सत्यार्थ न्यूज श्रीडूंगरगढ़-सवांददाता नरसीराम शर्मा
पंचांग का अति प्राचीन काल से ही बहुत महत्त्व माना गया है। शास्त्रों में भी पंचांग को बहुत महत्त्व दिया गया है और पंचाग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना गया है। पंचांग में सूर्योदय सूर्यास्त,चद्रोदय-चन्द्रास्त काल,तिथि,नक्षत्र,मुहूर्त योगकाल,करण,सूर्य-चंद्र के राशि,चौघड़िया मुहूर्त दिए गए हैं।
🙏जय श्री गणेशाय नमः🙏
🙏जय श्री कृष्णा🙏
🕉️आज का पंचांग🕉️
दिनांक:- 04/02/2025, मंगलवार
सप्तमी, शुक्ल पक्ष,
माघ””””””””””””””””(समाप्ति काल)
तिथि———- सप्तमी 26:30:15 तक
पक्ष———————— शुक्ल
नक्षत्र——— अश्विनी 21:48:40
योग————- शुभ 24:05:09
करण————– गर 15:32:11
करण———- वणिज 26:30:15
वार——————— मंगलवार
माह———————— माघ
चन्द्र राशि—————— मेष
सूर्य राशि—————– मकर
रितु———————– शिशिर
आयन—————— उत्तरायण
संवत्सर (उत्तर)———— कालयुक्त
विक्रम संवत————– 2081
गुजराती संवत———— 2081
शक संवत—————- 1946
कलि संवत—————- 5125
वृन्दावन
सूर्योदय————– 07:06:47
सूर्यास्त————– 18:15:12
दिन काल———— 11:08:24
रात्री काल———— 12:51:06
चंद्रोदय————– 10:54:50
चंद्रास्त—————- 24:19:34
लग्न—-मकर 21°17′ , 291°17′
सूर्य नक्षत्र—————– श्रवण
चन्द्र नक्षत्र—————- अश्विनी
नक्षत्र पाया—————— स्वर्ण
🚩💮🚩 पद, चरण 🚩💮🚩
चे—- अश्विनी 10:31:02
चो—- अश्विनी 16:09:32
ला—- अश्विनी 21:48:40
ली—- भरणी 27:28:29
💮🚩💮 ग्रह गोचर 💮🚩💮
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
==========================
सूर्य= मकर 21°40, श्रवण 4 खो
चन्द्र= मेष 04°30 , अश्विनी 2 चे
बुध =धनु 17°52 ‘ श्रवण 3 खे
शु क्र= मीन 05°05, उ o फाo’ 1 दू
मंगल=मिथुन 25°30 ‘ पुनर्वसु ‘ 2 को
गुरु=वृषभ 17°30 रोहिणी, 3 वी
शनि=कुम्भ 23°28 ‘ पू o भा o , 2 सो
राहू=(व) मीन 05°30 उo भा o, 1 दू
केतु= (व)कन्या 05°30 उ oफा o 3 पा
🚩💮🚩 शुभा$शुभ मुहूर्त 💮🚩💮
राहू काल 15:28 – 16:52 अशुभ
यम घंटा 09:54 – 11:17 अशुभ
गुली काल 12:41 – 14: 05अशुभ
अभिजित 12:19 – 13:03 शुभ
दूर मुहूर्त 09:20 – 10:05 अशुभ
दूर मुहूर्त 23:24 – 24:08* अशुभ
वर्ज्यम 18:03 – 19:33 अशुभ
प्रदोष 18:15 – 20:50 शुभ
गंड मूल 07:07 – 21:49 अशुभ
चोघडिया, दिन
रोग 07:07 – 08:30 अशुभ
उद्वेग 08:30 – 09:54 अशुभ
चर 09:54 – 11:17 शुभ
लाभ 11:17 – 12:41 शुभ
अमृत 12:41 – 14:05 शुभ
काल 14:05 – 15:28 अशुभ
शुभ 15:28 – 16:52 शुभ
रोग 16:52 – 18:15 अशुभ
चोघडिया, रात
काल 18:15 – 19:52 अशुभ
लाभ 19:52 – 21:28 शुभ
उद्वेग 21:28 – 23:04 अशुभ
शुभ 23:04 – 24:41* शुभ
अमृत 24:41* – 26:17* शुभ
चर 26:17* – 27:54* शुभ
रोग 27:54* – 29:30* अशुभ
काल 29:30* – 31:06* अशुभ
होरा, दिन
मंगल 07:07 – 08:02
सूर्य 08:02 – 08:58
शुक्र 08:58 – 09:54
बुध 09:54 – 10:50
चन्द्र 10:50 – 11:45
शनि 11:45 – 12:41
बृहस्पति 12:41 – 13:37
मंगल 13:37 – 14:32
सूर्य 14:32 – 15:28
शुक्र 15:28 – 16:24
बुध 16:24 – 17:20
चन्द्र 17:20 – 18:15
होरा, रात
शनि 18:15 – 19:19
बृहस्पति 19:19 – 20:24
मंगल 20:24 – 21:28
सूर्य 21:28 – 22:32
शुक्र 22:32 – 23:37
बुध 23:37 – 24:41
चन्द्र 24:41* – 25:45
शनि 25:45* – 26:49
बृहस्पति 26:49* – 27:54
मंगल 27:54* – 28:58
सूर्य 28:58* – 30:02
शुक्र 30:02* – 31:06
🚩 उदयलग्न प्रवेशकाल 🚩
मकर > 04:54 से 06: 40 तक
कुम्भ > 06:40 से 08:12 तक
मीन > 08:12 से 10:42 तक
मेष > 10:42 से 11:22 तक
वृषभ > 11:22 से 13:20 तक
मिथुन > 13:20 से 15:32 तक
कर्क > 15:32 से 17:54 तक
सिंह > 17:54 से 20:08 तक
कन्या > 20:08 से 22:30 तक
तुला > 22:30 से 00:34 तक
वृश्चिक > 00:34 से 03:44 तक
धनु > 03:44 से 04:58 तक
विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
नोट-दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
दिशा शूल ज्ञान————-उत्तर
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा गुड़ खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll
अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।
महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्।
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।
7 + 3 + 1 = 11 ÷ 4 = 3 शेष
मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l
🚩💮 ग्रह मुख आहुति ज्ञान 💮🚩
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
शुक्र ग्रह मुखहुति
शिव वास एवं फल -:
7 + 7 + 5 = 19 ÷ 7 = 5 शेष
ज्ञानवेलायां =कष्ट कारक
भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
रात्रि 26:30 से प्रारम्भ
स्वर्ग़ लोक = शुभ कारक
💮🚩 विशेष जानकारी 🚩💮
सर्वार्थ सिद्धिएवं अमृत सिद्धि योग 21:49
नर्मदा जयंती
💮🚩💮 शुभ विचार 💮🚩💮
अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शुन्यास्त्वबांधवाः ।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता ।।
।। चा o नी o।।
जिस व्यक्ति के पुत्र नहीं है उसका घर उजाड़ है. जिसे कोई सम्बन्धी नहीं है उसकी सभी दिशाए उजाड़ है. मुर्ख व्यक्ति का ह्रदय उजाड़ है. निर्धन व्यक्ति का सब कुछ उजाड़ है.
🚩💮🚩 सुभाषितानि 🚩💮🚩
गीता -: क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग अo-13
यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥
हे अर्जुन! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है॥,33॥,
💮🚩 दैनिक राशिफल 🚩💮
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
🐏मेष-महत्वपूर्ण कार्यसिद्धि हो सकती है। मनोरंजक यात्रा होगी। निवेश व नौकरी मनोनुकूल रहेंगे। प्रमाद न करें। व्यावसायिक स्थिति में सुधार संभव है। कामकाज में मन लगेगा। निजी कार्यों में सावधानी, सतर्कता रखें। रुका पैसा प्राप्त होगा।
🐂वृष-धैर्य रखें। आय से अधिक व्यय से आर्थिक तंगी आने की आशंका है। साधारण मतभेद, चिड़चिड़ाहट रह सकती है। दूसरों के कहने में नहीं रहें। व्यापार मध्यम रहेगा। कुसंगति से बचें। यात्रादि में जोखिम न लें। लेन-देन में सावधानी रखें। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा।
👫मिथुन-प्रसन्नता में वृद्धि होगी। लाभ होगा। दूसरों के व्यवहार से लाभ होगा। पूर्व नियोजित योजनाओं का क्रियान्वयन संभव है। रुके कार्यों की चर्चा होगी। संतान के कामों से सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। प्रयास सफल रहेंगे। मान-सम्मान मिलेगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी।
🦀कर्क-शुभ समाचार प्राप्त होंगे। बेचैनी रहेगी। मान बढ़ेगा। अतिथियों का आवागमन रहेगा। झंझटों में न पड़ें। सहयोग, मार्गदर्शन नहीं मिल पाएगा। अर्थ संबंधी विवाद हो सकते हैं। संतान की चिंता रहेगी। सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेना होगा। पारिवारिक कामकाज स्थगित रहेंगे।
🐅सिंह-उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। रोजगार में अपने कार्य को महत्व देंगे। महत्वपूर्ण काम समय पर पूरे हो पाएँगे। नए कार्यों की योजना बनेगी। आशानुरूप लाभ होने के योग हैं। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। भूमि व भवन आदि की खरीद-फरोख्त संभव है।
🙍♀️कन्या-व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। बकाया वसूली होगी। धनार्जन होगा। चोट व रोग से बचें। व्यवसाय ठीक चलेगा। मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा के अवसर आएँगे। आमदनी में सुधार होगा। व्यापारिक स्थायित्व बढ़ेगा। मांगलिक उत्सवों में भाग लेंगे।
⚖️तुला-रचनात्मक कार्य सफल रहेंगे। निवेशादि लाभप्रद रहेंगे। परिवार के सदस्यों की तरक्की होगी। आमदनी से अधिक व्यय न करें। अपने कामों के प्रति सजगता रखना आवश्यक है। चोट व रोग से बचें। पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा।
🦂वृश्चिक-भागदौड़ रहेगी। कामकाज की अधिकता से तनाव बढ़ेगा। व्यावहारिक परेशानियाँ रहेंगी। छोटी-बड़ी तात्कालिक समस्याएँ विचलित रखेंगी। व्यापारिक असंतोष रहेगा। शारीरिक कष्ट से बाधा संभव है। दु:खद समाचार मिल सकता है। विवाद को बढ़ावा न दें।
🏹धनु-प्रभावशाली व्यक्ति सहायता करेंगे। धनार्जन होगा। मानसिक-वैचारिक श्रेष्ठता रहेगी। यात्रा मनोरंजक रहेगी। प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। आर्थिक स्थितियाँ विशेष लाभप्रद बन पाएँगी। दांपत्य जीवन संतोषप्रद रहेगा। व्यर्थ लोभ-लालच नहीं रखें।
🐊मकर-सोच-विचार के अनुरूप स्थितियाँ रह पाएँगी। व्यावसायिक प्रयास सफल होने के आसार हैं। परिवार में धार्मिक, मांगलिक कार्य हो सकते हैं। जल्दबाजी न करें। विवाद से बचें। पुराना रोग उभर सकता है। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में लापरवाही न करें।
🍯कुंभ-महत्वपूर्ण व्यक्तियों से मेलजोल बढ़ेगा। प्रसन्नता रहेगी। संतान पक्ष की चिंता रहेगी। समस्याओं का हल ढूँढ सकेंगे। कर्ज लेने की प्रवृत्ति का त्याग करें। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा। तीर्थदर्शन हो सकता है। क्रोध-चिड़चिड़ाहट से कार्य नहीं करें।
🐟मीन-कार्यप्रणाली में सुधार होगा। नई योजना बनेगी। मान-सम्मान मिलेगा। व्यवसाय ठीक चलेगा। प्रमाद न करें। जीवनसाथी को सम्मान मिलने से मन प्रसन्न रहेगा। जोखिम के कामों से दूर रहें। नौकरी में ऐच्छिक स्थानांतरण, पदोन्नति के योग हैं। अध्ययन में रुचि बढ़ेगी।
🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏
क्यों मनाई जाती रथ सप्तमी? क्या इस दिन जन्में थे सूर्य देव, जानें पूरी व्रत कथा
हर वर्ष माघ मास की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है। इसे रथ सप्तमी, अचला सप्तमी, भानु सप्तमी, संतान सप्तमी, आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर सूर्य देव की उपासना करना बहुत ही उत्तम माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन सूर्य देव की उपासना करने से आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही धन में वृद्धि भी होती है। आइए जानते हैं संतान सप्तमी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। रथ सप्तमी सनातन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में यह त्योहार 4 फरवरी को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। ये त्योहार हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। रथ सप्तमी के दिन नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। तो आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं कि रथ सप्तमी का त्योहार क्यों मनाते हैं और इसके पीछे कौन सी पौराणिक कथा है।
क्यों मनाई जाती है रथ सप्तमी?
माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य देव अपने रथ पर सवार होकर पूरे संसार में प्रकाश आलोकित करना शुरू किया था। इसलिए, यह दिन रथ सप्तमी या सूर्य जयंती के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन सूर्य देव के जन्म का उत्सव भी मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं की माने तो माघ माह की सप्तमी तिथि के दिन ग्रहों के राजा और देवताओं के चिकित्सक सूर्य देव का जन्म हुआ। सूर्य देव के वाहन रथ में सात घोड़े हैं, ऐसे में इस तिथि को रथ सप्तमी के रूप जाना जाता है।
रथ सप्तमी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार,भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब अपने पिता श्री कृष्ण की तरह ही बेहद सुंदर और बलवान था। सुंदर और बलवान होने के कारण वह बहुत अहंकारी भी था। एक बार ऋषि दुर्वासा लंबे समय तक तप करने के बाद भगवान श्री कृष्ण से मिलने आए। उस वक्त भगवान श्री कृष्ण के साथ सांब भी मौजूद थे। लंबे समय तक तप करते रहने के कारण ऋषि दुर्वासा बहुत ही दुर्बल और कांतिहीन नजर आ रहे थे। अपनी सुंदरता पर अभिमान करने वाले सांब ऋषि के दुबले शरीर को देखकर हंसने लगे। इस तरह अपना अनादर होते देखकर ऋषि सांब पर अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्हें कोढ़ का श्राप दे दिया।ऋषि का श्राप सुनने के बाद सांब को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने ऋषि से बहुत क्षमा याचना की परंतु दुर्वासा मुनि ने उसे क्षमा करने से इनकार कर दिया। ऋषि के जाने के बाद सांब ने अपने पिता कृष्ण के पास जाकर श्राप से बचने का उपाय पूछा। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें भगवान सूर्य की पूजा और उपासना की सलाह दी। पिता की बात मानते हुए सांब भगवान सूर्य की पूजा उपासना शुरू किया और भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए अचला यानी सूर्य सप्तमी का व्रत भी किया। सूर्य देव ने सांब की भक्ति और व्रत से प्रसन्न होकर उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति का आशीर्वाद दिया। इस तरह भगवान सूर्य की उपासना कर सांब को अपनी सुंदर काया फिर से मिल गई। इस कथा से प्रेरित होकर ही लोग त्वचा रोग से मुक्ति के लिए भगवान सूर्य की उपासना और सूर्य सप्तमी का व्रत रखने लगे।
माघ सप्तमी पूजा विधि
माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले ही उठ जाएं।
इसके बाद उगते सूर्य को प्रणाम करें। इसके बाद स्नान करने के बाद पीले वस्त्र धारण करें और सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
सूर्य को जल देते समय उसमें अक्षत,तिल,रोली,दूर्वा गंगाजल मिलाना न भूलें। साथ ही ऊँ सूर्याय नम:”मंत्र का जप सूर्य को अर्घ्य देते समय करते रहें।
इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ सूर्य देव का पूजन करें। साथ ही सूर्य चालीसा करें और सूर्य कवच का पाठ भी करें। अंत में सूर्यदेव की आरती कर सुख समृद्धि की कामना करें। अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत भी रखें। यदि आप व्रत नहीं रख पा रहे हैं तो इस दिन सूर्यदेव का पूजन जरुर करें।
सूर्य सप्तमी व्रत कथा
भविष्यपुराण के मुताबिक, ऐसा कहा जाता है कि एकबार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि, कलयुग में किस व्रत के प्रभाव से स्त्री को मोक्ष मिलता है? इस पर श्री कृष्ण ने उन्हें इंदुमती नामक वेश्या की कथा सुनाई। कथा के मुताबिक एक बार इंदुमति ने ऋषि वशिष्ठ के पास गई और उनसे कहा कि, उसने आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं किया है। ऐसे में उसे मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी? उसकी बात सुनकर वशिष्ठ मुनी ने उसे बताया कि स्त्रियों को मुक्ति सौभाग्य और सौंदर्य देने वाले सूर्य सप्तमी से बढ़कर और कोई व्रत नहीं है। उन्होंने उसे भानु सप्तमी के दिन यह व्रत करने को कहा। इसके बाद इंदुमति ने विधि-पूर्वक यह व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उसे स्वर्ग लोक में स्थान मिला।