नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन हो गया है। गुरुवार शाम करीब 8 बजे उन्हें दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया था। डॉ. मनमोहन सिंह, दो बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। वे लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। वह कई बार स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल में भर्ती कराए जा चुके थे। उधर डॉ. मनमोहन सिंह के निधन की खबर सामने आने के बाद पूरे देश में शोक की लहर देखने को मिल रही है।
जानकारी के अनुसार साल, 2006 में मनमोहन सिंह की दूसरी बार बाईपास सर्जरी हुई थी, जिसके बाद से वह काफी बीमार चल रहे थे। गुरुवार को उन्हें सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी के बाद एम्स में भर्ती कराया गया था। उनका जन्म 26 सितम्बर 1932 को पश्चिमी पंजाब के गाह (अब पाकिस्तान) में हुआ था।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम हैं, जो कुशल नेतृत्व और गहन अर्थशास्त्र के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 26 सितंबर 1932 को ब्रिटिश भारत के पंजाब में हुआ. विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया. पढ़ाई में बचपन से ही उत्कृष्ट रहे मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर करने के बाद कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. उनके द्वारा लिखित पुस्तक “इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेन्ड ग्रोथ” को भारत की व्यापार नीति का गहन विश्लेषण माना जाता है.
वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक सुधारों का नेतृत्व
1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार में वित्त मंत्री बने डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गहरे संकट से बाहर निकाला. उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को लागू किया, जिससे विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला और भारत को विश्व बाजार से जोड़ा गया. उनकी नीतियों ने लाइसेंस राज को खत्म कर व्यापार और उद्योगों को नई दिशा दी. इसी कारण उन्हें भारत में आर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है.
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
डॉ. मनमोहन सिंह 2004 में भारत के प्रधानमंत्री बने और 2014 तक लगातार इस पद पर बने रहे. वे जवाहरलाल नेहरू के बाद ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने लगातार दो बार पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा किया. उनके नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक मंदी के बावजूद मजबूती से प्रदर्शन किया. हालांकि, उनके कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला आवंटन जैसे बड़े घोटाले भी हुए, जिनके कारण उनकी सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.
RBI के गवर्नर रह चुके हैं मनमोहन
पूर्व पीएम राजीव गांधी की सरकार में वह 1985 से 1987 तक भारतीय योजना आयोग के प्रमुख के पद पर भी रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के साथ भी काम किया। इसके अलावा वह 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर भी रहे। इस दौरान उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र में कई सुधार किए। जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।
सम्मानित जीवन और योगदान
अपने जीवनकाल में डॉ. सिंह ने रिजर्व बैंक के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, और प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया. 2002 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार भी मिला. उनकी कुशल नीतियों और राजनीतिक योगदान ने उन्हें भारतीय राजनीति में अद्वितीय स्थान दिया. हालांकि, विवादों के बावजूद, वे अपनी विनम्रता और विद्वता के लिए आज भी आदरपूर्वक याद किए जाते हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव
1957 से 1965
चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक के रूप में कार्य किया.
1969-1971
दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर बने.
1976
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर के रूप में योगदान दिया.
1982 से 1985
भारतीय रिज़र्व बैंक के 15वें गवर्नर के रूप में कार्य किया.
1985 से 1987
योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दीं.
1990 से 1991
भारतीय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार के रूप में कार्यभार संभाला.
1991
पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में वित्त मंत्री बने और असम से राज्यसभा सदस्य चुने गए.
1995
दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य बने.
1996
दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर के रूप में वापसी की.
1999
दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा.
2001
तीसरी बार राज्यसभा के सदस्य बने और सदन में विपक्ष के नेता का पद संभाला.
2004
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया.
देश के आर्थिक सुधारों के लिए याद किए जाएंगे
डॉ. मनमोहन सिंह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्री थे। उन्होंने 1991 में देश के आर्थिक सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वित्त मंत्री के रूप में, उन्होंने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों को लागू किया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली। उन्हें उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें पद्म विभूषण भी शामिल है। 1991 में, पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री के रूप में, डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नया रूप दिया। उन्होंने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों को अपनाया। इन नीतियों ने देश की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के लिए खोल दिया। इससे निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिला और विदेशी निवेश को आकर्षित किया गया। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास हुआ।
विदेशी कंपनियों को दी मंजूरी
मनमोहन सिंह 90 के दशक में पीवी नरसिम्हा राव सरकार में देश के वित्त मंत्री थे। उस समय देश अर्थव्यवस्था से जूझ रहा था। भारत के पास विदेशी मुद्रा का भंडार मात्र 5.80 अरब डॉलर था। इससे सिर्फ 15 दिनों का ही आयात किया जा सकता था। अगर 15 दिनों बाद भारत को दूसरे देश से दवाई, पेट्रोलियम आदि की जरूरत पड़ती तो उसे खरीदा ही नहीं जा सकता था। कह सकते हैं कि भारत कंगाल जैसी स्थिति में था। ऐसी स्थिति के बाद भारत ने आईएमएफ और यूरोपीय देशों से लोन की मांग की।
हालांकि इस दौरान आईएमएफ ने एक अजीब शर्त रख दी। वह यह कि भारत को लोन तभी मिलेगा जब वह देश में विदेशी कंपनियों को आने देगा। ऐसी ही कुछ शर्त यूरोपीय देशों ने भी लगा दी थी। इनका कहना था कि भारत में न केवल विदेशी कंपनियां काम करेगी बल्कि प्राइवेट और सरकारी कंपनियां भी चलेंगी। इसे लेकर सरकार में काफी विचार-विमर्श हुआ और अंत में इसे मंजूरी दे दी। इससे भारत में विदेशी कंपनियों के द्वार खुल गए और भारत को लोन भी मिल गया।
LPG मॉडल ने बदली देश की तस्वीर
90 के दशक में भारत सरकार मनमोहन सिंह के नेतृत्व में LPG (Liberalization, Privatization और Globalization) मॉडल लेकर आई। इस मॉडल के तहत भारत सरकार ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया। इससे विदेशी कंपनियों के साथ प्राइवेट कंपनियों को भी भारत में काम करने का मौका मिल गया।
क्या है LPG का मतलब?
उदारीकरण (Liberalization): सरकार ने कारोबार के नियमों को उदार बनाया। कारोबार में सरकारी हस्तक्षेप को कम किया और मार्केट सिस्टम पर निर्भरता को बढ़ाया। उदारीकरण के बाद कारोबार की गतिविधियों को सरकार की जगह बाजार तय करने लगा।
निजीकरण (Privatization): सार्वजनिक स्वामित्व की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी कम होनी शुरू हो गई। सरकार का हिस्सा प्राइवेट कंपनियों को बेचे जाने लगा। इस कारण आज भी ऐसी कई खबरें आती हैं जिनमें पता चलता है कि सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी प्राइवेट कंपनियों को बेची गई।
वैश्वीकरण (Globalization): विदेशी कंपनियों के रास्ते भारत में खोल दिए गए। अर्थव्यवस्थाओं की दूरी को खत्म कर दी गई। वस्तुओं एवं सेवाओं के एक देश से दूसरे देश में आने और जाने के अवरोधों को भी खत्म कर दिया गया।
बैंकों का हुआ विस्तार
उदारीकरण के बाद देश में कई बदलाव हुए। साल 1991 में तत्कालीन सरकार ने कस्टम ड्यूटी को 220% से घटाकर 150% किया। बैंकों पर RBI की लगाम भी ढीली की गई। इससे बैंकों को जमा और कर्ज पर पर ब्याज दर और कर्ज की रकम तय करने का अधिकार मिल गया। इसके अलावा नए प्राइवेट बैंक खोलने के नियम भी आसान किए गए। इसका नतीजा यह हुआ कि देश में बैंकों का विस्तार होने लगा।
लाइसेंस राज खत्म हुआ
मनमोहन सिंह के उदारीकरण के बाद केंद्र सरकार ने कई नियमों में बदलाव किए। सबसे बड़ा बदलाव देश में लाइसेंस राज को लगभग पूरी तरह से खत्म करना था। सरकार ने कई फैसले बाजार पर ही छोड़ दिए। इनमें किस चीज का कितना प्रोडक्शन होगा और उसकी कितनी कीमत होगी जैसे फैसले भी शामिल थे। उस समय सरकार ने करीब 18 इंडस्ट्रीज को छोड़कर लगभग सभी के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था।