न्यूज रिपोर्टर :- प्रदीप खरे
स्थान – शिवपुरी
लोकसभा चुनाव में गायब स्थानीय मुद्देः दशकों पुरानी योजनाएं अधूरी पड़ीं, कोई भी उद्योग तक स्थापित नहीं हुआ, मजदूर ही नहीं युवा भी पलायन को मजबूर
शिवपुरी। शिवपुरी में आजादी के 75 वर्ष बाद भी जल और सीवर जैसी सुविधाएं नहीं हैं। शहर की आंतरिक सड़कों की दुर्दशा हर कालोनी में देखी जा सकती है। पर्यटन को बढ़ाने का दावा हर मंच से किया जा रहा है, लेकिन यह जुमलेबाजी तक सिमट कर रह गया है। तीन बाघों को पुनस्र्स्थापना होने के बाद भी पर्यटक शिवपुरी का रुख नहीं कर रहे हैं। पहले आदिवासी, सहरिया और गरीब तबके के लोग पलायन के लिए मजबूर होते थे, लेकिन अब युवा भी पलायन को मजबूर हैं क्योंकि शिवपुरी में उद्योग ही नहीं हैं। मंतदान को अब करीब दो हफ्ते का समय ही शेष है, लेकिन जनता के मुद्दे उनके बीच से गायब हैं। भाजपा प्रत्याशी नाम- ज्योतिरादित्य सिंधिया पुरानी उपलब्धियां गिनाने के साथ जनता को सिंधिया परिवार से पुराना रिश्ता याद दिला रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी स्थानीय और बाहरी प्रत्याशी को मुद्दा बनाकर में जातिगत बोट बैंक के सहारे चुनाव लड़ने में जुटे हैं।
सीवर प्रोजेक्ट 10 साल बाद भी अधूरा है सिर्फ बजट और पूरा होने का समय ही बढ़ा
यह परियोजना सफेद हाथी बन गई है। इसका बजट बढ़कर दोगुना हो गया है। सीवर प्रोजेक्ट का वर्क आर्डर जुलाई 2013 को जैन एंड राय को मिला था। यह प्रोजेक्ट 21 माह में पूरा होना था, लेकिन 10 साल बाद भी अधूरा है। प्रोजेक्ट स्वीकृति के समय इसकी लागत 62 करोड़ रुपए थी जो बढ़कर 120 करोड़
तक पहुंच गई। इस योजना में इस कदर भ्रष्टाचार हुआ है कि कई अधिकारियों पर लोकायुक्त्त में करोड़ों के फर्जी भुगतान को लेकर एफआइआर भी दर्ज हो चुकी है। इस योजना को लेकर शहरवासियों ने काफी दर्द भी महसूस किया है क्योंकि इसकी लाइन बिछाने के लिए पूरे शहर की सड़कें खोद दी गई थीं।
सिंध परियोजनाः बजट से दोगुना खर्च, अव भी हर घर तक पानी नहीं
सिंध परियोजना को शहर की सबसे महत्वकांक्षी योजना भी कहा जा सकता है क्योंकि यह शहर की दाई लाख से अधिक आबादी की प्यास बुझाएगी। शहर की पेयजल आवश्यकता की 70 प्रतिशत आपूर्ति इसी योजना पर निर्भर है। यह योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई और ऐसी लाइन बिछा दी गई जो हर दूसरे दिन फूट जाती है। यह समस्या ही पिछले पांच वर्षों से अधिक समय से चली आ रही है। अब जाकर पाइपलाइन बदलने का काम शुरू किया गया है और इसकी लागत ही इस प्रोजेक्ट की शुरुआती लागत के बराबर है। करीब 10 हजार घरों तक तो इसका कनेक्शन ही नहीं पहुंचा है।
उद्योगः सिर्फ औद्योगिक क्षेत्र बने, उद्योग नहीं आए
शिवपुरी और करैरा में दो विशेष औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए गए जिस पर करोड़ों रुपये खर्च हुए। इसके बाद भी यहां एक बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो सका।
शिवपुरी में टमाटर का उत्पादन बड़ी मात्रा में होती है, वहीं करैरा में मूंगफली का। इन दोनों जगहों पर फूड प्रोसेसिंग इकाईयां स्थापित होने की अच्छी संभावनाएं थीं। इसके अलावा कोई भो बड़ी कंपनी ने यहां पर अपना उद्योग स्थापित नहीं किया इसके चलते रोजगार अवसर बड़े सीमित हो गए हैं। के
भ्रष्टाचार : बैंक लेकर गांव तक घोटाले ही घोटाले
शासन प्रशासन पर लगाम कसने में नाकाम साबित हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप पिछले तीन वर्ष में जिले में कई बड़े घोटाले सामने आए हैं। सहकारी बैंक में 80 करोड़ रुपये से अधिक का गबन कर दिया गया। आरईएस विभाग के ईई पर करीब 24 करोड़ की वित्तीय अनियमितता के प्रारंभिक जांच में प्रमाणित हो चुकी है। बदरवास में पंचायतों में 15 करोड़ का गबन सामने आ चुका है। शिवपुरी जनपद में जिंदा लोगों को मृत बताकर संबल योजना की राशि निकाल ली गई। पिछोर में शौचालयों की राशि में करोड़ों का गबन कर दिया गया। किसानों की सूखा राहत राशि तक सरकारी कर्मचारी डकार गए। इतनी वित्तीय अनियमितताएं सामने आने के बाद भी प्रशासन पर कसावट नहीं की जा सकी है।