सत्यार्थ न्यूज श्रीडूंगरगढ़-सवांददाता ब्युरो चीफ रमाकांत</h4
होलिका दहन से हिरण्यकश्यप,होलिका और प्रह्लाद की कथा जुड़ी हुई है। इस दिन होलिका बुरी मंशा से प्रह्लाद को आग की लपटों में लेकर बैठी थी लेकिन खुद ही जलकर खाक हो गई. तभी से होलिका दहन का पर्व मनाया जाने लगा और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा गया. कहते हैं बुराई कितनी ही बड़ी हो जाए लेकिन अच्छाई पर हावी नहीं हो सकती। कस्बें में गुरूवार देर रात भद्रा के हटते ही शुभमुहूर्त करीब 11:30 में अनेक स्थानों पर विधि विधान से होलिका दहन के सामूहिक आयोजन संपन्न हुए। महिलाओं ने परिवार सहित होलिका का पूजन किया और हल्दी,चावल,गेंहू की बालियां और नारियल,कपूर,गोबर से बने बड़कुले अर्पित किए। श्रद्धालुओं ने पूरे विधि विधान से होलिका की परिक्रमा कर परिवार में सुख समृद्धि की प्रार्थनाएं की। होलिका दहन के बाद गणगौर पूजन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक,कुल 16 दिनों तक चलता है,जिसमें महिलाएं और कुंवारी लड़कियां ईसर और गणगौर की पूजा करती हैं।महिलाएं और कुंवारी लड़कियां ईसर (भगवान शिव) और गणगौर (पार्वती) की पूजा करती हैं।कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की कामना करती हैं।विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। वहीं आज सुबह से ही कस्बे में रामा-शामा का पारंपरिक दौर भी शुरू हो गया है।परंपरा के अनुसार,होलिका दहन के अगले दिन यानी धुलंडी से पहले रामा-शामा होता है। इस रस्म में लोग अपने से बड़ों और सगे-संबंधियों के घर जाकर उन्हें प्रणाम करते हैं,होली की शुभकामनाएं देते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
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