कन्नौज लोकसभा चुनाव 2024
जातीय समीकरण लिखेगें फाइनल रिपोर्ट
– मुस्लिम व यादव वोट बैंक के गठबंधन से कन्नौज फतेह के लिए अखिलेश तैयार
-मोदी मैजिक और सवर्ण-पिछड़ा वर्ग के सहारे सुब्रत पाठक दोबारा दिल्ली जाने के लिए तैयार
– खेल बिगाड़ने के लिए बसपा प्रत्याशी इमरान बिन जफर मैदान में
कन्नौज लोकसभा सीट पर 2024 लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार शनिवार शाम 6 बजे थम गया। चुनाव प्रचार थमने के बाद प्रत्याशियों ने अपने जातीय समीकरण मजबूत करने शुरू कर दिए हैं। राजनैतिक पंडितों की मानें तो कन्नौज लोकसभा सीट पर चुनाव परिणाम जातीय समीकरण के आधार पर तय होगें और जो दल जातीय समीकरण को सम्भाल ले गया उसकी जीत तय है।
कन्नौज लोकसभा सीट पर दो़ दशक से अधिक समय से फर्राटे से दौड़ रही साइकिल को रोककर मोदी-योगी शासन में कराए गए विकास कार्यों के सहारे 2019 लोकसभा चुनाव में कमल खिला चुके भाजपा सांसद सुब्रत पाठक एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं और अपनी जीत सुनिश्चित मान रहे हैं। वहीं दूसरी नामांकन के अंतिम दिन कन्नौज लोकसभा सीट से अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने बाले सपा मुखिया अखिलेश यादव एक बार फिर से इत्र के मित्र बनकर खुशबू बिखेरने के लिए तैयार हैं। समाजवादी पार्टी जातीय समीकरण के आधार पर अपनी जीत सुनिश्चित मान रही है। दोनों प्रत्याशियों का जातीय समीकरण बिगाड़ने के लिए बसपा भी इस बार मुस्लिम चेहरा इमरान बिन जफर के साथ मैदान में है।
अखिलेश-सुब्रत में सीधी भिड़ंत…
कन्नौज लोकसभा सीट पर यादव, ब्राह्मण तथा दलित मतदाता बहुतायत है और लगभग बराबरी पर है। बीता इतिहास इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस से जीती शीला दीक्षित के अतिरिक्त कांग्रेस और भाजपा ने यहां कोई विकास कार्य नहीं कराया और न ही उनके सांसदों ने जीतने के बाद मतदाताओं से संवाद बनाए रखा।
फलस्वरूप यहां की जनता ने परिवर्तन का फैसला लिया और कन्नौज लोकसभा की कमान समाजवादी कुनबे को सौंप दी। 20 वर्षों तक कन्नौज की कमान समाजवादी पार्टी के हांथों में रही लेकिन 2019 में हुए चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक मोदी लहर में दिल्ली पहुंच गए और कन्नौज से समाजवादी गढ़ को ध्वस्त कर दिया। पांच वर्ष के शासनकाल में डबल इंजन की सरकार में कन्नौज से विकास कुछ हद तक दूर रहा इसलिए सुब्रत पाठक के दोबारा कन्नौज फतेह करने पर संशय है।
वहीं दूसरी ओर पिछली बार की गलती से सबक सीखते हुए अंतिम दिवस में प्रत्याशी बदलकर स्वयं कन्नौज लोकसभा को बचाने के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव मैदान में है। पूरे देश में इंडिया गठबंधन की सरकार बनाने का दावा करने बाले अखिलेश कन्नौज को हर कीमत पर जीतना चाहते हैं और इसीलिए विपक्षी गठबंधन के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी के साथ उन्होने कन्नौज में विशाल जनसभा की और लगभग हर दूसरे दिन लोकसभा क्षेत्र में रैली, जनसभा की।
अखिलेश को जिताने के लिए उनकी पत्नी सांसद डिम्पल यादव व उनकी पुत्री अदिति यादव भी प्रचार की कमान संभाले हुए हैं और लोकसभा में सपा के लिए वोट मांग रहे हैं।सपा का मानना है कि लोकसभा क्षेत्र में यादव-मुस्लिम- गठजोड़ से उनकी जीत होगी।
1952 से अब तक केवल तीन बार भाजपा के उम्मीदवार सांसद रहे । 1977 में रामप्रकाश त्रिपाठी (जनता पार्टी) ने यहां के लोगों से संवाद जरूर बनाए रखा परन्तु विकास के नाम पर क्षेत्र को बहुत कुछ नहीं दे सके। 1996 में फर्रूखाबाद से आए चन्द्रभूषण सिंह ’’मुन्नू बाबू’’ यहां से जीते तो लेकिन मतदाताओं से उतनी ही दूरी बनाए रखी। नतीजा यह रहा कि जनता की नजरों में भाजपा उपेक्षित होती चली गई और सपा ने कन्नौज को अपना बना लिया। पिछले पन्द्रह वर्षों में परिवर्तन हुआ और युवाओं के बीच गहरी पैठ रखने बाले स्थानीय युवा नेता सुब्रत पाठक का कन्नौज की राजनीति में प्रवेश हुआ। श्री पाठक ने पहला चुनाव वर्तमान में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने लड़ा, जिसमें उनको शिकस्त मिली।
दूसरा लोकसभा चुनाव वर्ष 2014 में हुआ। भाजपा ने एक बार फिर सुब्रत पाठक पर दांव लगाया। उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और सपा से मैदान में थी डिम्पल यादव। भाजपा प्रत्याशी ने सत्ताबल के खिलाफ बड़ी दमदारी से चुनाव लड़ा और कन्नौज लोकसभा की पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर जीत दर्ज की। हालांकि कन्नौज व छिबरामऊ विधानसभा सीट पर डिम्पल यादव की जीत हुई। और डिम्पल यादव विजयी घोषित हुई।
इस चुनाव में सुब्रत पाठक के संघर्ष को भाजपा ने सराहा और लोकसभा चुनाव 2019 में दोबारा उन्हे पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया। कन्नौज की जनता ने इस बार सुब्रत का साथ दिया और इस हाईप्रोफाइल सीट पर डिम्पल यादव को हराकर सुब्रत सांसद चुने गए।
सुब्रत पाठक ने कन्नौज में सांसद निधि से कई विकास कार्य कराए और लगातार जनता के मध्य बने रहे। हालाँकि इस दौरान उनके प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों से विवाद हुए। लेकिन उनके समर्थक कमज़ोर नहीं पड़े। सुब्रत पाठक एक बार फिर से चुनाव मैदान में है। इस बार 400 पार की उम्मीद लगाए भाजपाई सुब्रत पाठक की जीत तय मान रहे हैं।
यदि यादवों के वोट बैंक पर सपा अपना कब्जा मानती है तो ब्राह्मणों को एकजुट करने में भाजपा एड़ी से चोटी का जोर लगा रही है। भाजपा के कुछ नेताओं का मानना है कि पिछड़े वर्ग में नरेन्द्र मोदी के सहारे गैर यादव मतों में भाजपा ने खासी सेंध लगाई है। पिछड़े वर्ग में लोधी,राजपूत, कुशवाहा, पाल, कटियार अधिकांश भी भाजपा के ही साथ हैं। वहीं ठाकुर मतदाता भी खुलकर भाजपा के साथ है।। भाजपा प्रत्याशी जातियों के इसी गठबंधन के सहारे चुनाव में जीतने का दावा कर रहे हैं।
कन्नौज में इस बार बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में लाकर सपा व भाजपा को टक्कर देने की कोशिश की है। बसपा प्रत्याशी इमरान बिन जफर पार्टी के कोर वोटर दलित समुदाय के साथ मिलकर अल्पसंख्यक समाज के वोट के सहारे चुनाव मैदान में हैं। बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी कार्ड ने दलित व मुस्लिम बाहुल्य सीट पर लड़ाई दिलचस्प कर दी है।
आगामी 13 मई को देखना होगा कि जातियों का यह समीकरण के किसके पाले में कितना सटीक बैठता है।