न्यूज रिपोर्टर मीडिया प्रभारी मनोज मूंधड़ा श्रीडूंगरगढ़ बीकानेर
कैसे है ? ब्रह्मचर्य शरीर का बहुमूल्य रत्न जानिए योग एक्सपर्ट ओम प्रकाश कालवा के साथ।
श्रीडूंगरगढ़ कस्बे की ओम योग सेवा संस्था के निदेशक योग एक्सपर्ट ओम प्रकाश कालवा ने सत्यार्थ न्यूज चैनल पर 53वां अंक प्रकाशित करते हुए ब्रह्मचर्य की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया। सात्विक जीवन बिताना, शुभ विचारों से अपने वीर्य का रक्षण करना, भगवान का ध्यान करना और विद्या ग्रहण करना। यह वैदिक धर्म वर्णाश्रम का पहला आश्रम भी है, जिसके अनुसार यह ०-२५ वर्ष तक की आयु का होता है और जिस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिये शिक्षा ग्रहण करनी होती है।
ब्रह्मचर्य
-यह दो शब्दों से मिलकर बना है ब्रह्म और चर्य ब्रह्म शब्द का ब्रह्म धातु से बना है।ब्रह्म का अर्थ है-बढ़ना,वृद्धि करना, उन्नति करना। चर्य का अर्थ है अर्पित करना। इसलिए इसका अर्थ है ब्रह्म के लिए अपने आप को अर्पित करना तथा उसके गुणों को ग्रहण करना होता है। साधारण ब्रह्मचर्य का अर्थ गुप्तेद्रियों पर विजय प्राप्त करना कहलाता है परंतु योग के क्षेत्र में समस्त ज्ञानेंद्रियों सहित अपने मन पर भी विजय प्राप्त करना ब्रह्मचर्य कहलाता है। यह जीवन का अत्यंत कठिन तप है।
नियम
-ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है,”ब्रह्म की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला आचरण”!ब्रह्मचर्य का पहला नियम है,काम वासना को नियंत्रित रखना! इस कारण गृह, खास कर नारी समाज से तब तक दूर रहना जब तक कि योग सिद्ध न हो जाए। कामवासना को नियंत्रित करने केलिए अल्प भोजन एवं अल्प निद्रा अर्थात कम व सादा भोजन तथा कम सोना आवश्यक है।
शक्ति
-ब्रह्मचर्य मनुष्य की एकाग्रता और ग्रहण करने की क्षमता बढाता है। ब्रह्मचर्य पालन करने वाला व्यक्ति किसी भी कार्य को पूरा कर सकता है। ब्रह्मचारी मनुष्य हर परिस्थिति में भी स्थिर रहकर उसका सामना कर सकता है। ब्रम्हचर्य के पालन से शारीरिक क्षमता,मानसिक बल ,बौद्धिक क्षमता और दृढ़ता बढ़ती है।
निवेदन
-ओम योग सेवा संस्था श्री डूंगरगढ़ द्वारा जनहित में जारी।