वाराणसी : काशी में शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं भगवान विष्णु के अंश ‘देवगुरु बृहस्पति’, गुरुवार को दर्शन पूजन से मिलता है विशेष लाभ, भगवान शिव नें किया था स्थापित…
वाराणसी : काशी में शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं भगवान विष्णु के अंश ‘देवगुरु बृहस्पति’, गुरुवार को दर्शन पूजन से मिलता है विशेष लाभ, भगवान शिव नें किया था स्थापित...
• काशी में शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं भगवान विष्णु के अंश ‘देवगुरु बृहस्पति’, गुरुवार को दर्शन पूजन से मिलता है विशेष लाभ, भगवान शिव नें किया था स्थापित…
वाराणसी : धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी में असंख्य प्राचीन मंदिर स्थित हैं। इन मंदिरों के इतिहास को देखते हुए, एक समय ऐसा भी आया जब काशी में मुगलों के आतंक से बचने के लिए मंदिरों को घरों में छिपाया गया था। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान पुरानी मूर्तियों का मिलना काशी के इतिहास की गहराई को दर्शाता है।हालांकि काशी को भगवान श्री काशी विश्वनाथ की नगरी के रूप में जाना जाता है। बाबा विश्वनाथ के धाम के पास स्थित गुरु बृहस्पति का मंदिर, जो सैकड़ों वर्ष पुराना है, भी लोगों की आस्था के केंद्र है। यह मंदिर काशी के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है और इसे भगवान शिव द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव नें काशी की स्थापना की, तो सभी देवी-देवता इस मोक्ष की नगरी में निवास करने के लिए उत्साहित थे। भगवान शिव नें इस विशेष स्थान को गुरु बृहस्पति को सौंपा, जो काशी के सभी मंदिरों में सबसे ऊँचा माना जाता है। देवगुरु बृहस्पति को सभी देवताओं में श्रेष्ठ माना जाता है और वे नवग्रहों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पीली वस्तुओं के प्रति उनकी विशेष श्रद्धा के कारण, भक्त मंदिर में हल्दी और चंदन अर्पित करते हैं। गुरु बृहस्पति के मंदिर में विशेष रूप से गुरुवार को भक्तों की भारी भीड़ होती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, गुरु की प्रसन्नता से वैवाहिक सुख, धनलाभ और संतान सुख प्राप्त होता है। यह माना जाता है कि गुरु बृहस्पति इस मंदिर में साक्षात् विराजमान हैं। जिन लोगों की कुंडली में गुरु नाराज होते हैं, वे यहां आकर विधि-विधान से पूजन करते हैं।
मंदिर काशी के दशाश्वमेध घाट क्षेत्र में श्री विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित है। यहां बृहस्पति की मूर्ति स्थापित है और भक्त भगवान की कृपा और आशीर्वाद के लिए पूजा करते हैं। मंदिर के महंत संतोष गिरी उर्फ़ सन्तु बाबा के अनुसार, गुरु बृहस्पति नें यहां आकर श्रीकाशी विश्वेश्वर की आराधना की और भगवान शिव नें उन्हें यहीं प्रतिष्ठित होने का वरदान दिया। हालांकि देवगुरु विष्णु के अंशावतार हैं, यहां उन्हें शिवलिंग रूप में पूजा जाता है। श्रावण मास के चारों सोमवार को देवगुरु की पूजा बाबा विश्वनाथ की तरह होती है, जिसमें हरियाली, जल, फल, और हिम श्रृंगार शामिल हैं। भगवान बृहस्पति के इस मंदिर में गर्मियों में शिवलिंग पर जलधारा चलती है और शिवरात्रि के दिन देव गुरु बृहस्पति विष्णु रूप में आकर देवी गौरा के बड़े भाई की भूमिका निभाते हैं। इस दिन, काशी नगरी में सभी शिव बारातों का समापन बृहस्पति मंदिर पर होता है।
मंदिर में दैनिक पूजा के अलावा प्रतिदिन चारों पहर भव्य दिव्य आरती भी होती है। यहां की पूजा विधि से जुड़े भक्तों का कहना है कि इस मंदिर के दर्शन करने से सावन माह में काशी विश्वनाथ के दर्शन का फल प्राप्त होता है, विशेषकर यदि कोई अन्यथा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर नहीं जा पाता।