सवांददाता नरसीराम शर्मा बीकानेर श्रीडूंगरगढ
अपनी कर्मभूमि में निष्ठा से कार्य करना चाहिए और फल को भगवान की इच्छा में समर्पित करना चाहिए। : योगेश्वर श्रीकृष्ण
श्रीडूंगरगढ़ कस्बे की तुलसी सेवा संस्थान के महाप्रज्ञ प्रेक्षा ध्यान सभागार भवन में आयोजित नियमित योग शिविर में ओम योग सेवा संस्था के निदेशक योगाचार्य ओम प्रकाश कालवा ने श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष योगाभ्यास करवाते हुए योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुए बताया। योगेश्वर= योग+ ईश्वर, श्री कृष्ण एक महान योगी थे,जिन्हें सभी योग जैसे सांख्य योग,कर्म योग,वैराग्य,आदि में महारत हासिल थी,जिसका प्रवचन उन्होंने गीता में अर्जुन को दिया है,इसलिए उन्हें योगेश्वर कहते है। ब्रह्मवैवर्तपुराण अनुसार श्रीकृष्ण ही सर्व जगत के ईश्वर है।ब्रह्मा,विष्णु,शंकर भी श्रीकृष्ण की आराधना करते है। श्रीकृष्ण साथ सर्व देवीदेवता हमेशा योग युक्त रहते है। सर्व देवीदेवता श्रीकृष्ण की वन्दना करते व योग से ईश्वर श्रीकृष्ण को प्रसन्न करते हैं श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार हैं। इन्हें कन्हैया श्याम,गोपाल,केशव,द्वारकेश या द्वारकाधीश,वासुदेव आदि नामों से भी जाना है। श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ था। कृष्ण वासुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। भगवान श्री कृष्ण के प्रमुख उपदेश हैं। कर्मयोग श्री कृष्ण ने समझाया है कि हमें कर्म करने का अधिकार है। परन्तु फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें केवल अपनी कर्मभूमि में निष्ठा से कार्य करना चाहिए और फल को भगवान की इच्छा में समर्पित करना चाहिए। महाभारत में कर्तव्य और धर्म केंद्रीय विषय हैं। भगवान कृष्ण बिना किसी परिणाम की चिंता किए अपने कर्तव्य या धर्म का पालन करने के महत्व पर जोर देते हैं। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की परवाह किए बिना अपनी ज़िम्मेदारियों और नैतिक दायित्वों के अनुसार कार्य करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण की अनंत शक्तियों में तीन प्रमुख शक्तियां चित शक्ति, माया शक्ति और जीव शक्ति है। इसमें भी सर्वान्तरंग चित शक्ति भी तीन तरह की होती है। सत,चित और आनंद। जिसके कारण ही भगवान सच्चिदानंद कहलाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि यह अविनाशी योग का ज्ञान मैंने सृष्टि के प्रारंभ में सूर्य को दिया, सूर्य ने मनु को एवं मनु ने इक्ष्वाकु को दिया। अतः सृष्टि के प्रारंभ से योग का ज्ञान निरंतर बहता चला आ रहा है। योग का अर्थ केवल आसन करने भर से नहीं, बल्कि अपने शुद्ध स्वरूप को जानने और उसमें टिक जाने से है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं कि जीवन में सबसे बड़ा योग कर्म योग है। इस बंधन से कोई मुक्त नहीं हो सकता है, अपितु भगवान भी कर्म बंधन के पाश में बंधे हैं। सूर्य और चंद्रमा अपने कर्म मार्ग पर निरंतर प्रशस्त हैं। अतः तुम्हें भी कर्मशील बनना चाहिए।