गोपाल चतुर्वेदी/मथुरा
मथुरा लोकसभा चुनावों में प्रत्याशी बहा रहे पसीना
मतदाता ने साधी चुप्पी
इस चुनाव में बसपा सुप्रीमो ने लगाया उधार के प्रत्याशी पर दाव
मथुरा – लोकसभा चुनाव की तिथि जैसे जैसे नजदीक आती जा रही है प्रत्याशी अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं, एक दूसरे से आगे दिखने के लिए छपास प्रेमी नेता खेत में फसल काटने की नौटंकी से लेकर कुछ प्रत्याशी तो ईट भट्टा पर मजदूरों के साथ फोटो बाजी में लगे है। कोई किसान का बेटा कोई मजदूर का भाई बन जनता को लुभाने की हर संभव कोशिश करते नजर आ रहे हैं। मथुरा की जनता इस बार चुप्पी साधे बैठे है, जनता के मन की वात अगर समझें तो बदलाव का मूढ़ है पर मजबूरी है कि विपक्ष ने मैदान में राजनीत मैं मझे नेताओं को ना उतारकर केवल नौसिखिए नेताओं को मैदान मै उतार दिया है। बसपा का कोर वोटर तो आज तक इस बात से चिंतित हैं कि बसपा के पास अपने खुद के नेताओं का टोटा हो चुका है हर बार दूसरो के फैंके नेताओं पर भरोसा करना पड़ रहा है बसपा का वोटर जानता है कि सुरेश सिंह की भाजपा के साथ कितनी गहरी दोस्ती रही है। पार्टी के द्वारा प्रत्याशी घोषित होने के दो दिन बाद बसपा प्रत्याशी फेसबुक पर योगी मोदी की भक्ति करते नजर आए पूर्व मांट विधानसभा चुनाव मैं भी बसपा ने ऐसे ही प्रत्याशी पर दाव लगाया चुनाव हारने के चंद दिनों बाद बसपा से मोहभंग हो गया, इस लोकसभा चुनाव मैं भी बसपा ने वही इतिहास दोहराया, बसपा के कोर वोटर का दावा है कि सुरेश सिंह भी मौका परस्ती कर चुनाव बाद बसपा मै अपनी सकल नही दिखाएंगे।
राजनीति मैं शून्य के शिखर पर पढ़ी कांग्रेस के प्रत्याशी का भी हाल वही है। कांग्रेस मथुरा की सीट को क्या पूरे उत्तर प्रदेश में चुनाव सिर्फ नाम को लड़ रही है।
ना कोई नेताओ मैं जोश है ना चुनाव की रणनीति, ऐसी परिस्थिति में जनता मजबूरी बस हेमा की ओर देख रही है। चुनाव मैं जनता के जमीनी मुद्दो को उठाने वाला एक भी प्रत्याशी मैदान मै नही है । मथुरा जैसे महत्वपूर्ण लोकसभा सीट पर विपक्ष की भूमिका हमेशा नदारत रही है इस बार भी विपक्ष केवल नाम का है जनता को गुमराह करने के लिए मैदान मै उतरा है। स्थानीय मुद्दे लोकसभा चुनाव मैं नदारत है। मथुरा के शहरी क्षेत्रों में सफाई, आवारा पशु, बंदर और यमुना प्रदूषण, बिजली बिल की बढ़ोत्तरी, हाउस टैक्स के नाम पर जनता की जेब मै डाका डालने पार्किग के नाम पर जबरन वसूली, ट्रैफिक व्यवस्था का खस्ता हाल, शिक्षा माफियाओं का शिक्षा के नाम पर लूट जैसे मुद्दे लोकसभा चुनाव का इंतजार करते रहे, वही ग्रामीण इलाकों में छाता शुगर मील, पराली के नाम पर किसानों का उत्पीड़न, खेतो में आवारा पशु द्वारा खड़ी फसल बरबाद करना, जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे विपक्ष का इंतजार करते रहे। पर नेतृत्व विहीन विपक्ष सत्ता दल के आगे अपने आप को असहज महसूस करते हुए जनता के बीच से नदारत हो गया। विपक्ष की भूमिका को देखते हुए जनता पर केवल हेमा मालिनी को संसद मैं ना चाहते हुए भी भेजना पड़ेगा।