• श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के 6 दिन बाद,भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप का छठियार का पर्व मनाया जाता है।
सनातन धर्म में छठी यानी कि छठियार पर्व का विशेष महत्व है। आज भी किसी के घर किसी बच्चे का जब जन्म होता है,तो उस बच्चे के जन्म के छः दिन बाद ‘छठीयार’ मनाया जाता है। आमजन की अलावा भगवान
श्रीकृष्ण जी की ‘छठीयार’ का त्योहार भी मनाया जाता है।
2024 में श्रीकृष्ण जी के जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को मनाया गया।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के 6 दिन बाद यानी 1 सितंबर रविवार को भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की छठीयार मनाई जाएगी।
आइए जानते हैं श्रीकृष्ण जी की छठीयार की पौराणिक कथा-
भगवान श्रीकृष्ण जी के छठीयार की पौराणिक कथा अनुसार, भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म भगवान श्रीकृष्ण जी के मामा कंस की मथुरा कारागार में हुआ था।कंस ने भगवान श्रीकृष्ण जी के माता देवकी और पिता वासुदेव जी को बंदी बना लिया था,ताकी वो उनसे जन्म लेने वाले सभी संतानों का वध (हत्या) आसानी से कर सके। दरअसल,मथुरा की जनता भी कंस के अत्याचारों से परेशान हो चुकी थी। राजा कंस सभी प्रजाजनों को डरा व धमका कर रखता था। इसी बीच एक दिन आकाशवाणी हुई कि,
‘हे कंस, तेरा वध तेरी बहन देवकी के गर्भ से उत्पन्न, आठवें बालक के हाथों होगा।’
अपने वध की आकाशवाणी सुनकर कंस वसुदेव जी को ही मारना चाहता था। लेकिन तभी राजा कंस की बहन देवकी ने अपने भाई से कहा कि,
’मेरे गर्भ से जो भी संतान होगी, मैं उसे तुम्हे दे दूंगी।लेकिन तुम मेरे पति को मत मारो’
राजा कंस ने माता देवकी की बात स्वीकार कर ली,और वासुदेव जी तथा देवकी जी को अपने मथुरा स्थित कारागार की काल कोठरी में बंद कर दिया।
एक-एक करके सभी बच्चों को राजा कंस ने मार डाला।
जब – जब मां देवकी जी ने संतान को जन्म दिया,तब – तब उन्होंने अपने बच्चे को अपने क्रूर भाई राजा कंस को सौंप देती थीं। और हर बार कंस ने माता देवकी जी के बच्चे को मार देता था।
समय का काल चक्र बदला।
जब आठवां बच्चा जन्म लेने वाला था,उसी समय वासुदेव जी के दोस्त नंद बाबा जी की पत्नी यशोदा मैया भी गर्भवती थीं।और कुछ ही समय बाद बच्चे को जन्म देने वाली थीं। भाद्र पद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जैसे ही माता देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ,तो सहसा उनके हाथ – पैरों की बेड़ियां (जो राजा कंस ने खुद अपने हाथों लगाया था) स्वतः ही खुल गईं।
अपने पुत्र को आजीवन जीवित रखने के लिए वासुदेव जी कारागार के बंदी रक्षकों से छिप – छिपाकर अपने पुत्र श्रीकृष्ण जी को यमुना नदी के गहरे पानी को पार करते हुए गोकुल में अपने दोस्त नंद बाबा के घर लेकर पहुंच गए।वहां उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण जी को अपने दोस्त नंद बाबा और यशोदा मैया को सौप दिया और उनसे जन्म ले चुकी पुत्री को अपने साथ उठा लाए।
राक्षसी पूतना को कंस ने दिया आदेश।
जब ये सूचना राजा कंस तक पहुंची की वासुदेव जी एवं देवकी जी ने एक बच्चे को जन्म दिया है,ऐसी खबर सुनकर राजा कंस तुरंत कारागार की काल कोठरी में जा पहुंचा।
उसने अपनी बहन देवकी जी के हाथ से नवजात कन्या को छीन लिया और धरती पर रखा एक बड़े पत्थर पर पटकने की कोशिश किया।पत्थर पर पटकने की कोशिश में ही वो कन्या कंस के हाथ से छूट गई,और आकाश में उड़ गई पुनःइसी के साथ बहुत तेज आकाशवाणी हुई।
‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से मेरा कुछ नहीं होगा।तेरा काल तो वृंदावन में पहुंच गया है।वो जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देने के लिए आएगा।’
ये सुनते ही के कंस ने पूतना राक्षसी को बच्चे का वध करने का आदेश दे दिया, कि वृंदावन में जिस किसी भी घर में बच्चों ने अभी-अभी (तत्काल) जन्म लिया है,उनको तुम्हें वध करना है।
श्रीकृष्ण जी ने छठवें दिन के पूतना का वध कर दिया।
कहने को तो नवजात शिशु,उम्र भी अभी मात्र छः दिन,और कार्य… राज्य की सबसे बड़ी राक्षसी का वध।तब पुत्र द्वारा राक्षसी पूतना का वध किए जाने की खुशी में मैया यशोदा जी ने कान्हा की छठी यानी छठियार मनाई। इसी कारण हर वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के छठवें दिन भगवान श्रीकृष्ण जी की छठीयार का मनाया जाता है। धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता अनुसार,श्रीकृष्ण जी के छठीयार के दिन यदि माताएं इस कथा को सुनती या पढ़ती हैं तो,इससे उनके संतान का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। साथ ही उनकी लंबी उम्र का आशीर्वाद भी मिलता है।
नोट:- यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। ‘सत्यार्थ वेब न्यूज मीडिया नेटवर्क’ इसकी पुष्टि नहीं करता है। केवल आपको जानकारी/सूचना के लिए दी जा रही है।