टूटता तारा
वो टूटता तारा हारे का सहारा होता ।
बुझे मन की आस होता ।।
देख वो मन चाहत अधूरी हो पूरी आशा करता ।
माँगता मन्नत वो खुदा से देख टूटते तारे को ।।
साथ आशा के होगी बात अधूरी मेरी शायद पूरी ।
सफर वो लंबा तय कर के बेचारा आता ।।
सीधा आसमा से जमी पर फिकाता ।
अर्श से फर्श तक का वो सफर कितना सुखद बीच का पल उसका होता ।।
मन विचार आता न जाने जमीं पर आने के बाद उसका क्या होता ।।
कितना दुखदाई उसका अंत होता सोच दुख होता ।
वक़्त वक़्त की बात होती
देख टूटते तारे को समझ आती ।
आज क्या होगा हाथ हमारे कल क्या होगा कोई न जाने ।।
एक पल को सोचती टिमटीमाता वो सुंदर तारा आकाश की शोभा कल बढ़ाता था ।
आज वो जमीं पर आ गुमनाम हो जाता ।
वर्षा उपाध्याय ,खंडवा.