भागवत की सबसे बडी महिमा तो यह है की अशांत जीवन को शांत बना देती है–ईस घोर कलियुग मे मनुष्य बहुत ज्यादा तनाव मे ओर अशांति मे जी रहा है– कोई तन दुखी कोई मन दुखी तो कोई धन बिन रहत उदास– थोडे थोडे सब दुखी लेकिन सुखी राम के दास–संसार मे सब आनंद ही चाहते है लेकिन आनंद किसी को नही मिल पा रहा क्योकि अगर आनंद मिल गया होता तो भागदौड समाप्त हो जाती– जैसे सारी नदियां समुद्र की तरफ भाग रही है उसी प्रकार आनंद रुपि कृष्ण के सब अंश है ईसलिए सब आनंद पाने के लिए भाग रहे है– ओर भागदौड करने के बाद भी आनंद मनुष्य को ईसलिए नही मिल पाता क्योकि आनंद ढूंढने का रास्ता गलत है– भौतिक साधन,भौतिक उपलब्धियां ओर धन आदि पाने के बाद भी मनुष्य अशांत है — क्योकि मनुष्य का मन शांति के धाम भगवान मे नही लगा ओर जड रुपि संसार मे मन लगाकर जीव अशांत बन गया– जब तक दिल मे अध्यात्म का प्रकाश नही होगा तब तक माया के आधीन रहकर जीव अशांत रहेगा– लेकिन जब जीव भागवत रस को पी लेगा तो ह्रदय से सब विकार खुद बाहर चले जायेंगे ओर ह्रदय शुद्ध हो जाएगा ओर फिर भक्ति का दीपक जागृत हो जाएगा–भागवग की यही महिमा है की भागवत ह्रदय को शुद्ध करके ह्रदय मे आनंद प्रकट कर देती है–भागवत मे चार शब्द है– भ,ग,व,त– “भ” अर्थात् भक्ति –“ग” अर्थात् ज्ञान ओर “व” अर्थात् वैराग्य– भागवत का प्रेमपुर्वक श्रवण करने से ये तीनो ही जीवन मे आ जाते है ओर जब ये तीनो ही जीवन मे आ गये तो “त” अर्थात् तरना– जिसके जीवन मे भक्ति ज्ञान वैराग्य आ गये उसका जीवन तो विकारो से पार हो जाता है– ह्रदय शुद्ध हो जाता है– भागवत की महिमा के प्रसंगानुसार भागवत के श्रवण से भक्ति ज्ञान वैराग्य तीनो नृत्य करते हूए प्रकट हो गये थे–ईसका अर्थ यह है की भागवत हमे भक्ति ज्ञान वैराग्य तीनो प्रदान करती है–
भागवत पुराण नही बल्कि पुराणो का भी सम्राट है– भागवत तो पुराण सम्राट है– भागवत के पुराण सम्राट की झांकी पुराणो मे बताई गयी की भागवत पुराण सिहांसन पर राजा की तरह विराजमान है– पद्मपुराण ओर ब्रह्मवैवर्त पुराण भागवत की सेवा मे चमर लेकर खडे है– ब्रह्माण्ड पुराण छत्र लेकर खडे है– अन्य सभी पुराण भागवत का स्तवन कर रहे है — यानि जिस तरह राजा की सेवा मे अनेको सेवक होते है उसी प्रकार भागवत की सेवा मे सब पुराण लगे रहते है– ओर वैसे भी भागवत तो साक्षात् कृष्ण ही है– भागवत मे ओर भगवान मे कोई अंतर नही है– ईसका प्रमाण भी मिलता है की– तेनेयं वांङमयी मूर्ति प्रत्यक्षा वर्तते हरे:– भागवत तो भगवान का ही शब्दस्वरुप है– ओर दुसरा प्रमाण खुद ब्रह्मा जी ने अपने मुख से दिया है– “मेनिरे भगवद्रुपम् श्रीमद्भागवतं शास्त्रं कलौ,श्रवणात् पठनात् सद्यो बैकुण्ठफलदायकम्”– ब्रह्मा जी ने जब तराजु मे भागवत अन्य सभी शास्त्रो पुराणो की तुलना मे भारी साबित हुआ तो ब्रह्मा जी ने स्वयं कहा की ये भागवत तो साक्षात् भगवद्रुप है– साक्षात् कृष्ण ही है–यस्या श्रवणमात्रेण हरिश्चितं समाश्रयेत्– भागवत के श्रवण मात्र से भगवान ह्रदय मे आ जाते है यानि ह्रदय मे प्रकट हो जाते है– ह्रदय मे भगवान तब प्रकट होगे जब हम निष्काम होकर केवल भगवान को ह्रदय मे बैठाने की ही कामना से श्रवण करें– अगर कोई अन्य संसारिक कामना मन मे हुई तो भगवान ह्रदय मे आनंद रुप से प्रकट नही होंगे– मानस मे भी कहा गया की “जाहि न चाहि कछु कबहि,तुम संग सहज स्नेह– बसऊ निरन्तर तासु उर,सो राऊर निज गेह”— हे प्रभु जो आपसे कुछ नही चाहता उसका ह्रदय ही आपका घर बन जाता है– ओर जहां परमात्मा रहने लग जाएं वहां आनंद खुद प्रकट हो जाता है क्योकि भगवान ही आनंद है– रसौ: वै: स:,, आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्— ईसलिए अगर जीवन मे आनंद पाना है तो निष्काम होकर कथा का पान करना होगा– ओर अगर फिर भी मन मे कोई संसारिक कामना रहती है तो तब भी भागवत की एसी महिमा है की भागवत सकाम भक्त को भी निष्काम बना देती है– ओर निष्काम होने पर ह्रदय मे भगवान प्रकट हो जाते है– वैसे यहां एक प्रश्न उठता है की भगवान तो सबके ह्रदय मे बैठे है तो अगर भगवान आनंद है तो फिर सबके ह्रदय मे आनंद महसुस क्यो नही होता??–
पहला कारण तो यह है की सूर्य का ताप तब महसुस होता है जब हम सूर्य के सामने खडे होंगे– उल्टे बर्तन मे बारिश का पानी नही भरता– उसी प्रकार जब तक हम भगवान के सन्मुख नही होंगे तब तक हमे उस आनंद की प्राप्ति नही होगी– ईसलिए ह्रदय मे आनंद तब प्रकट होगा जब हम भगवान के सन्मुख हो जाएंगे–भागवत हमे कृष्ण के सन्मुख ही करती है–
दूसरा कारण यह है की भगवान ही आनंद है ओर भगवान सबके ह्रदय मे रहते है लेकिन वो आनंद अप्रकट रुप मे है- भागवत उस ह्रदय मे अप्रकट आनंद को प्रकट कर देती है–जैसे पत्थरो के घर्षण दे चिंगारी पैदा हो जाती है उसी प्रकार जब कथा ह्रदय मे उतर जायेगी ओर जीवन का मंथन होगा तो आनंद प्रकट होने लगता है– ये भागवत तो देवताओ को भी दूर्लभ है– श्रीमद्भागवती वार्ता सुराणां अपि दूर्लभा—
अगर स्वर्ग के भोगो मे सुख होता तो देवतालोग भागवत रस को लेने धरती पर क्यो आते?? स्वर्ग तक के भोगो मे आसक्त रहने के बाद भी शांति ओर आनंद नही मिलेगा– स्वर्ग मे भी काम,क्रोध,लोभ,अ
शांति, भय,द्वेष आदि विकार है– कोई तपस्या करता है धरती पर तो ईंद्र को द्वेष होता है कहीं हमारी सीट ना छीन ले– स्वर्ग का राजा ईंद्र भी परेशान रहता है– भगवान की लीलाओ मे विघ्न डालने का परिणाम भी ईंद्र को भुगतना पडा-कहने का अभिप्राय: की ये भागवत अमृत तो देवताओ को भी दूर्लभ है– प्रसंग आप सब जानते है की शुकदेव जी महाराज के पास जब देवतालोग अमृत लेकर आये थे तो देवताओ ने शुकदेव जी से कहा की ये स्वर्ग का अमृत परिक्षित को पिला दो ओर भागवत अमृत हमे दे दो– शुकदेव जी महाराज ने खूब फटकार लगाई ओर कहा की अरे देवताओ कहां तुम्हारा कांच जैसा अमृत ओर कहां मणि रुपि भागवत– क्व कथा क्व सुधा लोके ,क्व कांच क्व मणिर्महान्—
अभक्तानाम् तांश्च विज्ञाय न ददौ स कथामृतम्– देवताओ को अभक्त जानकर उनको भागवत अमृत नही दिया गया क्योकि देवता भागवत का सौदा करने आये थे- ये भागवत रस तो स्वर्ग,कैलाश,बैकुण्ठ मे भी नही है– स्वर्गे सत्ये च कैलाशे वैकुंठे नास्त्ययं रसः–
सिर्फ पृथ्वी पर ही यह अमृत है ईसलिए पिबत भागवतं रसमालयं– भागवत का पान करो – ह्रदय मे उतारो–
जहां जहां भागवत होती है वहां वहां कृष्ण जरुर जाते है–
स्कंदपुराण मे प्रमाण है जिसमे उद्धव जी महाराज कहते है की– श्रीमद्भागवतं शास्त्रं यत्र भागवतैर्यदा–
कीर्तयते श्रूयते चापि श्रीकृष्ण तत्र निश्चितम्– जहां जहां भागवत होती है वहां निश्चित रुप से कृष्ण रहते है– ओर फिर आगे उद्धव जी महाराज ने कहते है की – श्रीमद्भागवतं यत्र श्लोकार्द्धमेव च–
तत्रापि भगवान्कृष्णो बल्लवीभिविर्राजते– अर्थात् जहां भागवत के एक श्लोक या आधे श्लोक को भी पढा जाता है वहां भगवान अपनी समस्त नायिकाओ के साथ निवास करते है —
भारते मानवं जन्म प्राप्य भागवतं न यै:– श्रुतं पापपराधीनैरात्म
घातस्तु तै: कृत:– अर्थात् जो लोग भारत मे जन्म लेने के बाद भी भागवत नही सुनते वे लोग निश्चित रुप से आत्मा को अधोगति की तरफ ले जाने वाले है– यही बात सनकादिक ऋषियो ने भी भागवत की महिमा के संबंध मे कही थी की जो लोग भागवत का श्रवण नही करते वे तो पशु तुल्य है, चाण्डाल की तरह है–
श्रीमद्भागवतं शास्त्रं नित्यं यै: परिसेवितम्–
पितुश्च: मातुश्च: भार्याया: कुलपक्तिं सुतारिता:– अर्थात् जो लोग नित्य भागवत का सेवन करते है वे लोग अपने माता पिता ओर भार्या की कुलपक्तिं को पवित्र कर देते है– स्कंदपुराण मे भी ओर पद्मपुराण मे भी भागवत की महिमा के बारे मे बहुत कुछ बताया गया है ईसलिए ईस भागवत रुपि रस का हमेशा पान करते रहना चाहिये– ओर जन्मांतरे भवेत् पुण्यं तदा भागवतं लभेत्– बहुत जन्मो के पुण्यो के बाद भागवत श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है– यहां पुण्य का अर्थ भगवत ओर भागवत सेवा से है– वल्लभाचार्य जी महाराज अपनी टीका मे लिखते है की – भागवत भगवत परिचर्या जन्यं पुण्यं– पुर्व जन्मो मे किए यज्ञ,तप,दान,तीर्थ आदि का फल भागवत श्रवण नही है क्योकि भागवत साक्षात् कृष्ण है ओर कृष्ण तक यज्ञ,तप,दान,आदि नही पहूंचा सकते– गीता मे भी भगवान कहते है की मै यज्ञ,तप,दान,से नही मिलता– यानि भागवत श्रवण करने का सौभाग्य उसे प्राप्त होता है जिसने पुर्वजन्मो मे भक्त या भगवान की सेवा की होगी– भजन साधना की होगी ईसलिए भागवत श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है– यही बात उद्धव जी महाराज कहते है की ” अनेक जन्म संसिद्ध: श्रीमद्भागवतं लभेत्– ईसलिए भागवत का सदा पान करो– सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा–
क्योकि अनेको छिद्रो वाले घडे मे पानी नही ठहरता — अगर उस छिद्रो वाले घडे मे पानी भरकर रखना है तो उस घडे को पानी मे ही डूबाए रखो– अगर पानी से बाहर घडा निकल आया तो सारा पानी बाहर चला जाएगा– उसी प्रकार कथारस को पीते रहो क्योकि अगर कथा सुनकर बोर हो गये ओर कथा श्रवण करना छोड दिया तो माया के आधीन होने का खतरा बना रहता है ईसलिए ईस रस को पीते रहो– सच्चे भक्त तो ईस रस मे निरंतर डुबे रहते है– जिस तरह मछली का प्राण जल होता है उसी प्रकार कथा भक्तो का प्राण बन जाती है–राधे राधे