• दीपावली में पितर के लिए दीप।
सत्यार्थ न्यूज़ : यह ओड़िशा परम्परा है। इस विषय में विद्वानों से प्रश्न किया था। पुरी जगन्नाथ मन्दिर में दीपावली के दिन पितर (बड़बड़ुआ) को पितृलोक वापस जाने के लिए कुश तथा दीप जलाते हैं, जिससे वे अन्धकार में मार्ग देख सकें। पितर पितृ पक्ष में आते हैं तथा १ मास बाद उनके लौटने की प्रार्थना की जाती है। कहते हैं कि गया, गंगा, वाराणसी घूमते हुए अपने लोक लौट जायें। इस प्रथा का शास्त्रीय आधार क्या है?
पण्डित दीनदयालमणि त्रिपाठी जी का समाधान मिला-सम्भवतः निम्न सन्दर्भ में उसके बीज निहित हों।
कार्तिक में आकाशदीप
“आकाशे दीयमानोदीपः”
कार्त्तिकमासे भगवदुद्देशेन नभसि दत्तप्रदीपः।
महापुण्यदायक मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान। इस दीपदान का ही एक प्रकार है-आकाशदीप जिसका आधार पृथ्वी न होकर आकाश होता है, अर्थात् यह पृथ्वी के सतह से ऊपर रहता है। नीचे छायाचित्र में काशी में होने वाला आकाशदीप दान दर्शाया गया है।
आकाशदीप कब से आरम्भ करें?
एकादश्यास्तुलार्काद्वा दीपदानमतोऽपि वा।
दामोदराय नभसि तुलायां लोलया सह॥
(स्कन्द पुराण, वैष्णव खण्ड, कार्तिक मास माहात्म्य, अध्याय ७)
कार्तिक शुक्ल एकादशी से, तुला राशि के सूर्य से अथवा पूर्णिमा से लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिये आकाशदीप प्रारम्भ करना चाहिए।
आकाशदीप दान किस समय करें?
– सांयकाल
अगर आप कार्तिक स्नान के नियम का भी पालन कर रहे हैं तो सांयकालीन आकाशदीप दान के अतिरिक्त ब्रह्ममुहूर्त में स्नान के तुरन्त बाद फिर से आकाशदीप दान करें।
आकाशदीप किसके निमित्त करें
– लक्ष्मी सहित भगवान दामोदर (विष्णु), पितरों के निमित्त
आकाशदीप दान मन्त्र-
दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम् ।।
(स्कन्द पुराण)
आदित्य पुराण के अनुसार-
धर्माय नमः, हराय नमः, भूम्यै नमः, दामोदराय नमः, धर्मराजाय नमः, प्रजापतये नमः, पितृभ्यो नमः, प्रेतेभ्यो नमः
अपरार्क के अनुसार-
दामोदराय नभसि तुलायां लोलया सह ।
प्रदीपं ते प्रयच्छामि नमोऽनन्ताय वेधसे ।।
पितरों के निमित्त आकाश दीपदान का मंत्र
नमः पितृभ्यः प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे ।
नमो यमाय रुद्राय कांतारपतये नमः।॥ (स्कन्द पुराण, २/४/७/९)
पुराण श्रवण से आकाशदीप दान का फल
जो व्यक्ति स्कन्द पुराण, वैष्णव खण्ड, कार्तिक मास-माहात्म्य, अध्याय ७ का गुरु-मुख अथवा पुराण-वक्ता के मुख से श्रवण करता है, उसको आकाश-दीप दान के समान ही फल प्राप्त हो जाता है।
आकाशदीप दान विधि का विविध शास्त्रों से सङ्कलन
निर्णयसिन्धु के अनुसार निर्णयामृत में पुष्कर पुराण के मत से कार्तिक मास में आकाश-दीप कहा गया है-
तुलायां तिलतैलेन सायङ्काले समागते ।
आकाशदीपं यो दद्यात् मासमेकं हरिं प्रति।
महतीं श्रियमाप्नोति रूप-सौभाग्य सम्पदम्॥
तुला की संक्रान्ति में तिल के तेल से सांयकाल के समय जो एक महीने हरि के प्रति आकाशदीप देता है, वह बृहत् रूप से रूप, सौभाग्य और संपत्ति प्राप्त करता है।
इसकी विधि हेमाद्रि में आदित्य पुराण के वचन से यह है-
दिवाकरेऽस्ताचलमौलिभूते गृहादरे तत् पुरुषप्रमाणं।
यूपाकृतिं यज्ञियवृक्षदारुमारोप्य भूमावथ तस्य मूर्ध्नि॥
यवाङ्गुलच्छिद्रयुतास्तु मध्ये द्विहस्तदीर्घा अथ पट्टिकास्तु।
कृत्वा चतस्रोऽष्टदलाकृतीस्तु यामिर्भवेदष्टदिशानुसारी॥
जब सूर्य अस्ताचल के शिरोभाग में हो जाय तो घर के समीप ही पुरुष के प्रमाण से यज्ञीय वृक्ष के लकड़ी के यूप की तरह आकृति निर्माण कर गाड़ दें। उस यूप को भूमि में और मस्तक यव के बराबर अंगुल के छेद के मध्य में दो हाथ लंबी चार पट्टिओं को कर उसमें अष्टादलाकृति बनावे जिनसे आठ दिशा मालूम हों।
तत्कर्णिकायां तु महाप्रकाशो दीपः प्रदेयो दलगास्तथाष्टौ।
निवेद्य धर्माय हराय भूम्यै दामोदरायाप्यथ धर्म्मराज।
प्रजापतिभ्यस्त्वथ सत्पृतृभ्यः प्रेतेभ्य एवाथ तमः स्थितेभ्यः॥
उनकी कर्णिका में बृहत्प्रकाश को करने वाला दीपक दे। उसके आठ दलों में आठ दीपक – धर्माय नमः, हराय नमः, भूम्यै नमः, दामोदराय नमः, धर्मराजाय नमः, प्रजापतये नमः, पितृभ्यो नमः, प्रेतेभ्यो नमः इन क्रम से दें। जो तम में स्थित है।
इसको सरल बनाने के लिये सामान्यतः लोग १ अष्टमुखी दीपक लेकर उसमें आठ बत्ती लगा लेते हैं।
अपरार्क (एक स्मृति ग्रन्थ) ने आकाशदीप के लिये अन्य मंत्र लिखा है
दामोदराय नभसि तुलायां लोलया सह।
प्रदीपं ते प्रयच्छामि नमोऽनन्ताय वेधसे॥
लक्ष्मी के साथ दामोदर के लिए तुलाराशि में आकाश में दीपक आपको देता हूँ। अनन्तरूप ब्रह्मा के लिये नमस्कार है।
स्कन्द पुराण, वैष्णव खण्ड, कार्तिक मास माहात्म्य, अध्याय ७ के अनुसार
संप्राप्ते कार्तिके मासि प्रातः स्नानपरायणः।
आकाशदीपं यो दद्यात्तस्य पुण्यं वदाम्यहम्॥
सर्वलोकाधिपो भूत्वा सर्वसंपत्समन्वितः।
इह लोके सुखं भुक्त्वा चान्ते मोक्षमवाप्नुयात्॥
कार्तिक मास आने पर जो प्रातःकाल स्नान में तत्पर हो (इसका अर्थ कार्तिक प्रातःकाल स्नान नियम से है) आकाशदीप का दान (सांयकाल) करता है, वह सब लोकों का स्वामी और सब सम्पत्तियों से संपन्न होकर इस लोक में सुख भोगता और अन्तमें मोक्ष को प्राप्त होता है।
स्नानदानक्रियापूर्वं हरिमन्दिरमस्तके ।
आकाशदीपो दातव्यो मासमेकं तु कार्तिके।।
इसलिए कार्तिक में स्नान-दान आदि कर्म करते हुए भगवान विष्णु के मन्दिर में कँगूरे (शिखर / चोटी) पर एक मास तक अवश्य दीपदान करना चाहिए। दीप देने के समय इस मंत्र का उच्चारण करें-
दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम् ।।
मैं सर्वस्वरूप एवं विश्वरूपधारी भगवान् दामोदर को नमस्कार करके यह आकाशदीप देता हूँ जो भगवान् को परमप्रिय है।
दास्यन्ति ये कार्तिकमासि मर्त्या व्योमप्रदीपं हरितुष्टयेऽत्र।
पश्यन्ति ते नैव कदाऽपि देवं यमं महाक्रूरमुखं मुनीन्द्र॥
जो संसार में भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए आकाशदीप देते हैं, वे कभी अत्यंत क्रूर मुख वाले यमराज का दर्शन नहीं करते।
आकाशदीपदानेन पुरा वै धर्मनन्दनः।
विमानवरमारुह्य विष्णुलोकं ययौ नृपः॥
पूर्वकाल में राजा धर्मनन्दन ने आकाशदीप दान के प्रभाव से श्रेष्ठ विमान पर आरूढ़ हो विष्णुलोक को प्रस्थान किया।
पितरों के निमित्त आकाश दीपदान
स्कन्द पुराण, वैष्णव खण्ड, कार्तिक मास माहात्म्य, अध्याय ७ के अनुसार
आकाशदीपसदृशं पितुरुद्धारकं न हि।
आकाशदीप के समान पितरों का उद्धार करने का कोई और उपाय नहीं है।
नमः पितृभ्यः प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे।
नमो यमाय रुद्राय कांतारपतये नमः॥
जो मनुष्य इस मन्त्र से पितरों के लिये आकाश में दीपदान करते हैं, उनके पितर नरक में हों तो भी उत्तम गति को प्राप्त होते हैं।