्ध प्रदोष व्रत
01अक्टूबर, मंगलवार,चतुर्दशी श्राद्ध
02 अक्टूबर,बुधवार,अमावस्याश्राद्ध सर्वपितृ विसर्जन