अशफाक उल्ला खान की जयंती
संवाददाता -हरिओम तोमर
खेरागढ़ आगरा उत्तर प्रदेश
प्राथमिक विद्यालय कछपुरा सरेंडा में सहायक अध्यापक सतीश कुमार ने बच्चों को देश के लिए बलिदान होने वाले वीर सपूतों के बारे में बताया ।उन्ही में से एक सच्चे वीर सपूत अशफाक उल्ला ख़ां की कहानी सुनाई।
अंग्रेजी शासन से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफाक उल्ला खान की आज जयंती है। अशफाक उल्ला खां भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफाक की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का बेजोड़ उदाहरण हैं।
अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 में उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के ‘शहीदगढ़’ में हुआ था। उनके पिता का नाम पठान शफिकुल्लाह खान और माता का नाम मजहूर-उन-निसा था। पुलिस विभाग में कार्यरत शाफिकुल्लाह खान के 4 बेटों में सबसे छोटे थे अशफाक। परिवार के सभी लोग सरकारी नौकरी में थे, लेकिन अशफाक बचपन से ही देश के लिए कुछ करना चाहते थे। वह स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ कविता भी लिखते थे, उन्हें घुड़सवारी, निशानेबाजी और तैराकी का भी शौक था।
अंग्रेजों की नाक में किया था दम
शहीद अशफाक ने 25 साल की उम्र में अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की नाक के नीचे से सरकारी खजाना लूट लिया था। इस घटना के बाद से पूरी ब्रिटिश सरकार को मुंह की खानी पड़ी थी। इस घटना को ‘काकोरी कांड’ से जाना जाता है। जिसके लिए ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फांसी पर लटका दिया गया। उनकी याद में उप्र फैजाबाद जेल में अमर शहीद अशफाक उल्ला खां द्वार बना हुआ है।
बिस्मिल और अशफाक की दोस्ती
शहीद अशफाक-उल्ला-खान ने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शहीद अशफाकउल्ला खान पं रामप्रसाद बिस्मिल के काफी करीब थे। मैनपुरी षड़यंत्र के मामले में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल से उनकी दोस्ती हुई और वे भी क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए। पहली ही मुलाकात में बिस्मिल अशफाक से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें अपनी पार्टी ‘मातृवेदी’ का सक्रिय सदस्य बना लिया।
ये रचना हुई थी चर्चित
दोनों अच्छे दोस्त होने के साथ ही अच्छे शायर भी थे। उनका उर्दू तखल्लुस/उपनाम ‘हसरत’ था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अंग्रेजी में आलेख व कविताएं करते थे। अशफाक-उल्ला-खान की रचना ‘कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे’ काफी चर्चित है।
विद्यालय के प्रधानाध्यापक राकेश कुमार ने भी बड़े ही ओजस्वी पूर्ण तरीके से बच्चों को देश भक्ति हेतु प्रेरित किया।