पुण्यश्लोक लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर न्याय, प्रेम, करुणा की प्रतिमूर्ति थीं- रश्मि रघुवंशी
अशोकनगर।
गुना जिले से संवाददाता बलवीर योगी
13 नवंबर बुधवार को शिवपुरी पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल अशोक नगर में देवी अहिल्याबाई होल्कर की त्रिशताब्दी जन्म जयंती वर्ष के कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में जिला आयोजन समिति की जिला सचिव रश्मि रघुवंशी, उनके साथ समिति के सहसचिव बृज किशोर शर्मा, एवं समिति सदस्य मुन्नालाल कलावत भी मौजूद थे। 1000 से ज्यादा छात्र संख्या को संबोधित करते हुए रश्मि रघुवंशी ने छात्र-छात्राओं को बताया कि लोकमाता अहिल्याबाई बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की साहसी, दूरदर्शी, भक्तिवान एवं त्वरित निर्णय लेने वाली शासिका थीं। वे अपने व्यक्तिगत व्यवहार में प्रेम एवं करुणा से लवालव रहती थीं। लेकिन जब भी प्रशासन का कार्य देखती थीं, तो एक कठोर प्रशासिका की भूमिका में होती थीं। उन्होंने हमेशा ही व्यक्तिगत हित से ऊपर राज्य और प्रजा के हित को सर्वोपरि माना। सबका साथ सबका विकास का अक्षरसः पालन उनके राज्य में होता था, जाति भेद के लिए उनके राज्य में कोई स्थान नहीं था। उनका जन्म महाराष्ट्र के चंडी गांव में हुआ था। वे जब 8 वर्ष की थीं, तब एक दिन मंदिर में आरती गा रही थी। उसी समय सूबेदार मल्हार राव वहां से गुजरे, उन्होंने वह मधुर स्वर सुनकर अपना घोड़ा रोका, और पूछा कि यह मधुर ध्वनि किसकी है। तो लोगों ने बताया की मनकोजी राव की पुत्री का मधुर स्वर है। वे मनकोजी राव से मिलने गए, तो उन्होंने अहिल्याबाई के निर्लिप्त भाव को परख लिया। और निश्चय कर लिया कि यह मेरी पुत्रवधू बनेगी। इस प्रकार अहिल्याबाई जी का 12 वर्ष की आयु में विवाह हो गया था। वह साधारण परिवार से आई थीं। लेकिन सूबेदार मल्हार राव और उनकी पत्नी गौतमा बाई जो उनके ससुर- सास थे। उन्होंने अहिल्याबाई को रसोई एवं गृह संचालन से लेकर राज्य संचालन, युद्ध कला तक का प्रशिक्षण दिया। 15 वर्ष की आयु से अहिल्याबाई अपने राज्य का व्यवहारिक काम संभालने लगी थीं, अपने ससुर के मार्गदर्शन में सदा कार्य करने के लिए तत्पर रहती थीं। जब भी अन्य राज्यों के साथ पत्र व्यवहार करती थीं। तो अपना नाम नहीं लिखती थीं, अपने नाम के स्थान पर सूबेदार की बहू संबोधन लिखती थीं।
अहिल्याबाई ने अपने जीवन में धर्म संस्कृति एवं समाज सेवा में अग्रणी भूमिका निभाई, उन्होंने मुगलों द्वारा तोड़े गए मंदिरों के जीर्णोद्धार करवाए। अयोध्या मथुरा कांची जगन्नाथ पुरी बद्रीनाथ केदारनाथ सोमनाथ सहित पूरे देश में उन्होंने मंदिरों के जीर्णोद्धार करवाए। नदियों की सफाई कराई, अनेक घाट बनवाये। अनेक धर्मशालाएं बनवाईं, अनेक सड़के बनवाई सड़कों के दोनों ओर फलदार वृक्ष लगवाती थीं जिससे पक्षियों को भोजन मिले। गांव- गांव में गोचर भूमि सुरक्षित रखवाती थीं ताकि गौमाता का पालन पोषण हो सके। राहगीरों के लिए पोशालाओं का निर्माण करवाती थीं ताकि कोई प्यासा ना रहे,उनके राज्य में सभी को आदर सहित बिठाकर पानी पिलाया जाता था । महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए महेश्वरी साड़ी उद्योग स्थापित किया था। जो आज भी विश्व प्रसिद्ध है। उनका राज्य राम राज्य से कम नहीं था। देवी अहिल्याबाई के जीवन में सुख-दुख आंख मिचोली खेलते रहते थे, 29 वर्ष की आयु में ही उन्हें वैधव्य प्राप्त हुआ, कुंभेर के युद्ध में उनके पति वीरगति को प्राप्त हुए। उसके 12 साल बाद उनके ससुर वीरगति को प्राप्त हुए। किसी गंभीर बीमारी से उनका पुत्र भी चल बसा। इतनी विषम परिस्थितियों में भी देवी अहिल्याबाई ने अपनी प्रजा के सुख के लिए सभी तरह की सेवा की। एवं धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य किये। उनके राज्य में चोरी डकैती व्यभिचार आदि के लिए सख्त कानून बने हुए थे । उनके राज्य में न्याय को प्राथमिकता दी जाती थी। एक किवदंती है कि एक बार उनके पुत्र के रथ से एक गाय का बछड़ा मर गया था, तो उन्होंने अपने पुत्र को भी वही सजा देने से चूकी नहीं थीं। लेकिन गौ माता ने उनके पुत्र की जान बचाई। एकबार उनके पति ने राजकोष के धन का उपयोग अपने निजी कार्य में कर लिया था। तो देवी अहिल्याबाई बहुत क्रोधित हुई थीं। और उन्होंने स्वयं राजकोष में धन ब्याज सहित लौटाया था । इस तरह उनके राज्य में प्रशासन बिल्कुल पारदर्शिता के साथ लागू था। अहिल्याबाई ने गरीब बेघरों के लिए घर बनवाए थे, तोपखाने का निर्माण कराया था, डाक व्यवस्था लागू की थी, स्वयं के राज्य का सिक्के चलवाए थे। मंदिरों का केवल जीर्णोद्धार ही नहीं किया बल्कि वहां नित्य पूजा व्यवस्था आरती प्रवचन शास्त्रों के पठन-पाठन के लिए विद्वान पंडितों की नियुक्तियां की थीं। उन्होंने अनेक औषधालय चिकित्सालय दान शालाएं शुरू की थी। गोबध बंदी कानून को कठोरता से लागू किया था। भूजल स्तर बढाने के लिए नींबू आम पीपल बरगद कटहल आदि के पौधारोपण करवाती थीं। और पेड़ काटने पर उनके राज्य में प्रतिबंध था। इस प्रकार देवी अहिल्याबाई का जीवन एक आदर्श शासिका के साथ-साथ आदर्श पुत्री आदर्श बहू आदर्श पत्नी आदर्श मां एवं आदर्श वीरांगना के रूप में जाना जाता है। सादा जीवन उच्च विचार ही उनकी महानता का आधार रहा। उनका व्यक्तित्व बिंदु से विराट के रूप में प्रकट हुआ। इस अवसर पर शिवपुरी पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल की प्राचार्य अरुणा सिंह ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।