बसंत पर्व को टूरिज्म विभाग के ‘ईवेंट कलैंडर’ में शामिल किया जाये
रिपोर्टर वसीउद्दीन आगरा
माइर्नारटी कमीशन के चेयरमैन से मैट्रो स्टेशन का नाम नजीर अकबराबादी के नाम पर करवाने का अनुरोध
नजीर अकबराबादी की पहचान नई पीढ़ी में सही तरीके से करवाने के लिये मलको गली (ताजगंज) में स्थित मजार और उसके आसपास के क्षेत्र को हरा भरा स्वच्छता युक्त करवाया जायेगा और इस स्थान से निकटतम मेट्रो स्टेशन को उनके जीवन पर आधारित नाटक ‘आगरा बाजार की प्रस्तुतियों के दृष्यों, महत्वपूर्ण नज्मों ,शायरियों से युक्त करने को शासन और प्रशासन को लिखा जायेगा।यह कहना है,उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के निवर्तमान चेयरमैन श्री अशफाक सैफी का।
–केवल अल्पसंख्यक ही नहीं शहरभर की मांग
श्री अशफाक सैफी जो कि सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा के प्रतिनिधिमंडल से जगदीशपुरा स्थित अपने कैंप आफिस पर मुलाकात कर रहे थे,ने कहा कि नजीर अकबरावादी (वली मुहम्मद ) कि अल्पसंख्यक समुदाय और ताजगंज क्षेत्र के नागरिकों के कई संगठन उनसे मिलते रहें हैं।उन्होंने कहा कि नजीर मुस्लिम जरूर थे किंतु उनका लिट्रेचर और उसके पीछे की सोच निश्चित रूप से बृजक्षेत्र की आशावाद से भरपूर उस संस्कृति को समृद्ध करने वाली है,जिसमें गरीब ,अमीर, हिन्दू,मुस्लिम ,आदि सभी धर्मालंवियों के लिये अपने अपने अंदाज में जीवन जीने की गुंजायिश है।
–मेट्रो स्टेशन का नाम रखवायें
सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा के सैकेट्री अनिल शर्मा ने कहा कि सोसायटी के द्वारा आगरा मैट्रो सेवा के किसी एक स्टेशन का नाम ‘नजीर अकबरावादी के नाम पर करने की अपेक्षा रही है,इसके लिये मैट्रो प्रशासन से निवेदन भी किया जा चुका है।इसी प्रकार सोसायटी की उ प्र टूरज्म डिपार्ट मेंट से मांग है कि अपने इंवेट कलैंडर बसंत पंचमी को भी शामिल करवाये,जो कि संपूर्ण बृज मंडल के गांव गाव में सामुदायक रूप से मनाया जाने वाला पर्व और नजीर अकबरावादी का जन्म दिवस भी है।
फिर से शुरू हो बसंत पर्व का आयोजन
दो दशक पूर्व तक नगर निगम आगरा के द्वारा नागरिक संगठनों के सहयोग से नजीर की मजार पर बसंत पर्व का एक बडा कार्यक्रम होता था,जबकि अब यह परंपरा सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा , शीरोज हैंग आऊट (एसिड अटेक से पीडित महिलाओं के द्वारा संचालित होटल) और अंर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गजल गायक सुधीर नारायन के नेतृत्व वाले हार्मनी ग्रुप (group harmony ) के द्वारा आपसी सहयोग से बनाये रखी हुई है।कितु इसके बावजूद बडे स्तरिय कार्यक्रम को आयोजन की जरूरत है।
–साइनेज और इन्फॉर्मेशन बोर्ड
इस अवसर पर सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा की ओर से श्री अशफाक सैफी को एक अनुरोध पत्र देकर नजीर की मजार के आसपास के क्षेत्र की सफाई नियमित करवाने , साइनेज लगवाने ,सूचना पट लगवाये जाने तथा तथा बसंत पर्व को टूरिज्म डिपार्टमेंट के कैलेंडर में शामिल करवाये जाने की अपेक्षा की । श्री सैफी ने बताया के इस सुझाव के पत्र उनको श्री सयद शाहीन हाशमी (सदस्य सिविल सोसाइटी ऑफ़ आगरा ) और श्री आरिफ तैमूरी (बज्मे नजीर) द्वारा लिखे, भी उनको प्राप्त हो चुके हैं.
सैफी से मुलाकात करने वालों में सेक्रेटरी श्री अनिल शर्मा के अलावा सर्वश्री राजीव सक्सेना,असलम सलीमी आदि भी शामिल थे।
प्रेस नोट के साथ दो संदर्भ /संगलक भी प्रेषित हैं.
अनिल शर्मा
सेक्रेटरी
Cell- +919837820921
फोटो – आभार असलम सलीमी.
संलग्नक संख्या-1*
नजीर का संक्षिप्त परिचय
नज़ीर अकबराबादी (1740-1830) १८ वीं सदी के भारतीय शायर थे जिन्हें “नज़्म का पिता” कहा जाता है। उन्होंने कई ग़ज़लें लिखी, उनकी सबसे प्रसिद्ध व्यंग्यात्मक नज़्म बंजारानामा है। नज़ीर आम लोगों के कवि थे। उन्होंने आम जीवन, ऋतुओं, त्योहारों, फलों, सब्जियों आदि विषयों पर लिखा।
नज़ीर अकबराबादी प्रख्यात शायर थे , उर्दू लिटरेचर में उन्हें ‘नज्म के पिता’ के पिता की मान्यता है। नजीर को समूचे बृज क्षेत्र अत्यंत सम्मान के साथ याद किया जाता है,बलदाऊ मेला( बलदेव जी का मेला),बसंत,फाल्गुन,होली, जन्म कृष्ण कन्हैया, कृष्ण लीला, कंस का मेला, शेख सलीम चिश्ती आदि के अवसरों पर उनके द्वारा लिखी गई रचनाओं का सस्वर गायन होता है।बंजारा नामा, आदमी नामा, बुढ़ापा, रोटी नामा, कोरा बर्तन, तिल के लड्डू ,ककड़ी बेचने वाला,आगरा बाजार आदि जैसी न जाने कितनी ऐसी रचनाये जो आम लोगों में प्रचलित हुई,जिसके फलस्वरूप उन्हें उनके जीवनकाल में ही जनकवि कहा जाने लगा।,
अपने समय के प्रख्यात मंच आर्टिस्ट स्व.हबीब तनवीर की संगीतमय उत्कृष्ट कृति ‘आगरा बाज़ार’ का पहली बार 1954 में अप्रशिक्षित अभिनेताओं की टोली के साथ मंचन किया तो नजीर एकदम पुनः:जीवंत हो गये थे। दरअसल यह स्ट्रीट प्ले नज़ीर अकबराबादी के जीवन पर आधारित है।आगरा बाजार का खास तौर से उल्लेख करना चाहूंगा,उनकी यह रचना आगरा की तत्कालीन आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को बताती है।
संलग्नक संख्या-2
–सच्चा आगरा वासी
–तखुल्लसजरूर ‘अकबराबादी’ लेकिन दिल से आगरा ही
नजीर के समय आगरा ,अकबराबाद के नाम से मशहूर था, नजीर ने तखल्लुस के रूप में अपने नाम के आगे भले ही ‘अकबराबाद ‘जोड लिया हो किंतु शहर को ‘आगरा’ ही कहते रहे।
————- आगरा को लेकर उनकी एक नज़्म है
‘क्यों कर न अपने शहर की खूबी करूँ बयाँ,
देखी हैं आगरे में बहुत हमने खूबियाँ।‘
एक बार लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने अपने यहां बुलाया। नजीर जाना नहीं चाहते थे, लेकिन काफी मान-मनौव्वल के बाद जाना स्वीकार कर लिया। ताजगंज से निकलने के बाद जहां तक उन्हें ताज नजर आता रहा, वे चलते रहे, जैसे ही ताज नजर आना बंद हुआ, वे वापस लौट आए। कई किताबों और शोध पत्रों में छपा है कि वह घोडे पर चढकर लखनऊ रवाना हुए थे,जब कि कई में उल्लेख है कि वह दशहरा घाट से नाव पर सवार होकर कानपुर होते हुए लखनऊ को रवाना हुए थे और ताजमहल दखिना बंद होते ही यमुना नदी में कूद कर वापस मल्को गली जा पहुंचे थे । ‘आगरा ’शहर के प्रति उनकी चाहत उनकी कविताओं में साफ नजर आती है।जो कि शहर वासियों में उनकी कद्र स्वाभाविक रूप से बढाती है!
‘रखियो इलाही इसको तू आबाद व जावेदा’
देख ले इस दहर को जी भर के नज़ीर,
फिर तेरा काहे का इस बाग में आना होगा।‘
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प्रेरक आगरा नामा
“आशिक कहो, असीर कहो, आगरे का है
मुल्ला कहो दबीर कहो आगरे का है
मुफ़लिस कहो फ़क़ीर कहो आगरे का है
शायर कहो नज़ीर कहो आगरे का है”
–उनके आगरा से प्रेम के उज्जगर होने के बाद शहरवासियों ने उन्हें ‘आगरा का शायर’ का शायर कहना शुरू कर दिया ।उनकी यह पहचान अब तक बनी हुई है और शहर वासियों के लिये प्रेरक है।
— नजीर का बृज संस्कृति या यमुनी गंगा तहजीब में रहे योगदान का अंदाज इसी से लगाया जा सकता कि 1375 से 1700 देश में भक्तिकाल का दौर रहा,लेकिन इसके बाद इसे नजीर ने ही नये अंदाज में ताजगी दी उसी का मौजूदा स्वरूप ही अब बृजभर में स्वीकार्य और आगरा की पहचान है।