सवांददाता नरसीराम शर्मा बीकानेर श्रीडूंगरगढ़
भारतीय जीवनशैली एवं विचारधारा को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। सांख्य दर्शन : कालवा
श्रीडूंगरगढ़ कस्बे की ओम योग सेवा संस्था के निदेशक योगाचार्य ओम प्रकाश कालवा ने सत्यार्थ न्यूज चैनल पर 66 वां अंक प्रकाशित करते हुए सांख्य दर्शन के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया। सांख्य दर्शन एक द्वैतवादी दर्शन है जिसमें दो स्वतंत्र तत्व स्वीकार किये गये हैं-पुरुष और प्रकृति पुरुष सांख्य दर्शन का आत्म तत्व है जो शरीर,इन्द्रिय,मन बुद्धि आदि से भिन्न है। वह चैतन्य स्वरूप है सांख्य दर्शन का दूसरा तत्व प्रकृति है जिसे त्रिगुणात्मिका कहा गया है और जो इस विश्व का मूल कारण है सांख्य दर्शन दो शरीरों के अस्तित्व को मानता है, एक लौकिक शरीर और दूसरा “सूक्ष्म” पदार्थ का शरीर जो जैविक मृत्यु के बाद भी बना रहता है। जब पहला शरीर नष्ट हो जाता है,तो दूसरा दूसरे लौकिक शरीर में चला जाता है।
अर्थ
-सांख्य (सांख्य) या सांख्य,जिसे क्रमशः सांख्य और सांख्य के रूप में भी लिप्यंतरित किया जाता है,एक संस्कृत शब्द है,जिसका संदर्भ के आधार पर अर्थ है’गणना करना, गिनना,गणना करना,विचार-विमर्श करना,कारण,संख्यात्मक गणना द्वारा तर्क,संख्या से संबंधित,तर्कसंगत’।
संस्थापक
-सांख्य दर्शन जिसका शाब्दिक अर्थ संख्या अथवा “अंक” है षड्दर्शन में सबसे प्राचीन है। इसका उल्लेख प्रत्यक्ष तौर पर भगवद्गीता में भी है और अप्रत्यक्ष रूप में उपनिषदों में भी है।इसके प्रवर्तक कपिल मुनि थे सांख्य दर्शन जैन धर्म से सम्बन्धित है।
तत्व
-सांख्य दर्शन में पच्चीस तत्व स्वीकृत हैं। वे हैं- पुरूष, प्रकृति,महत् तत्व,अहंकार, शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गन्ध ये पाँच तन्मात्राएँ, आकाश – वायु – तेज – जल – पृथिवी,ये पञ्चमहाभूत,श्रोत्र-त्वक्-चक्षु-रसन-घ्राण, ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, वाक्-पाणि-पाद- पायु-उपस्थ, ये पाँच कर्मेन्द्रियाँ और मन
सूत्र
-इस त्रिगुणात्मक सिद्धांत ने भारतीय जीवनशैली एवं विचारधारा को अनेक रूपों में प्रभावित किया है सांख्य दर्शन में 6 अध्याय और 451 सूत्र है। सांख्य दर्शन ने वैदिक के साथ-साथ गैर वैदिक आत्माओं में भी आत्मा के कई प्राचीन सिद्धांतों को प्रभावित किया है।
निवेदन
ओम योग सेवा संस्था श्री डूंगरगढ़ द्वारा जनहित में जारी।